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प्रियंका सक्रिय राजनीति में आई तो बीजेपी क्यों घबराई
यूसुफ़ अंसारी
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी नियुक्त कर दिया है। वहीं मध्य प्रदेश में पार्टी को जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी तरक्की देकर राष्ट्रीय महिसचिव बनाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कमान सौंप दी है। राहुल गांधी के इस फैसले के बाद कांग्रेस में जश्न का माहौल है। वरिष्ठ नेताओं से लेकर आम कार्यकर्ताओं तक का जोश बल्लियों उछल रहा है। प्रियंका को महासचिव बनाए जाने की खबर के बाद कांग्रेस दफ्तर में ढोल धमाके और आतिशबाजी करके कार्यकर्ताओं ने राहुल गांधी के इस फैसले पर अपनी खुशी का इजहार किया।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष शीला दीक्षित ने इस फैसले को लोकसभा चुनाव में पासा पलटने वाला फैसला करार दिया है। वहीं कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने कहा है कि राहुल गांधी के इस फैसले से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नया जोश भर गया है। इसी तरह कांग्रेस के तमाम नेता इस फैसले पर अपनी खुशी का इज़हार कर रहे हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस कार्यकर्ता लंबे अरसे से प्रियंका गांधी को राजनीति के राजनीति में आने की मांग करते रहे हैं। और प्रियंका गांधी हमेशा कार्यकर्ताओं की मांग पर यही कहती रही है कि वक्त आने पर वह फैसला करेंगी। अब जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मन की मुराद पूरी हो गई है तो उनका खुश होना और खुशी का इजहार करना लाजिमी है।
प्रियंका के आने से कांग्रेस को फायदे की उम्मीद
कांग्रेस के तमाम नेताओं को लगता है कि प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ा फायदा होगा। ख़ासकर प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी की छवि देखने वाली गांव देहात की महिलाएं टूटकर कांग्रेस के पक्ष में वोट करेंगी। कांग्रेस के इस कदम को ममता बनर्जी और मायावती की काट के रूप में भी देखा जा रहा है। गौरतलब है कि ममता बनर्जी और मायावती राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने में सबसे बड़ा रोड़ा बनी हुई है। राहुल गांधी ने इन दो कद्दावर महिला नेताओं की काट के लिए अपनी बहन प्रियंका गांधी को मैदान में उतार दिया है। प्रियंका गांधी को आज भी गांव देहात में उनके असली नाम की बजाय इंदिरा गांधी की पोती के रूप में जाना जाता है। उनकी यही छवि कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। कांग्रेस में नारे लगते रहे हैं 'प्रियंका नहीं यह आंधी है, दूसरी इंदिरा गांधी है।' 2014 में लोकसभा का चुनाव हारने के बाद कांग्रेस जब लगातार राज्यों में चुनाव हार रही थी तब भी कांग्रेस कांग्रेस कार्यकर्ताओं की तरफ से प्रियंका गांधी को राजनीति में लाने की मांग रही थी।
यूपी की राजनीति में मची हलचल
प्रियंका गांधी के कांग्रेस का महासचिव और पूर्वी प्रदेश का प्रभारी बनते ही कांग्रेसी नेताओं के फोन घशनघनाने लगे हैं। उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी और बीएसपी में टिकट पाने से छूट जाने वाले नेताओं की नज़रें अब कांग्रेस के टिकट पर आकर टिक गई हैंं। सपा-बसपा के लोकसभा टिकट के दावेदारों ने कांग्रेसी नेताओं से संपर्क करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के पास पहले ही उत्तर प्रदेश में उम्मीदवारों की कमी है ऐसे में अगर इन दोनों पार्टियों से मजबूत उम्मीदवार कांग्रेस में आते हैं तो कांग्रेस से फायदा उठा सकती है। अभी तक उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव रहे गुलाम नबी आजाद ने कुछ दिन पहले बताया था कि उनके पास उत्तर प्रदेश में अभी तक सिर्फ 30 सीटों पर मजबूती से चुनाव लड़ने लायक उम्मीदवार हैं। बाकी सीटों पर पार्टी उम्मीदवार तलाश रही है। तब उन्होंने इशारा किया था कि सपा और बसपा अगर सिर्फ 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी तो बाकी सीटों पर उनके कई मज़बूत उम्मीदवार कांग्रेस की तरफ आ सकते हैं। आज प्रियंका गांधी की राजनीति में कदम रखने के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मच गई है। अपनी पार्टियों में टिकट पानी से झुकने वाले कद्दावर नेता कांग्रेस में संभावनाएं तलाशने लगे हैं।
प्रियंका के आने से बीजेपी में बेचैनी बढ़ी
प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने के ऐलान से बीजेपी में बेचैनी बढ़ गई है। बीजेपी में पहले से इस बात को माना जाता रहा है कि प्रियंका गांधी राहुल गांधी के मुकाबले ज्यादा लोकप्रिय हैंं। अगर वह राजनीति में क़दम रखती हैं तो उसे बीजेपी को नुकसान हो सकता है। इसीलिए प्रियंका के कांग्रेस का महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनने का ऐलान होते ही बीजेपी के तमाम बड़े नेता और मोदी सरकार के मंत्री उनके खिलाफ बयान बाजी पर उतर आए हैं। बीजेपी इस वक्त वही गलती कर रही है जो गलती कभी कांग्रेस करती थी। कांग्रेस ने भी 2012 के बाद से नरेंद्र मोदी पर निजी हमले किए थे। इसका फायदा नरेंद्र मोदी और बीजेपी को मिला। कांग्रेसी नेताओं को लगता है कि बीजेपी की तरफ से जितने निजी हमले सोनिया, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी पर होंगे, चुनाव में कांग्रेस को उतना ही फायदा मिलेगा। प्रियंका गांधी की लोकप्रियता से बीजेपी को कितना खतरा महसूस हो रहा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीजेपी ने उनके खिलाफ आज ही अपने बड़े नेताओं की पूरी टीम उतार दी है। मोदी सरकार के करीब करीब एक दर्जन मंत्रियों ने प्रियंका गांधी के राजनीति में आने पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेसी इसे अपनी शुरूआती जीत मान रही है।
राहुल गांधी ने चुपचाप किया धमाका
राजनीतिक गलियारों में इस बात को लेकर बड़ी चर्चा है कि राहुल गांधी ने इतना बड़ा फैसला बहुत ही खामोशी के साथ किया। हालांकि राहुल गांधी ने इस बात के संकेत उसी वक्त दे दिए थे जब उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन का ऐलान हुआ था और कांग्रेस को इस गठबंधन से अलग रखा गया था सपा बसपा गठबंधन पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने दुबई में कहा था कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करेगी और चौंकाने वाले नतीजे आएंंगे। राहुल गांधी ने तभी 440 वोल्ट का झटका देने की बात कही थी। उसके बाद से कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने संकेत दिए थे कि राहुल गांधी प्रियंका और ज्योतिरादित्य को उत्तर प्रदेश की कमान सौंप सकते है। इस फैसले के बाद राहुल गांधी ने खुद कहा है कि उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रियंका गांधी को 2 महीने के लिए उत्तर प्रदेश नहीं भेजा है बल्कि उत्तर प्रदेश के कायाकल्प करने के लिए उन्हें यह बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। इस मौके पर राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि बीजेपी की सरकार ने यूपी को बर्बाद कर दिया है। इसके साथ ही उन्होंने उत्तर प्रदेश की जनता खासकर किसानों और नौजवानों से अपील की है कि वो बीजेपी सरकार बदलने के लिए वोट करें।
कांग्रेस में है बड़े फैसलों के खामोशी से एलान की परंपरा
कांग्रेस में बड़े फैसले खामोशी से करने की परंपरा रही है। साल 2004 में जब राहुल गांधी को अमेठी से चुनाव लड़ाने का फैसला किया गया था तो उस फैसले के लिए एक दिन पहले तक किसी को भनक नहीं थी। जिस दिन ऐलान हुआ उस दिन तब कांग्रेस महासचिव रहींं अंबिका सोनी प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आई थी। उन्होंने उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनावों के उम्मीदवारों की लिस्ट पढ़नी शुरू की। पत्रकारों के लिए यह चौंकाने वाली बात थी कि पार्टी की वरिष्ठ नेता उम्मीदवारों की लिस्ट पढ़कर सुनाई जा रही थींं। आमतौर पर कांग्रेस में लिस्ट जारी करने की परंपरा रही है। अंबिका सोनी ने एक-एक सीट पर उम्मीदवार के नाम पढ़कर सुनाए। पत्रकार तब चौंंके जब सोनिया गांधी का नाम अमेठी के बजाय रायबरेली से लिया गया और सबसे आखिर में अमेठी से राहुल गांधी का नाम पुकारा गया। इसी तरह राहुल गांधी ने 440 वोल्ट का झटका देने की बात जरूर कही थी। तब शायद ही किसी को अंदाजा था कि वो अचानक प्रियंका गांधी को पार्टी में लाकर उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंप देंगे।
प्रियंका के चुनाव लड़ने पर संशय
प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में तो आ गईंं हैंं लेकिन वो लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे या नहीं इस बात को लेकर संशय बना हुआ है। इस बारे में सवाल पूछने पर राहुल गांधी ने कहा कि यह फैसला प्रियंका को करना है। उत्तर प्रदेश में साल 2017 हुए विधानसभा चुनाव के दौरान जब प्रियंका गांधी राजनीतिक सक्रियता दिखाई थी तभी से पार्टी में चर्चा है कि प्रियंका 2019 में रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी। कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं सोनिया गांधी अपनी लंबी बीमारी की वजह से सक्रिय राजनीति से पूरी तरह अलग हो जाना चाहती हैं। ग़ौरतलब है कि 2004 से ही गांधी रायबरेली में सोनिया गांधी की चुनाव एजेंट रही है। पिछले करीब 10 साल से प्रियंका गांधी रायबरेली में सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र का सारा काम देख रही हैंं। पार्टी में कुछ नेताओं का मानना है कि प्रियंका गांधी यूपी के बाहर से भी चुनाव लड़ सकती हैं। हालांकि इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। जैसा कि राहुल गांधी कह चुके हैं कि इस बारे में फैसला प्रियंका गांधी को ख़ुद करना है।
प्रियंका के सामने चुनौतियां भी कम नहीं
प्रियंका गांधी भले ही सक्रिय राजनीति में औपचारिक रूप से आज कदम रख रही हैं। लेकिन अमेठी और रायबरेली की राजनीति में उनकी उनका दखल पहले से रहा है। वहां कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर उनकी मजबूत पकड़ है। दोनों ही लोकसभा क्षेत्रों में जनता की नब्ज को समझती है। इसके बावजूद उनके सामने चुनौतियां कम नहीं है। कांग्रेस में भले ही प्रियंका गांधी को महासचिव जैसा बड़ा पद दे दिया गया है लेकिन अभी उनके राजनीतिक कौशल की परीक्षा होना बाकी है। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में पर्दे के पीछे से पार्टी की कमान प्रियंका गांधी ने संभाली थी लेकिन चुनाव में कांग्रेस का बंटाधार हो गया था। कांग्रेस विधानसभा में दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई थी। उसके बाद से प्रियंका कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय नहीं थींं। पार्टी में भी चर्चा थी प्रियंका गांधी को राजनीति में इसलिए नहीं लाया जा रहा की इससे कांग्रेस में दो शक्ति केंद्र बन जाएंगे। इससे राहुल गांधी को नुकसान होगा। पार्टी कार्यकर्ताओं का एक धड़ा इस बात की मांग करता रहा है प्रियंका गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए आगे लाया जाए। कांग्रेस के सामने इस दुविधा को खत्म करना सबसे बड़ी चुनौती है।
राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि कांग्रेस ने प्रियंका गांधी के रूप में अपने तरकश का आखिरी तीर भी छोड़ दिया है। अगर यह तीर निशाने पर लगा तो कांग्रेस धमाकेदार तरीके से केंद्र की सत्ता में लौट सकती है। अगर यह निशाने पर नहीं लगा तो यही कांग्रेस के ताबूत की आखिरी कील भी साबित हो सकता है।
लेखक देश के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार है