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युवाओं को चरित्र निर्माण के लिए स्वामी विवेकानंद से सिखना चाहिए!
भारत की पहचान विश्व में एक युवा देश के रूप में होती है, क्योंकि भारत में बहुत बड़ी संख्या में युवाओं की आबादी निवास करती है। देशहित के नजरिए से देखें तो युवाओं की अधिक जनसंख्या एक बहुत ही सकारात्मक स्थिति है, अगर देश के युवाओं को चरित्रवान बनाकर उनकी ऊर्जा का सही ढंग से उपयोग किया जाये।
हमारे देश के भविष्य युवाओं को सही मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करने, जीवन पथ पर प्रेरित करने, ज़िंदगी में सफलता प्राप्त करने के लिए कठिनाइयों का सामना करने की क्षमता विकसित करने और राष्ट्र के विकास में अनमोल योगदान करने के लिए प्रेरित करने के लिए हर वर्ष देश में 'राष्ट्रीय युवा दिवस' मनाया जाता है। वैसे भी किसी भी देश का उज्जवल भविष्य उस देश के मेहनतकश विचारशील क्षमतावान संस्कारवान चरित्रवान योग्य युवाओं के ऊपर ही निर्भर करता है, ऐसे युवाओं के अथक प्रयास से ही देश के चहुंमुखी सर्वांगीण विकास को एक नई रफ्तार मिलती है। युवाओं की सकारात्मक सोच व उनकी प्रतिभा के बदोलत ही देश को ना सिर्फ तरक्की का नया आयाम मिलता है, बल्कि देश का विकास भी सही तरह से होता है। लेकिन अफसोस आज हमारे देश के युवाओं की जो स्थिति हो गयी है वह किसी से छुपी हुई नहीं, आज के बेहद व्यवसायिक दौर में हमारे देश के बहुत सारे युवा चरित्र को भी बाजार में बिकने वाली एक वस्तु मात्र मान बैठे हैं, धनबल के अहंकार में वशीभूत होकर बड़ी संख्या में युवा यह भी समझने के लिए तैयार नहीं हैं कि जीवन में चरित्र का निर्माण एक बहुत लंबी कठिन प्रक्रिया के बाद होता है, चरित्र को खरीदना बिल्कुल असंभव है। आज के दौर में चरित्रहीनता की वजह से ही बहुत बड़ी संख्या में युवाओं में विभिन्न तरह की कुरूतियों का भंडार हो गया है, उनके जीवन में कदम-कदम पर गंभीर समस्याएं खड़ी हो गयी हैं। आज के समय में युवा पीढी को व्यसनों से बचाने की बहुत बड़ी चुनौती हम सभी के सामने खड़ी हुई है, जिस तरह से देश के युवा गलत कार्य, अपराध, नशेबाजी आदि में लिप्त हैं, जिस तरह से वह मातृशक्ति महिलाओं व छोटी बच्चियों तक के प्रति बेहद जघन्य अपराधों को अंजाम दे रहे हैं, देश व समाज के लिए यह नकारात्मक स्थिति बहुत घातक एवं विचारणीय है, उस हालात को रोकने में हमारे देश का कानून केवल सहयोग कर सकता है ना कि उस हालात को पूर्ण रूप से रोक सकता है। इसलिए अब समय आ गया है कि हम अपने देश की युवा पीढी को प्राचीन सनातन परंपरा के अनुसार संस्कारवान बनाते हुए। आज युवा पीढी को कुरूतियों से बचाने के लिए स्वामी विवेकानंद जैसे महान विद्वान के दिखाएं मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने का प्रयास करें।
वैसे तो इसी उद्देश्य से भारत में 'स्वामी विवेकानंद' की जयंती पर हर वर्ष धूमधाम से 'राष्ट्रीय युवा दिवस' के रूप में मनायी जाती है, भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन 12 जनवरी के मौके पर 1984 से हर वर्ष देश में इस दिवस को 'राष्ट्रीय युवा दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की थी, जिसको वर्ष 1985 से लगातार मनाया जा रहा है। सरकार के द्वारा देश के युवाओं के सही मार्ग दर्शन के लिए हर वर्ष 'राष्ट्रीय युवा दिवस' को अलग-अलग थीम के साथ मनाया जाता है। लेकिन क्या वास्तव में आज का युवा स्वामी विवेकानंद के दिखाएं मार्ग पर चलने के लिए तैयार है। क्या युवा यह समझने के लिए भी तैयार है कि आखिर कौन थे स्वामी विवेकानंद और क्यों मनाया जाता है हर वर्ष उनकी जयंती पर 'राष्ट्रीय युवा दिवस', आज पश्चिमी संस्कृति से बेहद प्रभावित हमारे देश के युवाओं को समझना होगा कि जिस दौर में यूरोपीय देशों में हम भारतीयों को और सनातन धर्म के मानने वाले लोगों को बेहद हीनभावना व घृणा की दृष्टि से देखा जाता था, उस दौर में विश्व में महान सनातन धर्म, हमारे प्यारे देश भारत व भारतीयता का डंका चहुंओर बजाने का कार्य स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका की धरती से किया था। उन्होंने दिशाहीन हो चुके़ समाज को नई दिशा देकर जीवन पथ पर ईमानदारी से चलने की सरल राह दिखाई थी। जब हम अंग्रेजों के गुलाम भारतीयों के दिलोदिमाग पर अंग्रेजियत बहुत ज्यादा हावी हो रही थी उस समय स्वामी विवेकानंद ने अपने ओजस्वी संदेशों से न केवल हम लोगों के दिमाग से अंग्रेजियत का भूत उतारने का कार्य किया था, बल्कि सनातन धर्म को उसका अपना गौरव वापस लौटाते हुए, विश्वपटल पर भारतीय सभ्यता व महान सनातन संस्कृति का परचम लहराने का कार्य किया था। स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने सनातन धर्म की महानता के बारे में विश्व समुदाय को अवगत करवाया था। विश्व में कहीं भी जब स्वामी विवेकानंद का जिक्र होता है तो उनके इस ऐतिहासिक भाषण की चर्चा जरूर होती है। उनके इस ऐतिहासिक भाषण के कुछ अंश इस प्रकार हैं-
"मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूँ, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इजरायलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है।"
स्वामी विवेकानंद ने पूरे विश्व का विशाल हृदय वाले गौरवशाली सनातन धर्म से परिचय करवाया था, लेकिन देश में बढ़ते आपसी विद्वेष को देख लगता है आज के युवा स्वामी विवेकानंद के सिद्धांतों की बात तो बहुत करते हैं लेकिन उन पर अमल करने के लिए तैयार नहीं हैं, देश व समाज हित में इस हालात में तत्काल सुधार होना आवश्यक है। वैसे आज प्रत्येक भारतवासी को यह दिल से समझना होगा कि स्वामी विवेकानंद एक महान संत व सच्चे देशभक्त थे, उन्होंने जीवन में समाज के हित के कई विषयों पर अपने बहुमूल्य विचार दिये हैं। स्वामी विवेकानंद ने योग, राजयोग तथा ज्ञानयोग जैसे ग्रंथों की रचना की। स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं देश की सबसे बड़ी दार्शनिक संपत्ति हैं, जिन पर चलते हुए हम अपना चरित्र निर्माण करके सफलतापूर्वक जीवन पथ के लिए मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। स्वामी विवेकानंद जी की महान पुण्यात्मा को हम सभी देशवासी कोटि-कोटि नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
।। जय हिन्द जय भारत ।।
।। मेरा भारत मेरी शान मेरी पहचान ।।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार, स्तंभकार व रचनाकार है