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पशुपतिनाथ का यह रहस्य जानकर चौंक जाएंगे आप, जानने के लिए पढ़े
Special Coverage news
18 Jun 2016 6:30 PM IST
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काठमांडू: माना जाता है कि नेपाल में स्थित ज्योर्तिलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस ज्योतिर्लिंग को पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का हिस्सा है।
पशुपतिनाथ के विषय में कथा है कि महाभारत युद्घ में पाण्डवों द्वारा अपने गुरूओं एवं सगे-संबंधियों का वध किये जाने से भगवान भोलेनाथ पाण्डवों से नाराज हो गये। भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पाण्डव शिव जी को मनाने चल पड़े। गुप्त काशी में पाण्डवों को देखकर भगवान शिव वहां से विलीन हो गये और उस स्थान पर पहुंच गये जहां पर वर्तमान में केदारनाथ स्थिति है।
शिव जी का पीछा करते हुए पाण्डव केदारनाथ पहुंच गये। इस स्थान पर पाण्डवों को आया हुए देखकर भगवान शिव ने एक भैंसे का रूप धारण किया और इस क्षेत्र में चर रहे भैसों के झुण्ड में शामिल हो गये। पाण्डवों ने भैसों के झुण्ड में भी शिव जी को पहचान लिया तब शिव जी भैंस के रूप में ही भूमि समाने लगे। भीम ने भैंस को कसकर पकड़ लिया। भगवान शिव प्रकट हुए और पाण्डवों को पापों से मुक्त कर दिया।
इस बीच भैंस बने शिव जी का सिर काठमांडू स्थित पशुपति नाथ में पहुंच गया। इसलिए केदारनाथ और पशुपतिनाथ को मिलाकर एक ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है। पशुपतिनाथ में भैंस के सिर और केदारनाथ में भैंस के पीठ रूप में शिवलिंग की पूजा होती है।
पशुपतिनाथ के विषय में मान्यता है कि जो व्यक्ति पशुपति नाथ के दर्शन करता है उसका जन्म कभी भी पशु योनी में नहीं होता है। जनश्रुति यह भी है कि, इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय भक्तों को मंदिर के बाहर स्थित नंदी का प्रथम दर्शन नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति पहले नंदी का दर्शन करता है बाद में शिवलिंग का दर्शन करता है उसे अगले जन्म पशु योनी मिलती है।
पशुपतिनाथ ज्योर्लिंग चतुर्मुखी है। इस ज्योतिर्लिंग के विषय में जनश्रुति है इसमें पारस पत्थर के गुण हैं जो लोहे को सोना बना सकता है। नेपालवासियों और नेपाल के राजपरिवार के लिए पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग आराध्य देव रहे हैं।
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