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जीवन को सुखमय बनाने के लिए तथागत द्वारा सुझाये नुख्शे

Special Coverage News
22 July 2016 9:36 AM IST
जीवन को सुखमय बनाने के लिए तथागत द्वारा सुझाये नुख्शे
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प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

महात्मा बुद्ध से उनके शिष्य बार-बार यह प्रश्न करते थे कि जीवन को सुखमय कैसे बनाया जा सकता है. एक बार जब वे जेतवन में बिहार कर रहे थे, उस समय भी उनके सामने इसी प्रकार का सवाल उपस्थित हुआ. तब तथागत जीव को सुखमय कैसे बनाया जाए, उसके लिए मनुष्य को आचरण में उतारने के लिए कुछ उपाय बताये और कहा कि यदि मनुष्य इनको अपने जीवन एवं आचरण में उतार ले, तो उन्हें इस पृथ्वी पर ही स्वर्गिक आनंद की प्राप्ति हो सकती है. वे नुख्शे निम्नलिखित हैं –


1. माता-पिता की सेवा करना – तथागत ने अपने सभी अनुयायियों से कहा कि उन्हें अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए. उन्हें समय से एवं स्वास्थ्य के अनुकूल भोजन देना चाहिए. उनके पास बैठ कर उनके अनुभवों को सुनना चाहिए. यदि वे बीमार हों, तो उनका उचित इलाज करवाना चाहिए. उनके कपड़े साफ़ रहें, यह प्रबंध करवाना चाहिए. उनके अनुसार उनके नहाने के लिए पानी की व्यवस्था करनी चाहिए. हर पल यह कोशिश करना चाहिए कि उन्हें किसी प्रकार का कष्ट न हो. यदि कोई व्यक्ति इस तरह अपने माता-पिता की सेवा करता है, तो उन्हें सुख एवं शांति प्राप्त होती है.

2. बड़ो का आदर करना – तथागत ने अपने शिष्यों से यह भी अपेक्षा की कि उन्हें अपने से बड़े लोगों का आदर करना चाहिए. उन्हें अपने से बड़े लोगों की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए. उनके लिए वे क्या कर सकते हैं, इसके लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए. इससे बड़े लोग उनके प्रति अत्यंत दयालु हो जाते हैं, और उनके मंगल की कामना करते हैं. जिससे जीवन में आने वाली अनेक व्यवहारिक कठिनाइयां दूर हो जाती हैं. जब कभी दुःख की घड़ी आती है, तो पूरा अग्रज समुदाय उसके साथ खड़ा होता है. जिससे उन कठिनाइयों से लड़ने के लिए उसे आत्मबल प्राप्त होता है.

3. मधुरभाषी बनना – तथागत ने अपने सभी अनुयायियों से कहा कि यदि आप जीवन में सुखी होना चाहते हैं, तो आपको मधुरभाषी बनना चाहिए. चाहे कितनी ही कठिन घड़ी क्यों न हो, अपनी वाणी को नियंत्रित करते हुए प्रेमपूर्वक चर्चा करनी चाहिए. आपा नहीं खोना चाहिए. जिन व्यक्तियों की वाणी मधुर होती है, वे समाज के सर्वप्रिय होते हैं. जो सर्वप्रिय होते हैं, उनके जीवन में कष्ट नही आता है.

4. किसी की बुराई न करना – तथागत ने अपने अनुयायियों को सावधान किया कि उन्हें किसी की बुराई नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह आदमी का स्वभाव सा बन गया है कि जब भी वह अपनी जबान हिलाता है, किसी न किसी की बुराई करता है. जब इस बात की जानकारी अमुक व्यक्ति को होती है, तो वह उससे रूठ जाता है, दुश्मनी मानने लगता है, अपने सभी सम्बन्ध तोड़ लेता है, या निष्क्रिय हो जाता है. इसलिए उनके अनुयायियों को चाहिए कि वे किसी की बुराई न करें.

5. स्वार्थपरता से मुक्त होने का प्रयत्न करना – तथागत का ऐसा मानना है कि मनुष्य एवं जानवर में यही विभेद होता है कि मनुष्य अपने आलावा दूसरों के हित का चिन्तन भी करता है. लेकिन व्यवहार में देखने में यह आया है कि मनुष्य धीरे-धीरे स्वार्थी होता जा रहा है, जिसके कारण उसमें लोभ प्रवृत्ति का विकास होता है, इस लोभ के वशीभूत होकर वह अनैतिक एवं गैरकानूनी कर्म करने से भी नही चूकता है. इससे उसके बारे में समाज की दृष्टि बदल जाती है और वह अकेला हो जाता है. लोग उसकी शक्ति के कारण उसे नमन जरूर करते हैं, लेकिन वह नमन बलात होता है. अपनी इन प्रवृत्तियों के कारण उसका जीवन कष्टमय हो जाता है. इसलिए मनुष्य को जितना हो सके, उतना उदार होना चाहिए.

6. क्रोध पर नियत्रण करने का सतत प्रयास करना – तथागत इस सत्य को स्वीकार करते हैं कि मनुष्य का जीवन नारकीय बनने में क्रोध की अहम भूमिका होती है. इसके कारण ही तमाम प्रकार के सामाजिक झन्झट जीवन में शुरू होते हैं, इसी के कारण तमाम रिश्ते अपने चरम पर पहुँचने एवं दीर्घजीवी होने के पहले टूट जाते हैं. इसलिए मनुष्य को क्रोध पर नियंत्रण करने का सतत प्रयत्न करना चाहिए. जो व्यक्ति इस नियंत्रण कर लेता है, वह सुखी हो जाता है.

7. मिल-बाँट कर उपभोग करने की प्रवृत्ति का विकास करना मनुष्य के पास जो कुछ है, या जो कुछ उसे प्राप्त होता है, उसे मिल-बाँट कर उपभोग करने की मानसिकता का विकास करना चाहिए. इससे मनुष्य के जीवन में सामाजिकता का विकास होता है. लोग उसके सुख-दुःख में शामिल होते हैं. हर कोई उसकी मदद करने के लिए तत्पर रहता है. इससे जीवन सुखी बनता है, साथ में यश भी बढ़ता है.

प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

विश्लेषक, भाषाविद, वरिष्ठ गाँधीवादी-समाजवादी चिंतक, पत्रकार व्

इंटरनेशनल को-ऑर्डिनेटर – महात्मा गाँधी पीस एंड रिसर्च सेंटर घाना, दक्षिण अफ्रीका

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