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क्यों कोरोना की इस बड़ी बात को कहकर मुकर गई मोदी सरकार?

Shiv Kumar Mishra
27 March 2020 8:35 AM GMT
क्यों कोरोना की इस बड़ी बात को कहकर मुकर गई मोदी सरकार?
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गिरीश मालवीय

15 मार्च को जब देश मे कोरोना की वजह से हुई मौतों की संख्या बढ़नी शुरू हुई थी तो उस दिन दोपहर के साढ़े 3 बजे के लगभग न्यूज़ चैनल पर एक ब्रेकिंग न्यूज़ चली कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने कोरोना वायरस को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया है ओर कोरोना मृतकों के परिजनों को 4-4 लाख मुआवजा दिया जाएगा.

लेकिन उसी शाम शाम 6.10 को सरकार ने नया आदेश जारी किया, जिसमें मौत पर मुआवजे की बात गायब थी इस आदेश में कोरोनावायरस को आपदा तो माना गया, लेकिन मृतक के परिवार को मुआवजे देने का कोई जिक्र नहीं था.

शायद मोदी सरकार को भनक लग गयी थी कि मृतकों की संख्या बहुत बढ़ सकती हैं और यदि हमने मुआवजे का एलान किया तो यह रकम देना बहुत भारी पड़ जाएगा उसे यह भी आशंका होगी कि लोग साधारण मृत्यु को कोरोना से हुई मृत्यु लिखवाएंगे ओर मुआवजा वसूलने के प्रयास कर सकते है.

बहरहाल 24 मार्च को सरकार ने पूरे देश मे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू किया है. यह अधिनियम देश में पहली बार लगाया गया है. आमतौर पर स्वास्थ्य से जुड़े मामले राज्य सरकार के अधीन आते हैं. लेकिन इस अधिनियम के लागू होने पर खास बात यह है कि अब स्वास्थ्य से जुड़े मामले केंद्र देखेगा.

कोरोनावायरस को देश के लिए खतरा बताते हुए गृह मंत्रालय ने अपने आदेश में कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण इस संबंध में जरूरी कदम उठाएगा. राज्यों से साफ साफ कहा गया है कि उन्हें कोरोनावायरस के मामले में केंद्र के निर्देशों का पालन करना होगा.

देश भर में जो लॉक डाउन किया गया है यदि उसका उल्लंघन किया गया तो लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों पर एनडीएमए (NDMA) अधिनियम के तहत प्रावधान लागू होंगे आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51 से 60 और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 188 के तहत कार्रवाई होगी. धारा 188 के तहत छह महीने की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.

अब कोरोना को राष्ट्रीय आपदा कहा गया है . राष्ट्रीय आपदा का अर्थ है- किसी क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से, इंसान या किसी दुर्घटना की वजह से भारी विपत्ति आना। इससे जनहानि या संपत्ति का इतना नुकसान हो कि स्थानीय समुदाय के लिए उससे निपटना असंभव हो। बाढ़, तूफान, चक्रवात, भूकंप, सुनामी को प्राकृतिक आपदा और एटमी, जैविक या रासायनिक आपदाओं को मानव जनित आपदा कहा जाता है। हालांकि, इसे घोषित करने के लिए कोई तय मानक नहीं हैं.

इस एक्ट के अंतर्गत देश मे एक सुप्रीम बॉडी का गठन किया गया है जिसे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण NDMA कहा गया है यह अब देश में आपदा प्रबंधन के लिये सर्वोच्च निकाय है, अब यही NDMA कोरोना की आपदा का मैनेजमेंट करने के लिये नीतियों, योजनाओं एवं दिशा-निर्देशों का निर्माण करने के लिये ज़िम्मेदार संस्था है, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस प्राधिकरण की अध्यक्षता की जा रही है .

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में एनडीआरएफ की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है NDRF को जगह जगह मदद के लिए भेजा जाता है। इस एक्ट के नियमों के अनुसार आपदा राहत कोष के जरिए 75% मदद केंद्र और 25% राज्य सरकार करती हैं। जरूरत होने पर केंद्र के 100% फंडिंग वाले 'राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक फंड' से अतिरिक्त सहायता दी जाती है। प्रभावित लोगों को कर्ज में रियायत दी जाती है। लेकिन अभी मुआवजा या राहत की कोई घोषणा नही है NDRF तो अभी तक तो सीन में ही नही है .

वैसे NDRF को क्या दोष देना ! एनडीआरएफ में सिर्फ 12 बटालियन होती हैं , जिनमें BSF और CRPF से तीन-तीन और CISF, SSB और ITBP से दो-दो बटालियन होती है. अभी ये सारी बटालियन अभी पता नही कहा कहा तैनात होगी? वैसे कहा जाता है कि NDRF की सभी बटालियन तकनीकी दक्षता से युक्त होती हैं और रेडियोलॉज़िकल, जैविक, नाभिकीय और रासायनिक आपदाओं से निपटने की इन्हें विशेष ट्रेनिंग दी जाती हैं.

NDRF की इन बटालियन को तुरंत इकठ्ठा किया जाना चाहिए और उनकी तैनाती हर प्रमुख शहरों में की जानी चाहिए नही तो यह आपदा प्रबंधन अधिनियम की सारी कवायद बेकार जाने वाली है.

लेखक आर्थिक जगत के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार है

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