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विष्णु प्रभाकर केवल बातें करने वाले लेखक नहीं थे : अतुल प्रभाकर
प्रसून लतांत
विष्णु प्रभाकर की 110 वें जन्मदिन पर देश के विभिन्न राज्यों की पांच युवा हस्तियों को सम्मानित करने की घोषणा की गई। यह जानकारी देते हुए विष्णु प्रभाकर के बड़े पुत्र और विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल कुमार ने बताया कि पिछले आठ सालों से हर साल विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिए पांच युवा हस्तियों को विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय प्रोत्साहन सम्मान देने की घोषणा की जाती रही है। अब तक चालीस से अधिक युवा विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय प्रोत्साहन सम्मान से सम्मानित किए जा चुके हैं। इस बार विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय प्रोत्साहन सम्मान से पत्रकारिता और साहित्य के लिए लंदन की शिखा वार्ष्णेय, साहित्य के लिए अभिषेक अवस्थी,नृत्य के लिए आकाश द्विवेदी, शिक्षा के लिए आलोक सिंह और समाजसेवा के लिए छत्तीसगढ़ की डा मनीषा पांडेय के नमन की घोषणा की गई। उन्होंने बताया कि काका कालेलकर द्वारा स्थापित गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा के सहयोग से नए रचनाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए पिछले आठ सालों से लगातार साहित्य की विभिन्न विधाओं पर बारी बारी से सन्निधि संगोष्ठी आयोजित की जाती रही है।
संगोष्ठियों में मार्गदर्शन के लिए प्रसिद्ध लेखकों को भी आमंत्रित किया जाता रहा है। अब तक आयोजित संगोष्ठियों में पांच सौ से अधिक युवा रचनाकार भाग के चुके हैं। अतुल प्रभाकर ने बताया कि इन संगोष्ठियों में भाग लेने वाले ज्यादातर युवा रचनाकार अपने अपने मुकाम पाने मै कामयाब हुए। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार हर साल विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय प्रोत्साहन सम्मान दिया जाता है उसी तरह हर साल काका साहब कालेलकर के जन्मदिन पर पांच युवाओं को काका कालेलकर राष्ट्रीय प्रोत्साहन सम्मान दिया जाता है। इन सम्मानों ने युवाओं में नैतिक ऊर्जा का विकास हुआ और उनकी सृजनशील प्रतिभा के काफी विकास हुआ। विष्णु प्रभाकर गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा के आजीवन अध्यक्ष रहे। उन्होंने सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। इन्हें पद्मश्री सहित अनेक बड़े पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्हें साहित्य अकादमी का भी सम्मान मिल चुका है।
अतुल जी ने कहा कि विष्णु जी के साहित्य पर कई लोगों ने लिखा है। साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित मॉनोग्रफ के लेखक प्रकाश मनु के मुताबिक विष्णु प्रभाकर हिंदी के उन बड़े लेखकों में से हैं,जिनका व्यक्तित्व बहुत खुला, खरा और उदार था। सबको अपना बना लेने वाला। इनमे एक बड़प्पन था,सामने वाले की लघुता के बावजूद उसे अपने प्रेम से भर कर गला लगा लेने वाला। और वैसा ही खुलापन उनके साहित्य में है,जिसमे बे बनाव सादगी है और जीवन का छल छल करता नजर आता है।
विष्णु जी ने साहित्य कि विविध विधाओं में लिखा और बहुत लिखा। बहुत से लेखक इस भ्रम में जीते हैं कि कम लिखने में ही गौरव है। पर वे इनमे से नहीं थे। वे मसि जीवी थे। लिखना उनके लिए
आनंद भी था और जरूरत भी। लिखने से जो कुछ मिलता,उसी से उनके जीवन का निर्वाह होता था। प्रेम चंद की तरह उनकी लेखनी भी क्षिप्रता से चलती थी और अपने आसपास के जीवन कि विसंगतियां और विरोधाभासों से गुजरती हुई, जो कुछ सत्य है,सुंदर है,उसके अंगीकार के लिए सदा आगे रहती थी। विष्णु प्रभाकर सारी तकलीफें झेलते हुए भी लेखक थे। वे सच में आपाद मस्तक लेखक थे। लेखक के रूप में हमेशा समाज में सार्थक हस्तक्षेप करते रहे। वे जो कहते थे,उसे कर दिखाते थे। वे केवल बातें करने वाले लेखक नहीं थे। उनके अपने जीवन मूल्य और आदर्श थे। वे गांधीवादी लेखक के रूप में शुमार किए जाते थे। उन्होंने लिखा तो बहुत पर वे बांग्ला के प्रसिद्ध लेखक शरतचंद्र के जीवनी लेखक के रूप में जाने जाते थे। इन पर आधारित कृति आवारा मसीहा बहुत प्रसिद्ध है।
अतुल प्रभाकर ने कहा कि मेरे लेखक पिता ने जो विरासत सौंपी है उसे आगे बढ़ाने में हम लोग लगे हैं। उन्होंने कहा कि बड़े कद के पिता पर गौरव तो बहुत होता है लेकिन हमारे पिता ने हम लोगों के हिस्से के समय को भी साहित्य लेखन को समर्पित कर दिया।