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बाल मित्र बिहार बनाने के लिए ट्रैफिकिंग के शिकार और पूर्व बाल मजदूर रहे युवाओं ने पेश किया मांगपत्र
बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा संचालित "मुक्ति कारवां" जन-जागरुकता अभियान को संचालित करने वाले बंधुआ बाल मजदूरी और ट्रैफिकिंग से मुक्त युवाओं ने अपना एक मांगपत्र पेश किया है। इस मांगपत्र के जरिए उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेने वाले सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों से बच्चों के लिए सुरक्षित और शिक्षित बिहार बनाने की मांग की है। उन्होंने राज्य के जागरूक मतदाताओं से भी आह्वान किया है कि "चुनें उन्हें जो बचपन बचाएं, सुरक्षित और शिक्षित बिहार बनाएं"। बाल मजदूरी और गुलामी का दंश झेलने वाले इन पूर्व बाल मजदूरों ने सभी उम्मीदवारों से अपील की है कि वे बिहार को बाल मित्र राज्य बनाने की शपथ लें और चुनाव जीतने पर बचपन को सुरक्षित बनाने के लिए उनकी मांगों को जमीनी स्तर पर कार्यान्वित करने का प्रयास करें।
"मुक्ति कारवां" एक सचल दस्ता है जिसका संचालन ट्रैफिकिंग और बाल श्रम से मुक्त नौजवान करते हैं। वे गांव-गांव घूमकर बाल श्रम और बच्चों के शोषण के खिलाफ लोगों को जागरूक करते हैं और दलालों और ट्रैफिकिंग की सूचना पुलिस और प्रशासन से साझा करते हैं। जिसके आधार पर कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिल छापामार कार्रवाई को अंजाम दिया जाता है। बिधानसभा चुनाव के दौरान कभी ट्रैफिकिंग के शिकार और पूर्व बाल मजदूर रहे नौजवानों के नेतृत्व में "मुक्ति कारवां" के कार्यकर्ता बिहार के विभिन्न इलाकों में साइकिल से घूम-घूम कर बच्चों के शोषण और बाल श्रम के खिलाफ लोगों को जागरुक कर रहे हैं। साथ ही उनसे भी अपील कर रहे हैं वे ऐसे उम्मीदवारों को चुनें जो बच्चों के हितों के लिए काम करने की गांरटी दें।
बाल और बंधुआ मजदूरी से आजाद हुए युवाओं के मांगपत्र की प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं। बिहार के सभी बच्चों को 12वीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराई जाए। गांव, जिला और राज्य स्तर पर चाइल्ड ट्रैफिकिंग (बाल दुर्व्यापार) को रोकने के लिए ठोस कदम उठाया जाए। सभी जिलों में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एएचटीयू) का गठन किया जाए और उसकी जवाबदेही सुनिश्चित की जाए। पंचायत में विलेज माइग्रेशन रजिस्टर रखा जाए, ताकि कोई भी बच्चा गांव से निकलकर ट्रैफिकिंग का शिकार नहीं होने पाए। देश के अलग-अलग राज्यों से छूटे हुए बाल मजदूरों के लिए समुचित शिक्षा और पुनर्वास की व्यवस्था की जाए। बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए चाइल्ड फ्रेंडली पुलिस स्टेशन और चाइल्ड फ्रेंडली कोर्ट का निर्माण किया जाए। पॉक्सो यानी यौन शोषण, ट्रैफिकिंग और बाल मजदूरी के सभी मामलों को एक साल के अंदर निपटाया जाए। राज्य सरकार द्वारा आवंटित कोविड राहत कोष का 20 प्रतिशत समाज के सबसे पिछड़े समुदाय के बच्चों के पुनर्वास के मद में उपयोग किया जाए एवं बच्चों को सरकार की प्रमुख सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़कर उन्हें बाल श्रम से बचाया जाए।
यह मांगपत्र बाल और बंधुआ मज़दूरी से छुड़ाए गए बिहार के बच्चों से चर्चा और सुझाव के आधार पर तैयार किया गया है। ये बच्चे विभिन्न जातियों, समुदायों, धर्मों और अन्य कमजोर वर्गों से विभिन्न सामाजिक समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस मांगपत्र को तैयार करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि बच्चे किस तरह का बाल मित्र बिहार बनाना चाहते हैं और उसके लिए वे राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों से क्या अपेक्षाएं रखते हैं?
बिहार भारत का तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है और यह 4 करोड़ 70 लाख बच्चों का घर है। बच्चों की यह आबादी राज्य की 10 करोड़ 40 लाख की लगभग (46 प्रतिशत) आधी है। बच्चों की यह संख्या भारत में किसी भी राज्य के बच्चों की संख्या से ज्यादा है। दूसरी ओर बिहार भारत का सबसे गरीब राज्य भी है और स्कूल अटेंडेंस के हिसाब से सबसे न्यूनतम श्रेणी में आता है। दुर्भाग्य यह है कि बिहार एक ऐसा राज्य भी है जहां 27 लाख श्रमिकों की आयु 5 से 17 वर्ष के बीच है। बिहार अकेले पूरे भारत के बाल श्रमिकों का 10.7 हिस्सा प्रदान करता है। इतना ही नहीं बाल और किशोर श्रम के लिए बिहार देश में दूसरे नंबर पर आता है। बिहार से सस्ते श्रम के लिए, देह व्यापार के लिए, मानव अंगों के दुर्व्यापार के लिए बच्चों की बड़े पैमाने पर ट्रैफिकिंग भी की जाती है। जबकि 15-19 वर्ष की आयु की दो लड़कियों में से एक कुपोषित हैं। प्रजनन आयु में आने वाली एक तिहाई महिलाएं अल्पपोषित हैं। 30 लाख लड़कियों की शादी 18 साल की कानूनी उम्र से पहले कर दी जाती है।
बिहार से संबंधित उपरोक्त आंकड़ें बताते हैं कि राज्य में बच्चों के बचपन को सुरक्षित और शिक्षित बनाने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है। कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक (कैंपेन) श्री बिधान चंद्र सिंह कहते हैं, "बच्चों को भी समाज के अन्य वर्गों की तरह सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। भले ही बच्चे वोट बैंक नहीं हों, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि राजनीतिक दल और प्रत्याशी बच्चों लिए अपनी कल्याणकारी जिम्मेदारी से इनकार कर दें। बच्चे कल का भविष्य हैं। आत्मनिर्भर भारत की नींव इन बच्चों के कंधों पर ही है। इसलिए राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को बच्चों की मांगों को अपने एंजेंडे में शामिल करना चाहिए और बिहार को बाल मित्र बिहार बनाने के लिए सम्मिलित रूप से प्रयास करना चाहिए।"