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माया मुलायम पर भारी पड़ेगा बीजेपी का ये चेहरा,
लखनऊ
यूपी में प्रस्तावित 2017 का विधनासभा चुनाव पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए नाक का सवाल है साथ ही 2019 की अर्धवार्षिक परीक्षा है. मोदी और शाह का मानना है कि यूपी फतह किये बिना 2019 में सरकार बनाना मुश्किल काम हो जायेगा. इस लिहाज से यूपी जीतना ही बीजेपी का लक्ष्य है. बीजेपी इसके लिए एक एक कदम फूंक फूंक कर रख रही है. साथ ही सरकार के दो साल के कामों की प्रतिक्रिया का भी इंतजार है जिस पर जीत की मुहर लगने के बाद ही पक्की सफलता होगी. इसलिए बीजेपी साम, दाम, दंड, भेद कुछ भी करे यूपी हर हाल में जीतना बीजेपी की मजबूरी है. जबसे गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने मना किया है बीजेपी नये चेहरे की तलाश कर रही थी जो पूरी हो गयी है.
बीजेपी को बिहार और दिल्ली में मिली हार से ये सबक मिल चूका है कि बिना अच्छे चेहरे के चुनाव जीतना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन है. जबकि अच्छे चेहरे से ही असम में पार्टी ने अपना झंडा लहराया है. इसलिए बीजेपी किसी अच्छे चेहरे पर ही दांव लगाना चाह रही है जो लगभग उसकी मुराद पूरी हो गयी है. इसके लिए पार्टी ने अपनी भारी भरकम और शालीन नेता विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर दांव लगाने का मन बना लिया है. पार्टी इसकी घोषणा मानसून सत्र के बाद कभी भी कर सकती है.
यूपी में माया , मुलायम की टक्कर में भारी
पिछले बार बीजेपी की राजनाथ सिंह सरकार के बाद बुरे दिनों में चल रही पार्टी, मुलायम और मायावती के इर्द गिर्द घूम रही राजनीती को टक्कर नहीं दे पा रही है. इस जोड़ी की राजनीती को 2014 के लोकसभा में पीएम मोदी के नाम पर नेस्तनाबूद कर दिया जिसे मोदी गुजरात की तरह बदस्तूर आगे बडाना चाहते है. इस लिहाज से तेज तर्रार बीजेपी की बिदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर पार्टी यूपी चुनाव में दांव लगाएगी. स्वराज की छवि बेहद साफ़ सुथरी और अच्छे वक्ता के रूप में जानी जाती है जो माया, मुलायम को आराम से टक्कर दे सकेंगीं.
सुषमा के नाम पार्टी में सहमती और जातीय समीकरण भी सधेगा
सुषमा के नाम पार्टी में आपसी घमासान नहीं होगा साथ ही जातीय समीकरण का मुद्दा भी हल हो जायेगा. जिससे खबरों के अनुसार नाराज ब्राह्मण मतदाता भी बीजेपी के साथ लामबंद हो जायेगा क्योंकि सुषमा स्वराज ब्राह्मण समुदाय से ही तालुक्क रखती है. बीजेपी की इस रणनीति पर सुषमा स्वराज ने भी हामी भर दी है क्योंकि उन्हें भी मौजूदा पद पर अपना हुनर दिखने का अवसर नहीं मिल पा रहा है. क्योंकि विदेश की नीति पर अक्सर पीएम मोदी अपना ही अधिकार रखते है.