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इंडियन एक्सप्रेस दिल्ली के बजाय महाराष्ट्र की खबरों को महत्व क्यों दे रहा है?
संजय कुमार सिंह
बोफर्स और राजीव गांधी के जमाने में सत्ता विरोधी प्रतिष्ठान होने का दावा करने वाले इंडियन एक्सप्रेस ने आज नासिक के एक अस्पताल में 24 मरीजों की मौत की खबर को लीड बनाया है और मैक्स अस्पताल चलाने वाले मैक्स हेल्थकेयर नेटवर्क की अपील पर दिल्ली हाईकोर्ट की इस टिप्पणी को कम महत्व दिया है कि सरकार वास्तविकता को देखती नहीं लग रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री की अपील के बावजूद कल यह स्थिति आई पर खबर को महाराष्ट्र में कोविड की स्थिति से कम महत्व दिया गया है। यह तथ्य है कि दो बार इंडियन एक्सप्रेस के संपादक रहे अरुण शौरी भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे। पत्रकार कांग्रेस सरकार से भी सुविधा पाते रहे हैं पर अब अखबारों का पक्षपात साफ दिखाई दे रहा है और ऐसे में आपको टेलीग्राफ का रुख सरकार विरोधी या विपक्ष के समर्थन में लग सकता है लेकिन जनहित में वही है।
द टेलीग्राफ के पहले पन्ने पर आज कोविड से संबंधित स्थितियों की कई तस्वीरें हैं और इनवर्टेड कॉमा में शीर्षक है, "चुनाव सरकार को जिम्मेदार ठहराने के लिए होते हैं। पूरे देश की उम्मीद बंगाल के मतदाताओं के हाथों में हैं।" जाहिर है यह किसी और ने कहा है, अखबार नहीं कह रहा है। पर बात सही है और मतदाताओं को पता होना चाहिए। लेकिन अखबारों में छपे ही नहीं तो उन्हें याद कैसे दिलाया जाए? कोविड के कारण राहुल गांधी ने रैली नहीं करने की घोषणा कर दी है (वे खुद भी संक्रमित हैं) और ममता बनर्जी ने रैली कम करने की घोषणा की है। दूसरी ओर मतदान के दिन भी रैली करने की व्यवस्था कर चुकी सत्तारूढ़ पार्टी आज भी रैली कर रही है। केंद्रीय गृहमंत्री आज बंगाल में तीन चुनावी सभाएं करेंगे।
द टेलीग्राफ की यह खबर पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के ट्वीट से प्रेरित है और शीर्षक भी उसी से लिया गया है। बेशक, कांग्रेस का या कांग्रेस नेता का यह पक्ष आम जनता को अखबारों से ही पता चलेगा और ज्यादातर अखबार अगर किसी एक पार्टी का ही पक्ष छापें तो किसी को विपक्ष का पक्ष भी रखना ही पड़ेगा। द टेलीग्राफ के पहले पन्ने की ही तरह आज इसकी लीड भी अलग है। इसके अनुसार कोविड नेतृत्व के खालीपन से लड़ रहा है। जो सवाल बमुश्किल सुने जाते हैं वो अदालतों में गूंज रहे हैं। पर क्या आपको खबर है?
द टेलीग्राफ की इस खबर के अनुसार, "दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा, केंद्र सरकार स्थिति की गंभीरता को क्यों नहीं समझ रही है? हम चकित और निराश हैं कि अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं है पर स्टील प्लांट चल रहे हैं।" आज के अखबारों में ऐसे कितने ही शीर्षक हो सकते थे पर इंडियन एक्सप्रेस ने कोरोना के टीके की कीमत केंद्र और राज्य सरकार द्वारा अलग रखे जाने की खबर को छह कॉलम में छापा है और बताया है कि राज्यों ने कहा कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ और अनुचित है। मेरे ख्याल से नामुमकिन मुमकिन है जब पहले कहा जा चुका है तो राज्य सरकार ज्यादा दाम देकर दवाई या टीका कब खरीदती हैं यह कौन नहीं जानता है। पर संपादकीय स्वतंत्रता भी कोई चीज होती है। मुझे अब समझ में आ रहा है कि पाठकों को मूर्ख समझना भी संपादकीय स्वतंत्रता का हिस्सा है।
आज की खबर जैसे छपनी चाहिए थी वैसे हिन्दुस्तान टाइम्स ने छापी है। इसमें देश भर में कोरोना की हालत के साथ दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी से संबंधित राजनीति की भी खबर है। टाइम्स ऑफ इंडिया में मनीष सिसोदिया का बयान शीर्षक है, "राज्य हमारी आपूर्ति बाधित कर रहे हैं।" वैसे, हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर से स्थिति जितनी भयावह है उसे दिखाने के लिए कोई प्रतीकात्मक फोटो नहीं है। इसे आंकड़े और ग्राफ से बताने की गंभीर और वाजिब कोशिश की गई है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने अन्य अखबारों से अलग, पहले पन्ने पर तीन कॉलम में यह भी बताया है कि, "कोविड की छाया में आज पश्चिम बंगाल में छठे चरण का मतदान है"।
ऑक्सीजन की कमी के बारे में मैंने कल टाइम्स ऑफ इंडिया की खबरों के हवाले से बताया था कि ऑक्सीजन का कोटा निश्चित था और उसे बढ़ाए जाने की आवश्यकता थी। पर केंद्र सरकार की तरफ से कोटा और आवंटन की बात की जा रही थी जो 1990 के पहले की बात है। बाद में तो कोटा- परमिट सुनने को भी नहीं मिलता था। अब फिर उसकी बात हो रही है तो स्पष्ट किया जाना चाहिए पर ऐसा किसी और अखबार में नहीं था। आज फिर सिर्फ टाइम्स ऑफ इंडिया ने प्रमुखता से बताया है कि दिल्ली में ऑक्सीजन का कोटा तो बढ़ा दिया गया पर स्थिति अभी भी मुश्किल है। इस संबंध में पड़ोसी राज्य की राजनीति की भी चर्चा है लेकिन अखबारों में कुछ स्पष्ट अभी मिला नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस ने केंद्र सरकार के लिए दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश जरूर छापा है कि, "भीख मांगो, उधार लो, चोरी करो, ऑक्सीजन देना तुम्हारा काम है" पर इस मामले की राजनीति नहीं समझ में आ रही है।
इंडियन एक्सप्रेस में आज भाजपा कार्यकर्ताओं की आम चिन्ता दर्शाने वाली एक खबर है पर यह खबर पार्टी के मुखपत्र में जैसे छपती वैसे ही छपी है। किसी एक गुट की शिकायत की तरह जबकि यह सबके लिए है और सच है तो देश की गंभीर हालत बयान करती है। आप जानते हैं कि गाजियाबाद के सांसद और केंद्रीय मंत्री रिटायर्ड जनरल वीके सिंह ने हाल में अपने भाई के लिए अस्पताल में जगह तलाशने से संबंधित ट्वीट किया था। बाद में वे इससे मुकर गए और ट्वीट डिलीट करने के साथ स्पष्टीकरण भी दिया। अब जब वैसी ही खबर रिपोर्टर रवीश तिवारी ने की है और उसे बाईलाइन भी है तो यह टॉप की खबर है, रूटीन नहीं। फिर भी, छपी यह कम नहीं है।