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वरुण गांधी के बदले तेवर, ध्वस्त न कर दें मोदी का यूपी प्लान
Special Coverage news
16 Jun 2016 11:45 AM GMT
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UP: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दल जीत की रणनीति बनाने में जुट गए हैं, लेकिन बीजेपी के सामने एक अलग ही चुनौती खड़ी हो गई है। उसके कद्दावर नेता वरुण गांधी के बदले तेवरों ने उसकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पार्टी पहले से ही सत्ता की इस लड़ाई में अपना सेनापति चुनने की समस्या से जूझ रही थी।
2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में वरुण ने कोशिश की थी पार्टी उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दे, पर वो विफल रहे। उनकी यही कोशिश 2014 के आम चुनाव में भी रही मगर न तो उन्हें मोदी सरकार में और न ही बीजेपी संगठन में कोई भाव मिला।
अब जबकि यूपी में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं तो वरुण सीएम कैंडीडेट बनने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। तमाम सर्वे में भी उन्हें पार्टी का दमदार चेहरा बताया गया है, पर पार्टी नेतृत्व उनके नाम पर सहमत होता नहीं दिखता। पार्टी की ओर से रेड सिग्नल का संकेत मिलने पर वरुण गांधी के तेवर बदले से हैं।
इलाहाबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उनके लगे पोस्टर इस बात की तस्दीक करते हैं। वरुण समर्थित दो पोस्टरों ने हर किसी का ध्यान खींचा। एक पोस्टर में मोदी, अमित शाह के साथ वरुण तो हैं ही साथ ही इसमें नजर आया संजय जोशी का भी चेहरा। वो संजय जोशी जिनका पत्ता एक जमाने में खुद नरेंद्र मोदी ने साफ किया था।
करीब एक दशक का राजनीतिक वनवास भोगने के बाद संजय जोशी फिर से पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी का हर छोटा-बड़ा कार्यकर्ता मोदी-शाह के डर से उनके साथ दिखने से कतराता है, ऐसे में वरुण का खुलेआम जोशी के साथ पोस्टर में आना सीधे-सीधे उनके इरादे बता देता है।
वरुण के साथ दूसरे पोस्टर में नजर आए शत्रुघ्न सिन्हा। उनके बगावत भरे बयानों से कई बार बीजेपी की किरकिरी हो चुकी है। बीजेपी के ऐसे दो नेताओं के अपने साथ पोस्टर लगा देने भर से वरुण गांधी के तेवरों का अंदाजा लगाया जा सकता है। वे इलाहाबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद यूपी के सांसदों के डिनर में शामिल होने भी नहीं गए।
ये भी पढ़ें: कांग्रेस महासचिव बोले- यूपी में कांग्रेस की मजबूती के लिए वरूण गांधी को पार्टी में लाना चाहिए
तो दूसरी तरफ उनकी मां और महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी बिहार में नीलगायों को मारने के आदेश पर जिस तरह पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से भिड़ीं उसे महज उनका पशुप्रेम कहकर खारिज नहीं किया जा सकता।
कयास ये भी लगाए जाने लगे हैं कि बेहतर राजनीतिक करियर के लिए इनकी कांग्रेस में एंट्री हो सकती है। इस कयास को इसलिए भी बल मिल रहा है क्योंकि कांग्रेस भी इस समय अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। ऐसे में गांधी भाइयों को साथ लाने की पुराने कांग्रेसी दिग्गजों की कोशिशें रंग ला सकती हैं।
वरुण गांधी ऐसे सवालों को महज सोशल मीडिया का पागलपन कहकर टाल देते हैं। जाहिर है कि यूपी चुनाव में बीजेपी का सीएम कैंडीडेट कौन होगा, चुनाव में कौन से मुद्दे हावी रहेंगे इन सवालों के साथ-साथ, इस सवाल का जवाब भी कम महत्वपूर्ण और दिलचस्प नहीं होगा कि वरुण गांधी का क्या होगा?
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