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Hathras Rape Case:'कसम खाती हूं उन दरिंदों को फांसी के फंदे तक चढ़ा कर रहूंगी'- योगिता भयाना
नई दिल्ली. निर्भया केस (Nirbhaya Case) की पैरोकार रहीं एवं महिला उत्पीडन पर हमेशा मुखर आवाज उठाने वाली सोशल वर्कर योगिता भयाना (Yogita Bhayana) हाथरस पीडिता के घर पहुंच गईं हैं. उन्होंने पीडिता के शव की मिटटी के पास जाकर यह सौगंध ली है कि न्याय बिना दिलाये चैन की सांस नहीं लूंगी.
योगिता भयाना ने कहा कि एक महापाप तब हुआ जब उन दरिंदो ने हाथरस की बेटी के साथ दुष्कर्म किया और दूसरा तब हुआ जब सरकारी प्रसाशन ने परिवार को अपनी बेटी को आखिरी बार विदा तक नहीं करने दिया. अभी, मैं पीड़िता के भाई के साथ अस्थियों को लेने आयी हूं और कसम खाती हूं कि उन दरिंदों को फांसी के फंदे तक चढ़ा कर रहूंगी. योगिता ने कहा-बेटी 8 साल की हो या 18+साल की,बेटी हिन्दू की हो या मुसलमान की,बेटी भारत के किसी भी राज्य की हो "रेप की सज़ा फांसी" ही होना चाहिए.
योगिता ने कहा कि यह वही जगह हैं जहां उन दरिंदों ने मासूम के साथ जघन्य कृत्य किया था. आज इस जगह आकर मन व्याकुल हो गया,लगा कि यह समाज,यह क़ानून व्यवस्था किस लिए जब उस बच्ची की चीखों को नहीं सुन सकता है. आइए!आज शपथ लें कि जब तक उन दरिंदों को फांसी के तख्ते तक ना पहुंचा दें तब तक चैन की सांस ना लेंगे.
यह वही जगह हैं जहां उन दरिंदों ने मासूम के साथ जघन्य कृत्य किया था।आज इस जगह आकर मन व्याकुल हो गया,लगा कि यह समाज,यह क़ानून व्यवस्था किस लिए जब उस बच्ची की चीखों को नहीं सुन सकता है।
— Yogita Bhayana (@yogitabhayana) October 3, 2020
आइए!आज शपथ लें कि जब तक उन दरिंदों को फांसी के तख्ते तक ना पहुंचा दें तब तक चैन की सांस ना लेंगे. pic.twitter.com/9X4c22Fr5o
योगिता भयाना रेप पीड़िताओं की सहायता के लिए पीपुल्स अगेंस्ट रेप इन इंडिया (परी) अभियान चलाती हैं. रेप और गैंगरेप की पीड़िताओं के केस में पैरोकारी करती हैं. बड़ी संख्या में पीड़िता और उनके परिजन योगिता से जुड़कर कोर्ट में अपने केस को लड़ रहे हैं. उनका मानना है कि इन्हें न्याय की सबसे ज्यादा जरूरत है.
हाथरस मामले में वो राष्ट्रीय महिला आयोग (National Women Commission) के रवैये से भी नाराज हैं, जो इतने बड़े मामले में कहीं नजर नहीं आ रहा है. उन्होंने कहा-महिलाओं के लिए इस देश में संवैधानिक संस्थाएं बनाई गई हैं. ताकि उन पर हो रहे अत्याचारों के दौरान ये उनके लिए न्याय की आवाज उठा सकें. लेकिन जब भी देश में कोई बड़ा मामला होता है तो ये सबसे बाद में नजर आती हैं.
हाथरस, बारां, बुलंदशहर, बलरामपुर जैसी घटनाएं हो जाती हैं लेकिन राष्ट्रीय महिला आयोग बमुश्किल सरकार से सवाल कर पाता है. वैसे कोई बयान भी दे दे तो आयोग नोटिस कितनी जल्दी भेज देता है. इन संस्थाओं को पीड़ित की आवाज बनना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता. ये संस्थाएं राजनीतिक कठपुतली बनकर रह जाती हैं. हाथरस मामले में महिला आयोग का रवैया ऐसा ही है. इस समय आयोग को अपनी उपस्तिथि का अहसास कराना चाहिए कि हम महिलाओं के लिए बनाया गया एक जोरदार संस्था है. किसी भी पीडिता को न्याय दिलाना ही हमारा मकसद है.