Archived

सीएम रघुवर के ढ़ाई सालः उम्मीदों का झारखंड

Special Coverage News
3 July 2017 1:54 PM IST
सीएम रघुवर के ढ़ाई सालः उम्मीदों का झारखंड
x
CM Raghuvar Two-and-a-half years: expectations of Jharkhand

मनोज मिश्र

नये राज्य के रूप में झारखंड प्रदेश 14 वर्षो में ही नौ मुख्यमंत्री और तीन बार राष्ट्रपति शासन-एक शासनकाल औसतन 13 महीने का, दंस झेल चुका है। राज्य मानव विकास सूचकांक में 24वें पायदान पर झारखंड अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। भ्रष्टाचार में कई मुख्यमंत्री जेल गए तो कई पर गंभीर आरोप लगा। 14 वर्षो में सारे के सारे आदिवासी मुख्यमंत्री बने और अधिकांश समय भाजपा का ही शासन रहा। राज्य में कई आदिवासी नेता उभरे और सत्ता में आये, लेकिन ज्यादातर ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया। आदिवासियों की रोजमर्रा की जिंदगी में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आया। लेकिन प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए देश के हर कोने का शोषक यहां पर डेरा डालने लगा। नतीजतन आदिवासियों का प्रतिशत कम होता रहा और राज्य में गरीबी बढ़ती रही। साल 2014 विस के पूरे चुनाव के दौरान यह संकेत मिलते रहे कि भाजपा अबकी बार किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री के रूप में पेश नहीं करेगी। झारखंड प्रदेश के मतदाताओं ने पीएम मोदी पर विश्वास किया और झारखंड में पहली बार गैर आदिवासी सीएम रघुवर दास के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी। इसलिए, सीएम रघुवर दास के ढ़ाई साल के कामकाज को समाजशास्त्र और चुनाव शास्त्र के नये पैमाने पर देखना जरूरी होगा।


बहुत कठीन है डगर पनघट की
झारखंड आदिवासी बाहुल्य (28 प्रतिशत) राज्य है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार यहां औसतन हर छह दिन में एक औरत को, जो मनोविकार से पीड़ित है और जिसे मनो-चिकित्सक द्वारा इलाज की दरकार है, पत्थरों से या अन्य किसी तरह से सामूहिक तौर पर मार दिया जाता है, यह मानते हुए कि वह डायन है और पूरे गांव को खा जायेगी। यानी समाज का एक वर्ग है, जो अब भी चेतना, अपेक्षित जानकारी और तर्क-शक्ति के स्तर पर बेहद नीचे है और लंबे समय से शोषण का शिकार रहा है। ऐसे में राज्य का राजनीतिक व्यवहार, चाहे शहरी या बाहर से आये वर्ग का हो, या फिर यहां के मूल निवासियों का हो, एक पहेली है। एक तरफ संपन्न शहरी वर्ग और गैर-आदिवासी भी भाजपा या उसके नेता रघुवर दास को वोट दे और दूसरी तरफ आदिवासियों में भी यही रुझान हो, इसको चुनाव विज्ञान की दृष्टि से समझना कुछ दुरूह कार्य है।
पिछले आम चुनाव में भाजपा को झारखंड के कुल 81 विधानसभा क्षेत्रों में से 56 में बढ़त मिली थी। यानी भाजपा को मत मिले सिर्फ 31 प्रतिशत, लेकिन सीटें 52 प्रतिशत मिली। लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी इन सभी सीटों पर जीत नहीं सकी। साथ ही मत प्रतिशत भी आम चुनाव के मुकाबले 13 प्रतिशत कम रहा। सीटें जीतने और मत हासिल करने में भाजपा का अनुपात समान नहीं है। लेकिन, तर्कशास्त्र का तकाजा है कि हम तुलनीय के बीच ही तुलना करते हैं और इस आधार पर हमें पिछले विधानसभा में भाजपा की क्या स्थिति रही थी, इसके मुकाबले मिशन.2019 में भाजपा पार्टी कहां है, यह देखना होगा। और तब हम यह कह सकते हैं कि महज आदिवासी नेता होना अब 28 प्रतिशत आदिवासियों का वोट हासिल करने के लिए काफी नहीं रहा। और शायद राज्य के आदिवासी आज खुद को कुछ आदिवासी नेताओं द्वारा ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। आदिवासी नेताओं की अपनी विश्वसनीयता खत्म होती गयी है और वे आपस में बंटे रह रहे हैं।

रघुवर सरकार के महत्वपूर्ण फैसले
मोदी सरकार की तरह मास्टर स्ट्रोक फैसले रघुवर सरकार ने भी लिये, जिससे जनता को आशा जगी कि ये सरकार कुछ कर सकती है, निर्णय ले सकती है। खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में और शहर का पानी शहर में का नारा दिखा। कुछ जगहों में तो इसका सुंदर प्रभाव भी देखने को मिला। योजना बनाओ अभियान की शुरूआत हुई, जिसकी प्रशंसा कई बड़े-बड़े नेताओं ने की। केन्द्र और राज्य के बीच बेहतर तालमेल, सड़कों और रेलों की सुविधाएं बढ़ी। केन्द्रीय योजनाओं का बेहतर लाभ मिला। बच्चों को नाश्ते में फल और अंडे मिलने शुरू हुए, साथ ही उनके लिए रघुवर सरकार ने बेंच-टेबल की भी व्यवस्था करायी। फिल्म नीति लागू कर, पूरे देश में अपने राज्य का मान बढ़ाया। आज मुंबई ही नहीं, अन्य जगहों के लोग झारखण्ड को फिल्म निर्माण में प्राथमिकता दे रहे है। इन सब के बीच कुछ मास्टर स्ट्रोक निर्णय लिए गये जो झारखंड प्रदेश के विकास की नयी दिशा तय करेगी और मील का पत्थर साबित होगा। स्थानीय नीति पर ठोस निर्णय, उच्च शिक्षा पर ठोस निर्णय लेते हुए राज्य रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय है, वह काम भी कर रहा है, तकनीकी विश्वविद्यालय, खेल विश्वविद्यालय, महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा पर विशेष ध्यान और शिक्षा के क्षेत्र में निजी संस्थानों का झारखण्ड में प्रवेश, आदिम जनजातियों पर विशेष ध्यान देते हुए आदिम जनजातियों के लिए दो विशेष बटालियन का गठन, महिलाओं का सशक्तिकरण को लेकर एक रुपये मात्र टोकन पर पचास लाख की भूमि का निबंधन महिलाएं अपने नाम से करा सकती है, जैसा फैसला रघुवार सरकार का क्रांतिकारी कदम माना जा सकता है। इस सरकार का वर्ल्ड बैंक ने भी गुणगाया, पेयजल स्वच्छता की बात हो या व्यापार सुगमता सूचकांक, सभी में झारखण्ड ने अपना मान बढ़ाया।
वहीं विफलताओं में यूनिसेफ के लाख प्रयास के बाद भी झारखंड के बच्चों को तीन साल तक विटामिन-ए की खुराक नहीं मिली। जबकि, झारखंड में विटामिन-ए की कमी से हर वर्ष करीब आठ हजार बच्चों की मौत होती है। इस तरह तीन साल में करीब 24 हजार बच्चों की मौत की जिम्मेवारी कौन लेगा? यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसे सोच कर कुंठा या चिंता महसूस किया जाता है।

Next Story