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हुसैनीवाला बार्डर ब्यूरो चीफ पंजाब एच एम त्रिखा
कुछ दिन ही बाक़ी है 15 अगस्त को, देश का आज़ादी दिवस एक बार फिर बेहद धूम धाम से देश की सरकारें मनाएगी। लेकिन कड़वा सच है कि देश को आज़ादी की फ़िज़ाओं में ले जाने वाले देश के सूरमाओं को लीडर आज नहीं तो कल भूल जायेंगे, भूलते जा रहें हैं।
हुसैनीवाला हिन्द पाक बार्डर पर शहीदों की याद में बना स्मारक स्ठल इस बात की जिन्दा गवाही देता आज कह रहा है कि देश में क्या कटटरवाद बरकरार है ? यां मुलक पर हँसते हँसते कुर्बान होने वाले शहीदों को भी एक,दो तीन की श्रेणियों में बड़ा छोटा करके आँका जायेगा। ये सवाल आज खड़ा है क्योंकि फौज का एक जनरल नाम है के जे सिंह अंग्रेज हकूमत से भी ऊपर निकला है।
इस जनरल की रहनुमाई में देश का सबसे बड़ा प्रेरणा स्थल देश को समर्पित करने की घोषणा स्मारक स्थल से फौज के इसी अधिकारी द्वारा की गई थी लेकिन उस वक्त सिर्फ और सिर्फ हमारे ब्यूरो चीफ एच एम् त्रिखा ने घटना स्थल पर खड़े हो फौज के इसी अधिकारी को प्रेस कांफ्रेंस में सवाल किया था कि आज अकेले शहीदे आजम भगत सिंह की यहाँ तस्वीर क्यों? राजगुरु और सुखदेव की क्यों नहीं? दोनों ने जंगे आज़ादी में बराबर शहादत दी थी।
प्रेस कांफ्रेंस में घबराये जनरल ने मुद्दा उठते ही जवाब दे डाला। हाँ हम से गलती हुई है रागुरु और सुखदेव दोनों की तस्वीरें अफसरों को लगाने के आदेश भी जनरल ने फ़ौरन पत्रकार वार्ता में दे डाले। तस्वीरें तो लगा दी लेकिन प्रेरणा स्थल के नीचे लिखी इबारत को जनरल ने फिर भी नहीं हटवाया।
ये इबारत आज भी देश के दूसरे शूरवीरों का अपमान करती दिखाई दे रही है। इस पर लिखा है कि प्रेरणा स्थल उन भारतीय योद्धाओं की याद में है जिन्होंने अततः संघर्ष करते हुए जमीन पर शांति पैदा की।
नीचे लिखा है कि 'द समाध ऑफ़ शहीद भगत सिंह' लेकिन जबकि तीनों के तीनों शहीदों को पूरा व बराबर सम्मान देना सरकार की डियूटी है। तीनो शहीदों के नाम यहाँ खुदने जरुरी हैं लेकिन ऐसा हुआ नहीं? देखना है कि प्रशासन मुद्दे पर कितना गंभीर है ?
जबकि कड़वा सच ये है कि उस दिन उस वक्त शहीदे आज़म भगत सिंह राजगुरु व सुखदेव को अंग्रेजों ने इकट्ठे ही फांसी पर लटका कर उनके शवों को हुसैनीवाला गांव जो कि आज हिन्द पाक बार्डर के नाम से मशहूर है यहाँ लेकर बह रहे सतलुज दरिया के किनारे जला दिया। व अधजले शवों को जल्दबाजी में आधा अधूरा ही छोड़ दिया। देखना है कि प्रशासन मुद्दे पर कितना गंभीर है ?
कितनी जल्दी स्मारक पर की गई बेहद बड़ी गलती को सुधार पाता है यां मामला जस का तस ही रहेगा?
याद रहे हुसैनी वाला देश की खातिर शहीद हए योद्वाओं के कारण न केवल अपने देश बल्कि विदेशों में भी मशहूर है।