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जब ₹800 वेतन नहीं दे पा रही थी इंदिरा गांधी की कांग्रेस

Shiv Kumar Mishra
28 Aug 2020 4:27 AM GMT
जब ₹800 वेतन नहीं दे पा रही थी इंदिरा गांधी की कांग्रेस
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इंदिरा से लेकर सोनिया के कार्यकाल में अवैध कमरों पर तो जोर दिया गया लेकिन शौचालय बढाने पर जोर नहीं दिया गया जिससे बड़ी समस्या बनी रहती है.

साल 1978 में जनवरी महीने की कड़ाके की ठंड बाली सुबह थी. शोभन सिंह और विभाजित कांग्रेस के 20 कर्मचारी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सबसे पहले 24 अकबर रोड में दाखिल हुए. दिल्ली के लुटियंस में टाइप 7 का यह बंगला आंध्र प्रदेश से राज्यसभा सांसद जे वेंकटस्वामी के नाम था. वेंकटस्वामी उन चंद नेताओं में थे जिन्होंने तब इंदिरा गांधी से जुड़े रहने का फैसला किया था. उस समय ज्यादातर कांग्रेसी नेताओं ने डरकर इंदिरा गांधी से दूरी बना ली थी. उनसे नजदीकी जनता पार्टी सरकार को प्रतिशोध पूर्ण कार्रवाई के लिए आमंत्रित करेगी . आपातकाल के बाद का समय इंदिरा गांधी के लिए परीक्षा साबित हो रहा था न केवल अपनी सारी पावर कमा चुकी थी बल्कि जाने के साथ ही उनका सरकारी आवास भी उनके हाथ से निकल चुका था. उनका महरौली स्थित फार्म हाउस भी अभी आज बना था और अब उनके जीवन से उनके सभी नजदीकी दोस्त उनका साथ छोड़ दे जा रहे थे इंदिरा गांधी इससे अपने निजी जीवन में बड़ी प्रभावित हो रही थी जब इंदिरा गांधी की दिक्कतें और बड़ी तो उनके पुराने वफादार मोहम्मद यूनुस ने अपना 12 विलिंगडन क्रीसेंट आवाज उनके परिवार को रहने के लिए दिया और खुद दक्षिण दिल्ली स्थित अपनी निजी आवास में चले गए.

इस तरह 12 विलिंगडन क्रीसेंट गांधी परिवार का नया ठिकाना बना. इंदिरा गांधी वहां राजीव गांधी, सोनिया गांधी, बच्चे राहुल और प्रियंका, संजय गांधी, मेनका गांधी और पांच पालतू कुत्ते के साथ आई. लेकिन इस घर में इतनी जगह नहीं थी यहां से किसी तरह की राजनीतिक गतिविधियां चलाई जा सके. इसलिए 24 अकबर रोड को कांग्रेसका नया हेड क्वार्टर बनाया गया. जो अगले चार दशक तक बहुत भाग्यशाली साबित हुआ. इस भवन का एक फायदा यह भी था इसका एक दरवाजा दस जनपथ को जोड़ता था. जो उस समय यूथ कांग्रेस का कार्यालय हुआ करता था. जहां आज सोनिया गांधी का आवास है.

खाली हाथ थी इंदिरा

जब 1980 में इंदिरा गांधी विशाल बहुमत के साथ सत्ता में लौटी तो उन्होंने साथ जंतर मंतर रोड पर दोबारा दावा नहीं किया. हालांकि उनके पुत्र संजय गांधी ऐसा चाहते थे उन्होंने संजय गांधी से कहा कि पार्टी को एक बार नहीं बल्कि दो बार से बनाया है. वह फिर ऐसा करेंगे इस नए कार्यालय को इस तरह से तैयार करेंगे जो दशकों तक कार्यकर्ताओं के काम आएगा. 1978 में पार्टी विभाजन के बाद इंदिरा कांग्रेस के पास कुछ भी नहीं बचा था. उस समय कार्यालय के सचिव सादिक अली ने पार्टी से तमाम दस्तावेज तक यहां तक की किताबें भी इंदिरा गांधी को सौंपने से इंकार कर दिया था. बूटा सिंह,अब्दुल रहमान अंतुले और दूसरे नेता जब 24 अकबर रोड में दाखिल हुए थे तो बिल्कुल खाली हाथ थे. लेकिन इंदिरा गांधी की भविष्यवाणी सच साबित हुई 24 अकबर रोड कांग्रेस के लिए एक नई जिंदगी साबित हुआ जिस तरह मुगल सम्राट अकबर जिसके नाम पर यह रोड है शुरुआत में आए थे. लेकिन बाद में उन्होंने अपने को स्थापित किया उसी तरह कांग्रेस ने भी यहां से शुरुआती मुश्कलों के बाद खुद को स्थापित किया. 24 अकबर रोड में दाखिल होने के बाद और दूसरे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने पार्टी पदाधिकारियों अध्यक्ष इंदिरा गांधी महासचिव यार अंतुले बूटा सिंह एपीसीपी मौर्य और कोषाध्यक्ष प्रणब मुखर्जी के लिए अलग-अलग व्यवस्थित करने का काम शुरू किया. सबसे बड़ा कमरा जो लिविंग डाइनिंग रूम हुआ करता था उसे अध्यक्ष के कार्यालय में बदला गया. एक बैंत की कुर्सी और छोटी मेज का इंतजाम किया गया. लेकिन दीवारें खाली थी. फर्श पर बिछाने के लिए कालीन और दरी तक नहीं था. शोभन सिंह जो कि 2009 तक कांग्रेस के साथ-साथ अपनी सेवा के लगातार 52 वर्ष पूरे कर चुके थे याद करते हुए कहते हैं. बूटा सिंह जी ने मुझसे कहा था कि पार्टी इस स्थिति में नहीं है कि मुझे तनखा दे सके जो कि उस समय ₹800 महीने हुआ करती थी. मैंने बूटा सिंह जी से कहा कि जब तक मैं नहीं लूंगा यह सुनकर सिंह जी खड़े हुए और मुझे अपनी बाहों में भर लिया.

अवैध निर्माण का जोर

अब अकबर रोड में बहुत सारा बदलाव हो चुका था हालांकि जो मुख्य बहुत ज्यादा नहीं हुई थी. लेकिन अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा विस्तार हुआ था . आठ कमरे वाले इस भवन में 34 कमरे हो चुके हैं लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष कोषाध्यक्ष और सीनियर महासचिव के हिस्से में मुख्य बंगला ने आज भी ली है. इसके अलावा कर्मचारियों के लिए आवासीय ब्लोक बन चुके हैं. हर घर में बिजली एसी लगा हुआ है . यह सब अवैध निर्माण है. असल में जब जब कांग्रेस दिल्ली में सत्तारूढ़ हुई तब तब उसके शहरी विकास मंत्रालय ने कार्यलय में आकर विकास सम्बंधी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. मंत्री चाहे बूटा सिंह रहे हो या शीला कौल सबने ऑफिस में काम कराया था जो अवैध है. इंदिरा से लेकर सोनिया के कार्यकाल में अवैध कमरों पर तो जोर दिया गया लेकिन शौचालय बढाने पर जोर नहीं दिया गया जिससे बड़ी समस्या बनी रहती है.

रशीद किदवई वरिष्ठ पत्रकार

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