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हलाल और हलाल प्रमाणन का अंतर समझिए, किस तरह वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह ने की व्याख्या
संजय कुमार सिंह
एक पोस्ट के जरिए कल मैंने हलाल मांस और हलाल सर्टिफिकेशन का अंतर बताने की कोशिश की थी। कुछ लोग इसे समझने या मानने को तैयार ही नहीं हैं। मेरे कहने का मतलब यही था कि मैकडोनल्ड्स अगर कहता है कि उसके सभी रेस्त्रां हलाल प्रमाणित हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह हलाल मटन का उपयोग करता है। हलाल दरअसल एक प्रमाणन है जो एक अलग एजेंसी देती है और ग्राहकों का एक बड़ा वर्ग इस प्रमाणन की मांग करता है या इसपर यकीन करता है। इसलिए कारोबार करने वालों की मजबूरी है कि वे हलाल प्रमाणित हों। यह आईएसआई या आईएसओ 9001 प्रमाणित होने की ही तरह है। हालांकि मैकडोनल्ड्स का मामला थोड़ा अलग है। आइए उसे भी जान लें।
अखबारों की पुरानी खबरों के अनुसार 22 अगस्त 2019 को किसी ने ट्वीट कर मैकडोनल्ड्स इंडिया से पूछा कि क्या मैकडोनल्ड्स इंडिया हलाल प्रमाणित है? मैकडोनल्ड्स ने इसका दवाब ट्वीट के जरिए ही दो हिस्सों में दिया। दैनिक भास्कर ने इसका हिन्दी अनुवाद छापा है, "शख्स को जवाब देते हुए कंपनी ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, 'वक्त निकालकर मैक्डॉनाल्ड इंडिया से संपर्क करने के लिए धन्यवाद। आपके सवाल का जवाब देने के लिए मिले इस मौके से हम बेहद खुश हैं। सभी रेस्टोरेंट्स में हम जो मीट इस्तेमाल करते हैं, वो उच्चतम गुणवत्ता वाला होता है और एचएसीसीपी सर्टिफिकेट रखने वाले सरकारी मान्यता प्राप्त आपूर्तिकर्ताओं से लिया जाता है।
दूसरे हिस्से में लिखा था, हमारे सभी रेस्टोरेंट्स हलाल सर्टिफिकेट्स प्राप्त हैं। आप अपनी संतुष्टि और पुष्टि के लिए संबंधित रेस्टोरेंट मैनेजर से प्रमाण पत्र दिखाने के लिए कह सकते हैं।'" (अखबार में दोनों ट्वीट के स्क्रीन शॉट हैं। इनमें से एक को लोग दिखाकर कहते हैं कि मैकडोनल्ड्स हलाल मीट का उपयोग करता है जबकि लिखा हलाल प्रमाणन के लिए गया है और संभवतः इसलिए कि प्रश्नकर्ता मुस्लिम लगता/लगती है। पहले हिस्से में साफ लिखा है कि मांस एचएसीसीपी प्रमाणित होता है। हलाल प्रमाणित नहीं। आप इसका जो मतलब लगाइए, पर तथ्य यही है कि मैकडोनल्ड्स ने हलाल प्रमाणित मांस के उपयोग की बात नहीं कही है बल्कि अपने रेस्त्रां को हालल प्रमाणित होने का दावा किया है और दोनों बातों में भारी अंतर है।
अरबी में हलाल शब्द का मतलब 'अनुमति' है और हलाल सर्टिफिकेशन के मायने ऐसे प्रॉडक्ट से है, जिसे बनाने में इस्लामिक कानून को पूरी तरह माना गया हो। 3.2 लाख करोड़ डॉलर के ग्लोबल हलाल मार्केट में भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 2 फीसदी है। देश में हलाल कॉस्मेटिक्स का चलन शुरू ही हुआ है और अभी इस इंडस्ट्री का साइज 10 अरब डॉलर है। हलाल के बारे में कल मैंने लिखा था कि बीबीसी की 2014 की खबर अहमदाबाद से शुरू हुई थी और आज फिर मैं अहमदाबाद की ही 2015 की खबर का उल्लेख कर रहा हूं। मोटे तौर पर इसका मतलब है कि यह विवाद तथाकथित गुजरात मॉडल का हिस्सा हो सकता है जो पहले गुजरात में सीमित था और अब राष्ट्रीय स्तर पर है। ना इसे तब निपटाया गया ना अब निपटाने की कोशिश की जा रही है। गलत या आधे-अधूरे तथ्यों के आधार पर भड़काने वाली पोस्ट लिखना अपनी जगह है ही। जानकारी नहीं होना बुरा नहीं है। बुरा है, अधूरी या गलत जानकारी पर भड़काने वाली पोस्ट लिखना।
हलाल शब्द का एक अर्थ है। पर जब यह अंतरराष्ट्रीय हो गया है और आप इस पर लिखना चाहते हैं तो पहली जरूरत है कि इसे समझने की कोशिश करें। जरूरी नहीं है कि एक ही कोशिश में सब कुछ समझ में जा जाए पर समझना चाहिए कि भारत में अगर कुछ हो रहा है, भारतीय कंपनियां ऐसा प्रमाणन ले रही हैं तो भारत सरकार की जानकारी में हो रहा होगा और गलत नहीं होगा। फिर भी आपको लगता है कि गलत है तो सरकार को लिखिए, पोस्ट लिखकर लोगों को भड़काने का क्या मतलब? 2015 की ही एक खबर में भी कहा गया था, भारत में 'हलाल' शब्द का मतलब मीट या मीट प्रॉडक्ट्स से लगाया जाते हैं, लेकिन देश के कई पर्सनल केयर ब्रांड्स अपने प्रॉडक्ट्स के लिए हलाल सर्टिफिकेशन लेने में जुटे हैं। इस सर्टिफिकेशन का मतलब है कि उस खास प्रॉडक्ट को बनाने में किसी जानवर, केमिकल्स या अल्कोहल का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
उपभोक्ताओं के एक वर्ग के बीच ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ रही है, जिसे बनाने में जानवरों के साथ कोई बदसलूकी नहीं की गई हो और जो पूरी तरह सुरक्षित हो। कॉस्मेटिक कंपनियों में इबा, इमामी, केविनकेयर, तेजस नेचरोपैथी, इंडस कॉस्मेटिकल्स, माजा हेल्थकेयर और वीकेयर ने अपने कई प्रॉडक्ट्स के लिए हलाल सर्टिफकेशन लिया है। हलाल सर्टिफिकेशन के तहत बनने वाले प्रॉडक्ट्स में एनिमल फैट या कीड़ों के रंग के अलावा दूध से बनी चीजों और बीवैक्स का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसके साथ ही वे इन कॉस्मेटिक की टेस्टिंग जानवरों पर नहीं कर सकते हैं। यानी जो प्रॉडक्ट्स हलाल सर्टिफिकेशन के तहत बनते हैं वो पूरी तरह शाकाहारी होते हैं। इसके बावजूद सिर्फ सर्टिफिकेशन का नाम हलाल होने से इसे मुसलमानों के मतलब का कहा जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इससे पहले बाल मजदूरी के खिलाफ ऐसा अभियान चल चुका है जब सामान खरीदने वाले इस बात पर जोर देते थे कि उत्पादन के निर्माण में किसी भी स्तर पर बाल श्रम का उपयोग नहीं हुआ है। हलाला प्रमाणन का यह अभियान पशु क्रूरता का खिलाफ है पर चूंकि यह नाम मांस के लिए जानवरों को काटने की मुसलमानों की एक विधि से मिलता है और शायद कुछ अन्य कारणों से भी इसे मुसलमानों से जोड़ दिया गया है जबकि हलाल उत्पाद का संबंध शुद्धता या पशु क्रूरता से मुक्त होना है। देश की हलाल सर्टिफाइंग बॉडी हलाल इंडिया के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर मोहम्मद जिन्ना ने बताया, 'हलाल सर्टिफिकेशन का मतलब है कि प्रॉडक्ट बनाने में क्लीन सप्लाई चेन और कम्प्लायंस का पूरा ध्यान रखा गया है, जिसमें सोर्सिंग से लेकर ट्रेड तक शामिल है। इस कॉन्सेप्ट के बारे में जागरूकता बढ़ने के बाद हम देख रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा कंपनियां हलाल सर्टिफिकेशन ले रही हैं।' उम्मीद है अब पाठकों को समझ में आ जाएगा कि आटा, नमक या सत्तू क्यों हलाल प्रमाणित है और यह भी कि बिना हलाल किया हलाल प्रामाणित का सर्टिफिकेट कैसे बनता है।
यह इसलिए भी जरूरी है कि तथ्य बताने और कोई तुक नहीं होने के बावजूद सोशल मीडिया पर #BoycottMcDonalds (मैक्डॉनाल्ड का बहिष्कार करें) ट्रेंड करने लगा था। इस पोस्ट का साथ लगा आटे का पैकेट ट्वीटर से लिया गया है। @IntrepidSaffron ने निर्माता कंपनी से पूछा है कि इसकी जरूरत क्यों है? और आगे एलान है, मैं कसम खाता हूं कि मैं अपने किसी हिन्दू मित्र और रिश्तेदार को आशीर्वाद आटा नहीं खरीदने दूंगा। मैं सभी हलाल उत्पादों का बहिष्कार करने जा रहा हूं। #Hinduphobia_in_Jharkhand 25 अप्रैल के इस ट्वीट को 2100 बार रीट्वीट किया गया है 3100 लोगों ने लाइक किया है।