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भारतीय सभ्यता और संस्कृति बहुत प्राचीन हैं | ऋषि मुनियों द्वारा स्थापित इस संस्कृति का आधार गूढ़ वैज्ञानिक रहस्य है | इन ऋषियों ने काफी शोध के बाद हमारी सभ्यता और संस्कृति के लिए कुछ नियम बनाएं हैं और उन्हें शास्त्रों में संजों के रखा है | ऐसा ही एक नियम है भारतीय सभ्यता में "पैर छूना " जो सिर्फ एक अभिवादन और आदर करने का तरीका नहीं है बल्कि उसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी काम करता है | हम सिर्फ पैर ही क्यों छूते हैं ? शरीर का कोई और हिस्सा जैसे पेट, पीठ और टांग छू कर आशीर्वाद क्यों नहीं लेते ? क्यूंकि इसके पीछे भी एक तार्किक वैज्ञानिक कारण है |
पैर छूने की सही प्रक्रिया में हम अपनी कमर झुकाते हैं और अपनी बाईं हाथ की फिंगर टिप से अपने से बड़े के दाएं पैर को और दाएं हाथ की फिंगर टिप से उनके बाएं पैर को छूते हाँ और फिर हमारे बड़े हमारे सर पर हाथ रख कर हमें आशीर्वाद देते हैं |
इसके पीछे वैज्ञानिक व्याख्या इस प्रकार है कि हमारा शरीर जो बहुत सी तंत्रिकाओं से मिलके बना है | जो तंत्रिका हमारे मस्तिष्क से शुरू होती है वो हमारे हाथों और पैरों के टिप पे आके खत्म होती है तो पैर छूने की प्रक्रिया में में जब हम अपने फिंगर टिप से उलटे तरफ के पैर छूते हैं यानि बाईं हाथ से दायां पैर और दाएं हाथ से बायां पैर तो इस तरह शरीर का सर्किट पूरा हो जाता है यानि विद्युत चुम्बकीये उर्जा का चक्र बन जाता है और उनकी उर्जा हमारे अन्दर प्रवाहित होने लगती है यानि दो शरीरों की ऊर्जा आपिस में जुड़ जाती हैं और पैर छूने वाला संग्राहक यानि ऊर्जा लेने वाला और पैर छुआने वाला ऊर्जा का दाता बन जाता है |
साथ ही इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि ,दुनिया में सभी चीजें गुरुत्वाकर्षण के नियम से बंधी हैं। सिर को उत्तरी ध्रुव और पैरों को दक्षिणी ध्रुव माना गया है। यानी गुरुत्व या चुंबकीय ऊर्जा हमेशा उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र पूरा करती है। शरीर के दक्षिणी ध्रुव यानी पैरों में यह ऊर्जा असीमित मात्रा में स्थिर हो जाती है और वहां ऊर्जा का केंद्र बन जाता है। पैरों से हाथों द्वारा छूने से इस ऊर्जा का प्रवाह होता है |
इसलिए हमें केवल उन्हीं के चरण स्पर्श करना चाहिए, जिनके आचरण ठीक हों। क्योंकि 'चरण' और 'आचरण' के बीच भी सीधा संबंध है। पैर छूने का आधार उम्र या रिश्ता नहीं होना चाहिए बल्कि करम होने चाहिए हमें उन्ही के पैर छूने चाहिए जिनकी तरह हम बनना चाहते हैं | ऐसा व्यक्ति जो अहंकारी हो ,निर्बल हो जिसके अंदर अपने से छोटों के लिए प्यार न हो ,जो ईर्ष्या, नकरात्मक प्रतियोगिता और भेदभाव कि भावना से ग्रषित हो ,दुष्कर्मी, अपराधी हों ऐसे लोगों के पैर छूने का कोई औचित्य नहीं है | उनके पैर छू कर हम अपना ही नुक्सान करते हैं |
कई बार बहुत से भद्रजन इस बात से नाराज हो जाते हैं कि उन्हें चरण स्पर्श क्यों नहीं किया गया और प्रश्न करते हैं ऐसे लोगों से सिर्फ एक ही प्रश्न करना चाहिए क्या आप इस लायक हैं ? आपने ऐसा का किया है कि आपको देखते ही कोई आपके पैरों पर गिर पड़े | कुछ लोग कहते हैं ये हमारा अधिकार है !!! अधिकार हमेशा कर्तव्य से आता है अगर आप ने अपने कर्तव्य पूरे किये हैं तो ही आप अधिकार के पात्र हैं | सम्मान अर्जित किया जाता है माँगा नहीं जाता इसलिए पैर हमे सिर्फ उनके ही छूने चाहिए जो मानवीय रूप से श्रेष्ठ हो |
Source : (deepa) www.hocalwire.com
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