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श्रम कानूनों के कमजोर पड़ने से लॉकडाउन के बाद बाल श्रम और दुर्व्यापार बढ़ सकते हैं: केएससीएफ
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) की एक स्टडी रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश की गई है कि कोरोना महामारी की वजह से लागू लॉकडाउन के दौरान कुछ राज्यों में श्रम कानूनों के कमजोर पड़ने की समीक्षा की जानी चाहिए और उन्हें तत्काल रद्द कर दिया जाना चाहिए। रिपोर्ट में तर्क पेश किया गया है कि श्रम कानूनों के कमजोर पड़ने से बच्चों की सुरक्षा प्रभावित होगी, जिससे बाल श्रम में वृद्धि हो सकती है। साथ ही रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि कोरोना महामारी की वजह से उपजे आर्थिक संकट की वजह से 21 प्रतिशत परिवार आर्थिक तंगी में आकर अपने बच्चों को बाल श्रम करवाने को मजबूर हैं। लॉकडाउन के बाद बच्चों के दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) बढ़ने की भी आशंका जाहिर की गई है। गौरतलब है कि केएससीएफ की यह स्टड़ी रिपोर्ट भारत के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना महामारी से उपजे आर्थिक संकट और मजदूरों के पलायन आदि से बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन कर तैयार की गई है।
''ए स्टडी ऑन इम्पैक्ट ऑफ लॉकडाउन एंड इकोनॉमिक डिस्रप्शन ऑन लो-इनकम हाउसहोल्डस् विद स्पेशल रेफरेंस टू चिल्ड्रेन'' के नाम से केएससीएफ की यह स्टडी रिपोर्ट दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) प्रभावित राज्यों के 50 से अधिक स्वयंसेवी संस्थाओं और 250 परिवारों से बातचीत के आधार पर तैयार की है। रिपोर्ट में 89 प्रतिशत से अधिक स्वयंसेवी संस्थाओं ने सर्वे में यह आशंका जाहिर की है कि लॉकडाउन के बाद श्रम के उद्देश्य से वयस्कों और बच्चों, दोनों के दुर्व्यापार की अधिक संभावना है। जबकि 76 प्रतिशत से अधिक स्वयंसेवी संस्थाओं ने लॉकडाउन के बाद वेश्यावृत्ति आदि की आशंका से मानव दुर्व्यापार के बढ़ने की आशंका जाहिर की है और यौन शोषण की आशंका से बाल दुर्व्यापार बढ़ने की। इसलिए रिपोर्ट में इस बावत ग्रामीण स्तर पर एक ओर जहां अधिक निगरानी और सतर्कता बरतने की जरूरत पर बल दिया गया है, वहीं दूसरी ओर कानून प्रवर्तन एजेंसियों को और अधिक चौकस करने की सिफारिश की गई है। स्वयंसेवी संस्थाओं ने लॉकडाउन के बाद बाल विवाह के बढ़ने की भी आशंका जाहिर की है।
स्टडी रिपोर्ट के एक हिस्से के रूप में किए गए घरेलू सर्वेक्षण के दौरान पाया गया कि लॉकडाउन की वजह से 21 प्रतिशत परिवार आर्थिक तंगी में आकर अपने बच्चों को बाल श्रम करवाने को मजबूर हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होने पाए, इसलिए आसपास के गांवों में लगातार निगरानी तंत्र को विकसित करने की जरूरत है, ताकि लॉकडाउन से प्रभावित परिवारों के बच्चों को बाल श्रम के दलदल में फंसने से रोका जा सके। स्टडी रिपोर्ट यह भी कहती है कि पंचायतों, ग्रामीण स्तर के अन्य अधिकारियों और ब्लॉक अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने में प्रमुख भूमिका निभानी चाहिए कि बच्चे काम पर जाने की बजाए स्कूल जाएं।
स्टडी रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि व्यापार संचालन और विनिर्माण प्रक्रिया के फिर से शुरू होने के बाद संबंधित अधिकारियों को ऐसे प्रतिष्ठानों का औचक निरीक्षण करना होगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी बाल श्रमिक या दुर्व्यापार करके लाए गए बच्चे वहां कार्यरत नहीं हैं। रिपोर्ट में राज्य सरकारों से बाल श्रमिकों, बंधुआ मजदूरों और दुर्व्यापार से पीडि़त बच्चों की सभी क्षतिपूर्ति राशि के तत्काल भुगतान की भी सिफारिश की गई है। बच्चों को क्षतिपूर्ति राशि का तत्काल भुगतान करने से फायदा यह होगा कि जिन बच्चों को बाल शोषण से मुक्त कराया गया है, आर्थिक संकट से उबार कर उनको फिर से बाल श्रम और दुर्व्यापार के दलदल में धंसने से रोका जा सकेगा।
चूंकि लॉकडाउन ने वित्तीय संकट पैदा किया है और आर्थिक असुरक्षा की वजह से गरीब और हाशिए पर चले गए हैं, इसलिए वे अपने बच्चों को दुर्व्यापार के दलदल में धंसने को मजबूर कर रहे हैं। स्टडी रिपोर्ट कहती है कि इस स्थिति में पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) को अपनी भूमिका को बढ़ाने की जरूरत है। पंचायतों को गांवों में और बाहर के आने जाने वाले बच्चों पर नज़र रखने के लिए एक "माइग्रेशन रजिस्टर" बनाना अनिवार्य है। रिपोर्ट की सिफारिश है कि माइग्रेशन रजिस्टर को नियमित रूप से ब्लॉक अधिकारियों द्वारा जांच और सत्यापित भी किया जाना चाहिए।
केएससीएफ की रिपोर्ट बच्चों को दुर्व्यापार से बचाने के लिए इसके स्रोत क्षेत्रों में एक विस्तृत सुरक्षा जाल फैलाए जाने की जरूरत पर भी बल देती है। गांवों में बंधुआ बाल मजदूरी और दुर्व्यापार पर लगाम लगाने के लिए स्कूलों, समुदायों और स्थानीय प्रशासन को मिलकर काम करना होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि विशेष रूप से झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम जैसे दुर्व्यापार के स्रोत क्षेत्रों में दलालों के खतरों और उनके तौर-तरीकों से लोगों को जागरुक करने के लिए सघन अभियान चलाने की जरूरत है।
रिपोर्ट के अनुसार नियमित प्रशिक्षण के जरिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता को भी बढ़ाए जाने की जरूरत है। रेलवे के जरिए ही बच्चों का दुर्व्यापार कर एक गावों से महानगरों में ले जाया जाता है। इसलिए रेलवे के माध्यम से भी ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों का दुर्व्यापार रोका जाना चाहिए, जिसमें बाल दुर्व्यापार विरोधी ईकाईयों (एएचटीयू) और रेलवे पुलिस (जीआरपी) की मदद कारगर हो सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रत्येक गांव में नाबालिग लड़कियों की शादी को रोकने और समुदाय को इसके बुरे प्रभावों से अवगत कराने के लिए ग्राम्य स्तर की बाल संरक्षण समितियों (वीसीपीसी) को सक्रिय करना होगा। वीसीपीसी इस उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध होकर काम करे, इसको भी सुनिश्चित करना होगा। रिपोर्ट में नाबालिग लड़कियों की शादी को रोकने की सूचना देने हेतु एक हेल्पलाइन की भी शुरू करने की जरूरत पर बल दिया गया है।
गौरतलब है कि केएससीएफ द्वारा बच्चों को शोषण मुक्त बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानव दुर्व्यापार विरोधी दिवस 30 जुलाई को राष्ट्रीय स्तर पर ''जस्टिस फॉर एवरी चाइल्ड'' अभियान की भी शुरुआत की जा रही है। इस दिन "100 मिलियन फॉर 100 मिलियन" नामक कैम्पेन के माध्यम से दुर्व्यापार के खिलाफ जागरुकता बढाने और भारत में सभी बच्चों को 12वीं तक मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की मांग की जाएगी। गौरतलब है कि यह पहल समाज के गरीब और कमजोर तबकों के बच्चों को कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभाव से बचाने की कार्रवाई करने हेतु एक आह्वान भी है। यह देशव्यापी अभियान अगले तीन महीने तक चलेगा। जिसमें देशभर के युवा-नेतृत्व वाले संगठन और छात्र निकाय अपनी एकजुटता दिखाते हुए नीति निर्माताओं और सरकारों को बाल दुर्व्यापार के प्रति आगाह करते हुए उनसे इसे खत्म करने की मांग करेंगे।