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यूपी के इस जिलाधिकारी ने बच्चों की मौत पर ठोंक दिया योगी सरकार पर केस, हो गया ट्रांसफर
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद ज़िले में डीएम बनाम सीएम की जंग छिड़ गई है। यहां ज़िला अस्पताल में एक महीने में 49 बच्चों की मौत पर जिलाधिकारी ने न्यायिक जांच कराकर कहा कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई है। जबकि सीएम समेत पूरा सरकार का अमला जिलाधिकारी को दोषी बनाने पर तुला है, जबकि उनका ट्रांसफर कर दिया गया है। इसी तरह की एक बहुत बड़ी वारदात गोरखपुर जनपद में हुई लेकिन उस जनपद के जिलाधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई।
सीएमओ और सीएमएस के खिलाफ एफआईआर दर्जकरा दी। सरकार ने इसे जिलाधिकारी की बदनीयती बताकर एफआईआर पर कार्रवाई करने पर रोक लगा दी और जिलाधिकारी का तबादला कर दिया। सरकार का कहना है कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, जिलाधिकारी साहब झूठे हैं। उधर फर्रुखाबाद ज़िला अस्पताल के सभी डॉक्टर सीएमओ और सीएमएस के समर्थन में हड़ताल पर चले गए।
ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत के मामले में गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कॉलेज अभी सुर्ख़ियों में था ही कि फर्रुखाबाद का राम मनोहर लोहिया ज़िला अस्पताल इस बदनामी में उससे टक्कर लेने लगा। 20 जुलाई से 21 अगस्त के बीच एक महीने में 49 बच्चों की मौत हो गई। नाराज़ जिलाधिकारी रवींद्र कुमार ने इस पर मजिस्ट्रियल जांच बिठा दी।
जिलाधिकारी के मांगने पर सीएमओ और ज़िला अस्पताल के सीएमएस ने मरने वाले बच्चों की भ्रामक रिपोर्ट दी। मरने वाले बच्चों की मां और रिश्तेदारों ने फोन पर बताया कि समय पर डॉक्टरों ने ऑक्सीजन की नली नहीं लगाई और कोई दवा भी नहीं दी। इससे स्पष्ट है कि अधिकतर बच्चों की मौत पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन न मिलने के कारण हुई। जबकी ऑक्सीजन की कमी की जानकारी डॉक्टरों को होनी चाहिए थी। इसके बाद जिलाधिकारी ने सीएमओ डॉ। उमाकांत, सीएमएस डॉ। अखिलेश अग्रवाल और नवजात शिशु देखभाल यूनिट के इंचार्ज डॉ। कैलाश के खिलाफ आईपीसी के सेक्शन 176/188 और 304 में एफआईआर करवा दी।
चूंकि जिलाधिकारी ने खुद मान लिया कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई है तो इस पर सरकार में हंगामा होना लाज़मी था। सरकार ने जिलाधिकारी को झूठा ठहराया। इसका खंडन करने के लिए दो सीनियर आईएएस अफसरों प्रमुख सचिव सूचना अवनीश अवस्थी और प्रमुख सचिव स्वास्थ्य प्रशांत त्रिवेदी से प्रेस कॉन्फ्रेंस करवाई।
सरकार का इशारा था कि जिलाधिकारी की सीएमओ से पटरी नहीं खाती इसलिए बदला लेने के लिए फ़र्ज़ी मामला बनाया गया है। सरकार का कहना है कि बच्चों की मौत की वजह की जांच कोई एक्सपर्ट ही कर सकता है। कोई पीसीएस अफ़सर फोन पर अनपढ, गांव वालों से बातकर उनके कहने पर यह रिपोर्ट कैसे दे सकता है कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई। सरकार रिपोर्ट देने वाले सिटी मजिस्ट्रेट जयनेंद्र कुमार जैन से सख़्त नाराज़ है।
क्या है पूरा मामला
मिली जानकारी के मुताबिक सरकार का कहना है कि फर्रुखाबाद के राम मनोहर लोहिया ज़िला अस्पताल में 21 जुलाई से 20 अगस्त के बीच दो तरह के बच्चों की मौत हुई। अस्पताल में 468 बच्चे पैदा हुए। इनमें 19 मारे हुए पैदा हुए। 66 बच्चे गंभीर थे जिन्हें नियोनेटल केर यूनिट में भर्ती किया गया जिनमें 60 ठीक हो गये जबकि 6 की मौत हो गई लेकिन जिन 145 गंभीर रूप से बीमार बच्चों को प्राइवेट अस्पतालों ने रेफर किया उन्हें से 121 बच गये जबकि 24 की मौत हो गई। इस तरह दोनों तरह के 30 बच्चों की मौत हुई।
सरकार जिलाधिकारी रवींद्र कुमार से नाराज़ है कि उन्होने तीन बड़े डॉक्टर्स के खिलाफ अपराधिक धाराओं में एफआईआर कराकर सरकार की राष्ट्रीय स्तर पर किरकिरी करा दी। इसलिए जिलाधिकारी का तबादला कर दिया और एफआईआर पर कार्यवाई पर रोक लगा दी।
एक तरफ फर्रुखाबाद के जिलाधिकारी हैं जो एक आईएएस अफ़सर है और उन्होने बाकायदा मुक़दमा लिखवा दिया कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी की वजह से हुई है। दूसरी तरफ सरकार है जो कह रही है कि जिलाधिकारी झूठ बोल रहे हैं। ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है। फिलहाल अब दूसरी जांच रिपोर्ट का इंतज़ार कीजिए जो अब शुरू होने वाली है ताकि यह पता चल पाए कि सरकार सच बोल रही है या जिलाधिकारी?
लेकिन एक बात तो तय है अगर सभी अधिकारी खुलकर अपने कार्य करने लग जाय तो देश सुधरने में कुछ ही वक्त लगेगा। लेकिन हैरानी है हमेशा ट्रांसफर पोस्टिंग के चलते अधिकारी असहाय नजर आते है और फिर होता वही जो सरकार चाहती है।