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योगिनी एकादशी:- इस व्रत को करने से मिट जाते हैं समस्त पाप, मिलती है मोक्ष की प्राप्ति
Special Coverage news
30 Jun 2016 3:30 PM IST
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योगिनी एकादशी: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का महत्वपूर्ण स्थान है। साल में चौबीस एकादशी होती हैं। सभी का अपना अलग महत्व है। उनमें असाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं। इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाली है। यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध है।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है। इसके व्रत से समस्त पाप दूर हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग प्राप्त होता है। जिस कामना से कोई भक्त संकल्प करके इस एकादशी का व्रत करता है उसकी वह कामना जहां बहुत जल्दी पूरी हो जाती है, वहीं जीव के सभी पापों एवं विभिन्न प्रकार के पातकों से भी छुटकारा मिलता है।
किसी के दिए श्राप से मुक्ति पाने के लिए यह व्रत कल्पतरू के समान है। व्रत के प्रभाव से हर प्रकार के चर्म रोगों की निवृत्ति हो जाती है। एकादशी व्रत में रात्रि जागरण की अत्यधिक महिमा है। स्कंद पुराण के अनुसार जो लोग रात्रि में जागरण करते समय वैष्णवशास्त्र का पाठ करते हैं उनके करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
व्रत का विधान:-
1. आषाढ़ की कृष्णपक्ष की योगिनी एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी की रात से ही शुरू करना चाहिए। व्रती को दशमी से ही तन, मन से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
2. एकादशी के दिन यथासंभव उपवास करना चाहिए। उपवास में अन्न नहीं खाया जाता यानी भोजन किये बिना यह व्रत किया जाता है। संभव ना हो, तो बस रात में तारे देख कर भोजन करना चाहिए।
3. एकादशी को जुआ खेलना, सोना, पान खाना, दातून करना, परिनंदा, चुगली, चोरी, हिंसा, संभोग, क्रोध व झूठ बोलना आदि का त्याग करना चाहिए।
4. एकादशी को प्रात: स्नान करके श्रीविष्णु की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए. यह धार्मिक कार्य स्वयं करें अथवा किसी विद्वान ब्राह्मण से भी कराया जा सकता है। स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान श्रीविष्णु की मूर्ति के सामने बैठ कर संकल्प में यह मंत्र बोलें, 'मम सकल पापक्षयपूर्वक कुष्ठादिरोग निवृत्तिकामनया योगिन्येकादशीव्रतमहं करिष्ये।
5. इसके बाद भगवान पुंडरीकाक्ष यानी श्रीविष्णु को यथोपचार पूजें। भगवान विष्णु को पंचामृत पान करायें। फिर उनके चरणामृत को व्रती अपने व परवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पियें। माना जाता है कि इससे विशेष रूप से कुष्ठ रोगी की पीड़ा खत्म होती है और वह रोगमुक्त हो जाता है।
6. गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री से पूजा करें।
7. श्रीविष्णु सहस्त्रनाम का जाप व विष्णु कथा सुनें। भगवान विष्णु मंत्रों से आराधना एवं व्रतकथा का पाठ करें।
8. तन, मन से हिंसा त्यागें और किसी की बुराई ना करें। यथासंभव रात्री जागरण करते हुए भजन, कीर्तन व हरि का स्मरण करें।
9. योगिनी एकादशी व्रत के ऐसे पालन से सभी रोग व व्याधियों का अंत हो जाता है। साथ ही मन से अलगाव की भावना मिट जाती है और बिछड़े रिश्तेदार या संबंधी से मिलन हो जाता है।
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