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दलितों के संघर्ष को क्यों नहीं दिखाती भारतीय मिडिया?

दलितों के संघर्ष को क्यों नहीं दिखाती भारतीय मिडिया?
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दलित संघर्ष कैसे देखें?'
बीते कुछ वक्त में दलितों के ख़िलाफ हिंसा की घटनाओं की ख़बरें सोशल मीडिया पर छाई रहीं. गुजरात के उना से लेकर सहारनपुर में दलितों पर हो रहे अत्याचार के ख़िलाफ दिल्ली में जंतर-मंतर पर प्रदर्शन तक. इन प्रदर्शनों में काफी तादाद में दलित शामिल रहे.लेकिन 24 घंटे दर्जन भर मेहमानों को बैठाकर बहस कराने वाली मुख्यधारा मीडिया ने इन प्रदर्शनों की कवरेज से दूरी बनाए रखी.

ऐसा ही एक मंज़र रविवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर देखने को मिला. भीम आर्मी के समर्थकों के इस प्रदर्शन की भारतीय मीडिया चैनलों ने न के बराबर कवरेज की. ऐसे में असल सवाल ये रहा कि मीडिया को क्यों नहीं दिखता दलितों का संघर्ष? बीबीसी हिंदी ने इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार का लेख छापा. इस लेख पर हमें सैकड़ों लोगों ने अपनी राय बताई. हम यहां कुछ चुनिंदा टिप्पणियां छाप रहे हैं. पढ़िए लोगों की नज़र में....

मीडिया को क्यों नहीं दिखता दलितों का संघर्ष?
राज किशोर उपाध्याय ने लिखा,
''दलितों का सैलाब लोकतंत्र के चौथे खंभे कहे जाने वाली राष्ट्रीय मीडिया के लिए खबर नहीं है. दलितों के घर फूंके गए और उल्टा उन्हीं पर मुक़दमा दर्ज हुआ, वे सहारनपुर से जंतर-मंतर आए हैं, मीडिया वाले दोपहर में सास बहू में बिजी होते हैं. शाम को देशद्रोहियों को खत्म करने की चिंता में डिबेट करते हैं.''
फेसबुक

अनिकेत गायकवाड लिखते हैं,
''ये मनुवादी ब्राह्मण मीडिया है. ये बहुजनों की उठती हुई आवाज़ और एकता से डरते हैं. ये नहीं चाहते कि देश जातिवाद से आज़ाद हो. भारतीय ब्राह्मण मीडिया देश को मानसिक गुलाम बनाए रखने के लिए अग्रसर है.''

नकुल व्यास ने लिखा,
''आप लोगों ने पूरा आरक्षण लिया हुआ है. नौकरियां इन लोगों की लग रही हैं, फिर ये बोलते हैं कि भेदभाव सबसे ज्यादा होता है. ब्राह्मण, बनिया और राजपूत के पास आरक्षण नहीं है.''
प्रदीप कुमार ने कहा,
''जवाब बहुत आसान है. अब भारत में निष्पक्ष मीडिया नहीं हैं. पिछली सत्ताधारी और मौजूदा पार्टी ने मीडिया का ऐसा ही इस्तेमाल किया. टीवी चैनलों के मालिक राजनेताओं की चमचागिरी करते हुए करोड़पति सुपरस्टार बन गए. देशभक्ति और मीडिया दोनों को स्पॉन्सर करने का काम भारत सरकार कर रही है.''

दलित
मोहम्मद शेख ने आरोप लगाया,
''सब मीडिया बिका हुआ है. अब भारत की सरकार भी एंटी मुस्लिम और एंटी दलित है. इसलिए मीडिया कोई न्यूज़ नहीं दिखा रहा है.''

पंकज तिवारी ने लिखा,
''संघर्ष नहीं, ये सब बेवकूफी है. इन लोगों के पास इतनी सुविधाएं हैं. फिर भी ये प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं.''

शीबू चौधरी ने कहा,
''इन न्यूज़ चैनलों को अब देखता कौन है? अब इन न्यूज़ चैनलों को योगी आदित्यनाथ के धोबी को दिखाने से फुर्सत कहां है. बिकी हुई मीडिया है. यही कांग्रेस के वक्त होता तो इतना उधम मचाते, दिन भर डिबेट करवाते.''

प्रकाश मिश्रा ने लिखा,
''आरक्षण विरोध अगर नहीं किया तो सवर्ण का अस्तित्व मिट जाएगा. जातिगत आरक्षण हटना चाहिए.''
साभार BBC
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