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महमूद मदनी के इस्तीफे से मुस्लिम राजनीति में क्यों मचा है बवाल?

Special Coverage News
17 Jan 2019 4:34 AM GMT
महमूद मदनी के इस्तीफे से मुस्लिम राजनीति में क्यों मचा है बवाल?
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दिलचस्प बात यह है कि दो लाइन के इस इस्तीफ़े में महमूद मदनी ने व्यंग्यात्मक भाषा का इस्तेमाल किया है।

विश्व के जाने-माने धर्मगुरु मौलाना महमूद मदनी ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। यह इस्तीफा उन्होंने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना क़ारी मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी को भेजा है। उन्होंने अपने इस्तीफ़े में कहा है कि अपनी निजी व्यस्तताओं की वजह से वह महासचिव पद से इस्तीफ़ा दे रहे हैं। लेकिन सूत्रों ने दावा किया है कि उन्होंने सिर्फ़ महासचिव पद से इस्तीफ़ा दिया है। वह जमीयत के संस्थापक सदस्य हैं और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं और आगे भी बने रहेंगे। अभी तक उनका इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं किया गया है। इससे पहले भी वो एक बार इस्तीफा दे चुके है।

सबसे खास और अहम बात यह है कि दो लाइन के इस इस्तीफ़े में महमूद मदनी ने व्यंग्यात्मक भाषा का इस्तेमाल किया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष को लिखे अपने इस्तीफ़े में उन्होंने लिखा है, 'बहुत ही एहतराम के साथ जनाब-ए-वाला की ख़िदमत में यह आजिज़ाना गुज़ारिश है कि यह नाकारा अपनी तमाम तर नाअहलियों (ना क़ाबिलियत) और व्यक्तिगत व्यस्तताओं की वजह से राष्ट्रीय महासचिव के पद से इस्तीफ़ा देता है।' अपने इस्तीफ़े में इस्तेमाल की गई इस तरह की भाषा से अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि शायद जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सदर के साथ उनके विवादों की खाई काफ़ी बढ़ गई है।

सूत्रों के मुताबिक़, जमीयत उलेमा-ए-हिंद की अगुआई पूरी तरह महमूद मदनी करते हैं। बतौर सदर उन्होंने मौलाना क़ारी मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी को रखा हुआ है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से उस्मान मंसूरपुरी पूरी ही जमीयत की बागडोर संभालने की कोशिश कर रहे हैं। इसी विवाद के चलते महमूद मदनी ने गुस्से में आकर इस्तीफ़ा दिया है और इस व्यंग्यात्मक भाषा का इस्तेमाल किया है।

इस्तीफ़ा नामंजूर तो नहीं होगा?

महमूद मदनी का यूँ अचानक महासचिव पद से इस्तीफ़ा देना जमीयत उलेमा-ए-हिंद के कई लोगों को अखर रहा है। इसकी कोई वजह भी समझ में नहीं आ रही है। लिहाज़ा लोग अंदाज़ा लगा रहे हैं कि शायद एक-दो दिन में ही मौलाना क़ारी मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी उनके इस्तीफ़े को नामंजूर करने का एलान कर दें। यह देखना दिलचस्प होगा कि अपने ही बनाए संगठन में महमूद मदनी का इस्तीफ़ा मंजूर होता है या संगठन उन्हें बतौर सर्जरी ज़िम्मेदारी संभालने या जनरल सेक्रेटरी के रूप में ही बनाए रखने का फ़ैसला करता है। जमीयत के तमाम लोगों की नज़रें इस पर लगी हुई हैं। इससे पहले भी एक बार उन्होंने इस्तीफा दिया था तब भी नामंजूर कर दिया गया था।


मालुम हो कि 2008 में अपने वालिद मौलाना असद मदनी के इंतकाल के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद की अगुवाई को लेकर अपने चाचा मौलाना अरशद मदनी के साथ महमूद मदनी का विवाद हुआ था। काफ़ी लंबे चले इस झगड़े के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद दो हिस्सों में बँट गई थी। एक हिस्से की अगुवाई मौलाना अरशद मदनी करते हैं। इसे जमीयत उलेमा-ए-हिंद अली (अलिफ) के नाम से जाना जाता है। जबकि महमूद मदनी की अगुआई वाले धड़े को जमीयत उलेमा-ए-हिंद (मीम) के नाम से जाना जाता है। पूरे संगठन को महमूद मदनी चलाते हैं। बस, उन्होंने नामचारे के लिए मौलाना क़ारी मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी को सदर की जिम्मेदारी सौंपी हुई है। इस दौरान उन पर कई गंभीर आरोप भी लगते रहे है जिसके चलते उन्हें कुछ दिन जेल की भी हवा खानी पड़ी है। अब सबकी निगाह उनके इस्तीफे पर टिकी हुई है।


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