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देश में मरीजों की संख्या हुई प्रतिदिन दस हजार के पास, कहाँ है ताली बजाने वाली जनता और हांकने वाले नेता!
सुबह-सुबह फेसबुक पर ही एक विज्ञापन दिखा जिसमें देश के लिए आम चूस कर खाते हैं कि काट कर, जानना चाहने वाले महान सरकारी 'पत्रकार' मास्क लगाए सड़क पर पर चले जा रहे हैं। एक बंगले में टहलते साहब उन्हें टोकते हैं कि लॉकडाउन घूमने के लिए नहीं है और पत्रकार जी बताते हैं कि मास्क लगाकर जाना सुरक्षित है।
कुल मिलाकर, 13 मार्च को हेल्थ इमरजेंसी नहीं है कहने वालों ने मार्च अंत तक यह हालत बना दी थी कि अंतरात्मा की आवाज वाले कह रहे थे कि लोग अपने घर नहीं जा सकते। राज्य की सीमा पर ही रोक दिया जा रहा था। आरडब्ल्यूए वाले लोगों को अपने घरों में नहीं रहने दे रहे थे। क्वारंटीन सेंटर की हालत जाने बगैर चाहते थे कि उनका पड़ोसी भले 3500 वर्ग फीट के फ्लैट में रहता है किसी सरकारी व्यवस्था में रहे जो किसी घटिया होटल में भी नहीं की गई थी।
फिर आया लॉक डाउन। सख्ती बढ़ी। गरीब मरा और मजबूर रहा। पैदल और मौत के कुंओं से घर पहुंच गया तो अब सब ठीक है। पांच सौ बीमार थे तो इतनी चिन्ता। दो लाख बीमार (संक्रमित) हैं तो मास्क लगाओ मस्त रहो। धन्य है ताली बजाने वाली जनता और उसे सफलता पूर्वक हांक लेने वाले नेता।
अब मार्च में पहले लॉकडाउन के शुरुआत के दौरान मरीजों की संख्या सिर्फ पांच सौ थी। अब यह संख्या लगभग सवा दो लाख होने जा रही और न किसी राज्य की सीमा पर कोई चिंता है न कोई बोर्डर पर कोई चिंता है। बस अब किस बात के लिए देश को दोढाई महीने बंद करके बरबाद करने वाले अब खामोश क्यों है? क्योंकि जब बंद करने के समय नहीं था तब बंद किया और जब खोलने का समय नहीं था तब खोला गया है।
क्योंकि अब जो लोग दिल्ली में फंसे हुए है अब बो घर की और भाग रहे है जो भीड़ से गुजरकर जाने में भी गुरेज नहीं करेंगे। लिहाजा अब भारत में कोरोना रोकना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन है।