- होम
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- राष्ट्रीय+
- आर्थिक+
- मनोरंजन+
- खेलकूद
- स्वास्थ्य
- राजनीति
- नौकरी
- शिक्षा
Archived
पीड़ित का मुस्लिम नाम से संबोधन तो आरोपी को मुस्लिम नाम से संबोधन क्यों नहीं?
शिव कुमार मिश्र
31 May 2017 3:44 AM GMT
x
कब बदलेगी ये दोहरी नीति, इससे फायदा नहीं नुकसान होगा
रामपुर मामले में अब पुलिस ने दलित उत्पीड़न एक्ट के धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है। स्पष्ट है कि उन लड़कियों के साथ वह भयानक उत्पीड़न इसलिए भी हुआ क्योंकि वे दलित थीं।
बावजूद इसके एक भी अखबार या चैनल 'दलित लड़कियों के साथ यौन शोषण..' टर्मिनोलॉजी का प्रयोग नहीं कर रहा। जबकि दलितों के साथ किसी भी छोटी से छोटी घटना में 'दलित' शब्द का प्रयोग आवश्यक तौर पर किया जाता है।
मीडिया का दोगलापन तो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी मामले में भी साफ दिख रहा है। यह सही है कि इस यूनिवर्सिटी में रमजान के दौरान कैंटीन बंद रखने की परम्परा इसके स्थापना के समय से ही है। गैर मुस्लिम छात्रों को सहरी के समय मिले नास्ते को बचाकर रखना होता है और दिन भर इसी से काम चलाना पड़ता है। कभी इस व्यवस्था के विरुद्ध आवाज डर के कारण नहीं उठी।
लेकिन सोशल मीडिया के इस दौर में और केंद्र में एक ऐसी सरकार जो मुस्लिम तुष्टिकरण के विरुद्ध है को देखते हुए अब ऐसे भेदभावों और मजहबी कट्टरता के विरुद्ध आवाजें उठने लगी हैं।
कुछेक अंग्रेजी साइटों ने इस मुद्दे को कवर किया लेकिन क्वेश्चन मार्क लगाकर। जबकि उसी क्वेश्चन मार्क वाली रिपोर्ट में यूनिवर्सिटी प्रशासन कह रहा है कि हां रोजा के दौरान कैंटीनों को बंद रखने की व्यवस्था है।
रेप जैसी घृणित, हिंसावादी, घटिया और वहशी दरिन्दगी की जितनी मजम्मत की जाए उतनी कम है। रेल में रेप का शिकार हुई युवती को निर्भया की तरह इंसाफ मिलना चाहिए। रेपिस्ट को अधिकतम फांसी और न्यूनतम आजीवन कारावास की सजा होनी चाहिए, किंतु....मीडिया, बुद्धिजीवियों और छदम धर्म निरपेक्ष दलो के नेताओ से यह प्रश्न करना चाहता हूं कि बार बार उस महिला को मुस्लिम महिला रोजेदार महिला कहकर क्यों इंगित किया जा रहा है।
पीड़ित पीड़ित है, यदि वह मुस्लिम है और रोजेदार है। तब उनके मजहब को कौन बतायेगा जो रामपुर में लड़की को छेड़ रहे थे। रोजेदार_मुस्लिम महिला से रेप हुआ। हेस्टेक लगाकर रोजेदार और मुस्लिम लिखने वाले यह नही लिख पाये कि रोजेदार मुस्लिम लड़को ने रामपुर में हिन्दू लड़कियों से छेड़खानी की है। वह छेड़खानी करे, उनके सर पे टोपी हो तब वे न मुस्लिम लिखे जाते न रोजेदार। ये दोगलापन ही हिन्दू मुस्लिम दंगो और आपसी नफरत की वजह बनता है।
शिव कुमार मिश्र
Next Story