राष्ट्रीय

तुषार मेहता की 'समानांतर' सरकार ....

Shiv Kumar Mishra
30 May 2020 10:35 AM GMT
तुषार मेहता की समानांतर सरकार ....
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संजय कुमार सिंह

नई दिल्ली .कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला और कुछ अन्य लोगों की ओर से दाखिल की गई हस्तक्षेप अर्जियों पर सुनवाई का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता बोले, कोर्ट को राजनैतिक मंच न बनने दिया जाए. इससे पहले प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कई तीखे सवाल पूछे थे. केंद्र ने कहा था कि अबतक करीब एक करोड़ मजदूर घर जा चुके हैं. पैदल जाने वाले मजदूर अवसाद के कारण ऐसा कर रहे हैं. जहां-तहां फंसे प्रवासी मजदूरों को वापस घर भेजे जाने पर हुई सुनवाई के दौरान सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हस्तक्षेप अर्जी दाखिल करने वाले लोगों को सुने जाने का विरोध करते हुए कहा था कि जिन लोगों ने हस्तक्षेप अर्जी दाखिल की है और मजदूरों की समस्या पर कोर्ट में बहस करना चाहते हैं उनसे पहले पूछा जाए कि उन्होंने इस दिशा में क्या किया है. कहने की जरूरतनहीं है कि सरकार सेपूछने से पहले खुद कुछ करना जरूरी नहीं है. और जरूरी नहीं है कि सक्षम व्यक्ति ही सरकार से पूछे. इसके अलावा अदालत में याचिका दायर कर सकने वाला व्यक्ति अगर ऐसा कर रहा है तो यह भी एक काम ही है जो दूसरा नहीं कर सकता है. और दूसरा जो कर सकता है वह अपना काम कर ही रहा है. इसलिए याचिका दायर करने वालों पर आरोप लगाना या उनसे सवाल पूछा जाना अपने-आप में बेमतलब है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में प्रवासी मजदूरों पर सुनवाई पर केंद्र से कई तीखे सवाल पूछे थे. पिछली सुनवाई में शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा था. केंद्र ने कहा कि अबतक करीब एक करोड़ मजदूर घर जा चुके हैं. पैदल जाने वाले मजदूर अवसाद के कारण ऐसा कर रहे हैं.

आज इस मामले में जब खबर है कि मजदूरों की दुर्दशा पर कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई, और सॉलिसिटर जनरल ने अदालतों पर समानांतर सरकार चलाने का आरोप लगाया तो इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को पहले पन्ने पर छापा है और शीर्षक लगाया है, तुषार मेहता की 'समानांतर' सरकार : 19 हाईकोर्ट ने कोविड समस्या पर आदेश दिए हैं. और इसी खबर के साथ अंदर संपादकीय होने की सूचना है. लेक्चर देने का अंग्रेजी में जो मायने है वह तो है ही हिन्दी में इसे सकारात्मक अर्थ में नहीं लिया जाता है और जाहिर है एक्सप्रेस को जो कहना था उसमें कोई कसर नहीं रह गई है. कोरोना वायरस से संबंधित जनहित याचिकाएँ इलाहाबाद, आंध्र प्रदेश, बांबे, कलकत्ता, दिल्ली, गुवाहाटी, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मद्रास, मणिपुर, मेघालय, पटना, उड़ीशा, सिक्किम, तेलंगाना और उत्तराखंड के उच्च न्यायालयों में सुनी जा रही हैं. बांबे, दिल्ली, आंध्र प्रदेश और पटना जैसे कुछ हाईकोर्ट ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया है. इसके अलावा कोर्ट में अन्य याचिकाकर्ताओं और बार के सदस्यों सहित सभी याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है. तेलंगाना हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने अस्पतालों से शव को रिहा करने से पहले शवों का परीक्षण करने के लिए कहा है. जस्टिस आर एस चौहान और बी विजयसेन रेड्डी की पीठ ने राज्य सरकार को संक्रमितों की संख्या छुपाने पर जमकर फटकार लगाई है जबकि गुजरात सरकार के खिलाफ सख्त टिप्पणी करने वाली हाईकोर्ट की बेंच को अचानक बदल दिया गया है. कल यह खबर हिन्दी के जो अखबार मैं देखता हूं उनमें किसी में पहले पन्ने पर नहीं थी. कइयों ने बताया कि गुजरात की खबर अखबारों में थी ही नहीं. एक तरफ को यह हाल है और दूसरी तरफ सॉलसिटर जनरल का यह लेक्चर निश्चित रूप से विरोध करने लायक है और इंडियन एक्सप्रेस ने शानदार काम किया है.

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