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जब इंदिरा ने आर.एन. काव को बुलवाया दिया इस राज्य को जीतने का निर्देश!

Shiv Kumar Mishra
24 May 2020 11:37 AM GMT
जब इंदिरा ने आर.एन. काव को बुलवाया दिया इस राज्य को जीतने का निर्देश!
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इंदिरा का जीता हुआ, सिक्किम आखरी बड़ा स्टेट था। इसके बाद राजीव ने पाकिस्तान से सियाचिन 1987 में जीता।

मनीष सिंह

मोटे फ्रेम का चश्मा लगाने वाले काव, स्पाईमास्टर थे। इनेटेलीजेन्स ब्यूरो के प्रमुख और भारत की रॉ के असली फाउंडर। बंगलादेश युध्द के वक्त से काव ने इंदिरा का भरोसा जीता था। उन्होंने काव को बुलाकर पूछा- सिक्किम में कुछ कर सकते हो??

यह प्रश्न नही था, अनुमति थी। सिक्किम को अब भारत का हिस्सा बनाना मजबूरी हो गयी थी। वैसे तो 1967 के चो-ला दर्रे में चाइनीज हमले को बेकार किया जा चुका था, मगर अब सिक्किम के राजा साहब ही में चीन से पींगे बढ़ा रहे थे। नीचे पश्चिम बंगाल में नक्सलबाड़ी का वामपन्थी आतंक सर उठा चुका था। नार्थ ईस्ट से जोड़ने वाली चिकन नेक, ब-रास्ते सिक्किम, चीन के हाथ लगने वाली थी।

यह 1973 था। काव ने काम शुरू कर दिया।

सत्रहवीं सदी में, जब मुगलिया सल्तनत का सूरज डूबने लगा, पूर्वोत्तर में नामग्याल वंश का सूरज उगा। तिब्बती नामग्यालों ने, आप उन्हें भूटिया कौम के नाम से ज्यादा जानते हैं, सिक्किम राज्य की स्थापना की। जल्द ही इस पर नेपाल राजा की नजर लगी, और बड़े इलाके उन्होंने जीत लिए।

वक्त बदला, भारत मे अंग्रेजी राज आया, नेपालियों से झगड़े और युध्द हुए। जब समझौता हुआ, तो कुमाऊँ गढ़वाल सहित नेपाल का बड़ा हिस्सा भारत मे मिला लिया गया। इसे सुगौली की संधि कहते है। इसी क्रम में सिक्किम के इलाके भी नेपाल से छीनकर नामग्याल राजा को दे दिए गए। "ट्रीटी ऑफ टीटालिया" हुई, अंग्रेज नामग्याल भाई भाई ..

दोस्ती बनी रहे..., सब चाहते हैं। होता कहाँ है। अब ठंडे देश के अंग्रेज, एक ठो हिल स्टेशन चाहते थे। उनके अड्डे , याने कलकत्ता के करीब दार्जिलिंग था, उसे सिक्किम से मांग लिया। कहे, की इलाके से जितना कमाते हो, हम दे देंगे। लीज पे दे दो। नामग्याल मान गए। ब्रिटिश ने 6000 के एनुअल रेंट पर दार्जिलिंग को पट्टे पर ले लिया।

... और पैसे देना भूल गये। नामग्याल राजा ने दार्जिलिंग पर हमले करवाये, गुस्सम गुस्सी की। ब्रिटिश ने सेना भेजी, राजा को औकात बताई। लेकिन फिर पैसे दे दिए। अब सिक्किम पर ब्रिटिश भारत का अघोषित कब्जा था। राजा की औकात, अधिक से अधिक आज के कलेक्टर जैसी हो गयी।

1890 के आसपास सिक्किम को बाकायदा प्रोटेक्टोरेट का दर्जा दे दिया। याने विदेश-रक्षा ब्रिटिश डिसाइड करेंगे। राजा भले ही राज करते रहे, लेकिन हमारे पोलिटिकल एजेंट से पूछकर। यह दर्जा 1950 तक रहा

अंग्रेज गये, नेहरू-पटेल एक एक कर सारे राज्यो से एक्सेशन साइन करवाकर भारत का मैप बढाते रहे। हर राजा से अंग्रेजो की ट्रीटी, थोड़ी बहुत अलग किस्म की होती थी। उन समझौतों की लीक पर ही नए समझौते होते, क्योकि भारत सरकार ब्रिटिश सरकार की उत्तराधिकारी थी। नये समझौते में पुराने स्टेटस को भी ध्यान रखना होता है। दोनो ओर से कुछ नई बातें भी जोड़ी जाती, जो (उस समय तक नही बने) सम्विधान में मेंशन करना होता था। 370, 371,372 जैसे अनुच्छेद इसीलिए बनाने पड़े।

तो सिक्किम का अलगे स्वैग था। अकेला राज्य था जिसे प्रोटेक्टोरेट का दर्जा था। उंसके उत्तर का तिब्बत, अब चीन हो चुका था। यहां खतरा अलग किस्म का था। तो भारत सरकार ने उसके प्रोटेक्टोरेट दर्जे से छेड़खानी नही थी। विदेश, रक्षा हमारी.. आप राज करो, लेकिन हां, चुनाव वगेरा करवा लो, सीएम रखो। हमारा पोलिटीकल एजेंट भी रहेगा।

नामग्याल को नेहरू पर भरोसा था। समझौता हो गया। ठीक ठाक सब चलता रहा। मगर 1962 में चीन ने खुला हमला किया। 1963 में राजा नामग्याल मर गए, 64 में नेहरू मर गए।

जियो पॉलिटिक्स और खिलाड़ी सब बदले हुए थे। बाप नामग्याल के बाद बेटा नामग्याल राजा हुए। साहेब ने,एक अमरीकी पत्रकारन "होप कुक" से ब्याह कर लिया। मैडम सिक्किम आ गयी, तो अलगै खिचड़ी कुक करने लगी।

होप कुक बेहद प्रभावशाली हो गयी। राज की असल मालकिन औऱ सिक्किम की रानी। राजा को अपने झंडे की इजाजत थी, मगर विदेश में तिरंगा ही यूज करना था। मैडम "सिक्किम देश" को रिप्रेजेंट करने लगी। आर्टिकल्स लिखती, सिक्किम को स्वतंत्र बताती। भारत की चिंताएं बढ़ी।

कुछ और और खिलाड़ियों की एंट्री हुई। इंदिरा भारत मे सत्ता में आयी, अमेरिका मे निक्सन। निक्सन- किसिंजर चीन से "पिंगपांग डिप्लोमेसी" खेल रहे थे। निक्सन "ओल्ड बिच" याने इंदिरा को उलझाने के लिए, होप कुक का इस्तेमाल करने लगे। इधर चाइनीज डिप्लोमेट्स चोरी छुपे सिक्किम में घुसने लगे। इंदिरा ने काव को बुलाकर पूछा - सिक्किम में कुछ कर सकते हो??

सिक्किम में कुछ होने लगा। राजा के विरुद्ध आंदोलन, पूर्ण डेमोक्रेसी की मांग, भूटिया-नेपाली मारपीट, तमाम कांय-कचर। राजा इनसिक्योर हुए, "मदद" के लिए भारत का अमला सिक्किम में घुस गया। सिक्किम का नया सम्विधान बनाने की मांग प्रेस में उभरने लगी। राजाजी और पगलाए। नया सम्विधान, याने प्रोटेक्टोरेट दर्जा और नामग्याल का पद खत्म हो जाने का खतरा। आंदोलन कुचलने के लिए उल्टे सीधे आदेश दिए।

अब कौन जाने, उन्होंने दिए, की नही दिए। हल्ला यही था। सीएम साहब को मजबूर होकर, जनता की खुशी के लिए, सदन की बैठक बुलानी पड़ी। नामग्याल का पद ही सदन के प्रस्ताव से खत्म कर दिय। भारत सरकार से मदद मांगी। अब बेचारी इंदिरा क्या करती, सिक्किम की जनता के भले के लिये सेना भेजनी पड़ी। 18 अप्रैल 1975 को गंगटोक पैलेस में एक सैनिक मरा, बाकी ने सरेंडर कर दिया। राजाजी होम अरेस्ट कर दिए गए।

फिर फ़टाफ़ट जनमत संग्रह हुआ। लोग कहते हैं कि धांधली हुई, मैं नही मानता। मुझे इतना पता है, सिक्किम की जनता ने भारत मे मिलना अप्रूव कर दिया। कतिपय स्पेशल प्रावधानों के साथ इसे भारत गणराज्य का अभिन्न हिस्सा बना लिया गया।

इंदिरा का जीता हुआ, सिक्किम आखरी बड़ा स्टेट था। इसके बाद राजीव ने पाकिस्तान से सियाचिन 1987 में जीता।

1967 में आईपीएस में एक यंग लड़का सलेक्ट हुआ था, जिसे रेगुलर पुलिसिंग में खास रुचि न थी। उसने इंटेलिजेंस ब्यूरो जॉइन कर ली, पोस्टिंग की शुरुआत नार्थ ईस्ट में हुई। यह सिक्किम में एजेंसी की अतिसक्रियता का दौर था। उस यंग अफसर ने बेहद करामाती काम किया। आगे का कैरियर इंटेलिजेंस मे ही गुजरा। एक बात उसने गांठ बांध ली- गवर्नमेंट्स सेक्युरिटी, कम्स थ्रू पीपुल्स इंसिक्यूरिटी।

बन्दा आजकल आपकी सरकार का आल इन वन एडवाइजर है।

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