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ब्राह्मणों की सीधी आलोचना से बचे मुसलमान, बड़ा सवाल जानिये क्यों?

Special Coverage News
9 July 2017 3:04 AM GMT
ब्राह्मणों की सीधी आलोचना से बचे मुसलमान, बड़ा सवाल जानिये क्यों?
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Muslim survivors of direct criticism of Brahmins
आजकल आप देख रहे होंगे कि कुछ उत्साही युवा मुस्लिम लेखक और राजनीति में सक्रिय नोजवान ब्राह्मणों की खुली आलोचना कर रहे हैं है. देश में हिन्दू -मुस्लिमो के बीच बढ़ती खाई का जिम्मेदार ब्राह्मणों को बताकर मुस्लिमो के बीच में उन्हें खलनायक की तरह पेश किया जा रहा है. 2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी की हार और ज्यादातर ब्राह्मणों के भाजपा को समर्थन के बाद इस चर्चा में बहुत तेजी आई है. समाजवादी पार्टी से जुड़े लोग भी इस प्रचार को तेजी दे रहे है. देश में एक अजीब माहौल है कि ब्राह्मण ही इस हालात के लिए जिम्मेदार है और इस तरह का प्रचार किया जा रहा है जैसे मुसलमानो के विरुद्ध सबसे बड़ा समूह ब्राह्मण है.
सोशल मीडिया पर काफी पढ़े जाने वाले कुछ चर्चित मुस्लिम चेहरे भी यह लगातार लिख रहे हैं. मौजूदा हालात को देखते हुए तुरंत मुस्लिमो को यह प्रचार बंद कर देना चाहिए. आप पढ़ते रहिये ,यह बात हमें स्वीकार कर लेनी चाहिए कि भारत जातियो का देश है जहाँ ब्राह्मणों का स्थान सबसे ऊंचा है. यह शीर्ष पर स्थापित सबसे शक्तिशाली जाति है ,भारत की तमाम हिन्दू जातीय ब्राह्मणों से चिढ़ती है, मगर उनके बिना अपने बच्चे का नामकरण तक नही कर सकती. संख्या में कम होने के बावजूद ब्राह्मणों का भारत पर पूरा दबदबा है. ताक़त के सबसे महत्वपूर्ण दो समूह अफसरशाही और मठ मंदिर के मुख्य संचालक पर ब्राह्मणों का पूरा नियंत्रण है , एक समय जब क्रिकेट को भारत का एक मज़हब कहा जाता था तब 11 में से 10 खिलाडी ब्राह्मण होते थे.
भारत के इतिहास में इस बात का कोई प्रमाण नही मिलता कि ब्राह्मण साम्प्रदयिक जाति है और वो मुसलमानो से नफरत करते है , इस पर अभी बात करेंगे ,पहले यह जानते है कि ब्राह्मणों से सबसे ज्यादा नाराज कौन है.
जाहिर यह लोग दलित है , दलितो को ऐसा लगता है कि उनके साथ हुए सामाजिक भेदभाव की जड़ में ब्राह्मणों का ज्ञान है जिसने शेष हिन्दू जतियो को दलितो से अलग किया , सिर्फ ब्राह्मणों ने उन्हें शुद्र प्रचारित किया और मनुस्मृति का आम हिन्दू को ब्राह्मणों ने परिचय कराया. मतलब धर्म का झंडा ब्राह्मणों के हाथ में है. एक समय दलित दबा कुचला था मगर चूँकि अब वो पढ़ लिख रहा है इसलिए अब मुखर होकर बोलने लगा है. अब वर्तमान हालात पर आते है. गाय को लेकर मुसलमानो और दलितो के साथ हुई हिंसक घटनाओं और मोजूदा हालात के मद्देनजर मुसलमानो ने दलितो के सुर से सुर मिलाया है.
कई प्रदर्शन में भी दोनों साथ साथ रहे है ,दलित को तमाम चिंतक ब्राह्मणवाद के खिलाफ लगातार लिखते है ,जैसे दिलीप मंडल को आप पढ़ लीजिये, वो इंडिया टुडे के संपादक रहे हैं. यह समझना होगा कि मूलतः दलित संघ का विरोधी नही है ब्राह्मण का है. अगर संघ का विरोधी होता तो दलितो का एक बहुत बड़ा हिस्सा 2017 में यूपी चुनाव में भाजपा को वोट क्यों करता. अब दूसरी बात दलित और मुसलमान पूरी तरह से एक दूसरे को आत्मसात भी नही कर रहे हैं. जैसे बसपा ने यूपी में मूसलमानो को 100 से ज्यादा टिकट दिए , मगर इन्हें दलितो ने एक तरफ़ा वोट नही दिया , शेष जगहों पर मुसलमानो ने बसपा को 5 % भी वोट नही किया , दलितो में इस वक़्त भारी बेचैनी है. उन्हें डर सता रहा है कि आरक्षण खत्म हो सकता है. मायावती अब दमदार नेता नही दिखती ,दलितो में उनके खिलाफ लोग खड़े होने लगे है , दलितो को समझने के लिए सहारनपुर चलते है , यहाँ दलितो का राजपूतो से जातीय संघर्ष हुआ , भीम आर्मी नाम के एक संगठन का बड़ा नाम हुआ ,इसके चीफ चन्द्रशेखर आज़ाद को दलितो ने सर आँखों पर बैठाया, मगर मायावती को यह बात अच्छी नही लगी , चन्द्रशेखर अब जेल में है ,भीम आर्मी कुचल दी गयी है और दलित अब अपनी सरकार आने तक सर उठा नही पाएंगे, जिसकी सम्भावना अब कम है, दलितो ने अभी अभी खडा होना शुरू किया था ,अब फिर वो पटका गया है.
मायावती का भी इतिहास अपनी ही पार्टी में दलित नेताओ को कुचलने का रहा है, हम ब्राह्मणों पर लौट कर आते है. बसपा के साथ मुसलमानो की पटरी मेल नही खा रही है ,ज्यादातर मुसलमान मायावती को पसंद नही करता , दलितो के साथ जुर्म में वो दलितो के साथ खड़ा हो जाता है मगर दलित उसके साथ दिखाई नही देता. तो दलितो के लिए मुसलमान को ब्राह्मणो की नाराजगी क्यों झेले , दलित के विरुद्ध होने वाले अत्याचार में वो बेशक इंसानियत के नाते दलितो की मदद करे. मगर ब्राह्मणों की उन्ही की तर्ज़ पर निंदा करना बंद करे.
इसके कई कारण है जैसे ब्राह्मण हिन्दू धर्म का पंडित है और अगुआ है तो उसका विरोध हिन्दू धर्म का विरोध या तो समझ लिया जाता है, या समझा दिया जाता है. अब जब अल्पसंख्यक समुदाय ऐसा करता है तो बहूसंख्यक समुदाय गुस्सा जाता है और बदले में अल्पसंख्यक समुदाय के मज़हब को निशाना बनाता है , जिससे तनाव बढ़ता है जो धीरे बेहद मुश्किल हालात ले आता है ,यह पढ़िए अगर आप व्यवहारिक जीवन में देखेंगे तो पाएंगे कि मुसलमानो के साथ ब्राह्मणो के गहरे रिश्ते है ,इस बार ईद पर आपके यहाँ कितने हिन्दू मित्र आये और उनमें ब्राह्मण कितने थे.
आसपास के ब्राह्मण आपके सुख दुख में कैसा रवैया रखते है , आप समझ लेंगे की सभी ब्राह्मण संघवादी नही है , वैसे भी चार ब्राह्मण एक ही विचारधारा पर टिके नही रह सकते ,वो अपनी लीक अलग फाड़ कर चलते है , राजनीतिक रूप से भी नेहरु परिवार ब्राह्मण ही तो है.
हिकमत ए अमली के आधार पर भी मुसलमानो को सीधी आलोचना से बचना चाहिए , देश हिन्दू और मुसलमान में बंटता जा रहा है जबकि विचारधारा का बंटवारा अच्छे हिंदुस्तानी और बुरे हिंदुस्तानी के बीच होना चाहिए। ध्यान रहे हर रात की सुबह होती है ,ऐसे में अच्छे ब्राह्मण को साथ लिए बिना सूर्य अपनी चमक नही फैला पायेगा और वैसे भी 'पड़ी लकड़ी 'लेने की जरूरत क्या है.
लेखक आसमोहमद कैफ वरिष्ठ पत्रकार
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