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131 साल पुरानी पार्टी नहीं है कांग्रेस पार्टी

Special News Coverage
30 Dec 2015 7:45 AM GMT
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लेखक परिचय
डॉ. मनीष कुमार
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एमए, एमफिल और पीएचडी की उपाधि हासिल करने वाले मनीषजी राजनीतिक टिप्‍पणीकार के रूप में मशहूर हैं। इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में लंबी पारी खेलने के बाद इन दिनों आप प्रिंट मीडिया में भी अपने जौहर दिखा रहे हैं। फिलहाल आप देश के पहले हिंदी साप्‍ताहिक समाचार-पत्र चौथी दुनिया में संपादक (समन्वय) का दायित्व संभाल रहे हैं।


टीवी चैनलों और अखबारों ने बताया कि कांग्रेस पार्टी अपना 131वां जन्मदिवस मना रही है। जब एक राष्ट्रीय पार्टी अपनी उम्र और जन्मदिन गलत बताने लग जाए और मीडिया उसे दिखाने भी लग जाए तो हैरानी होना वाजिब है। कांग्रेस पार्टी ने कुछ दिन पहले टीपू सुल्तान का भी जन्मदिन गलत तारीख को मनाया था। ज्यादा हैरानी तब होती है कि जब बुद्धिजीवी वर्ग भी चुपचाप तमाशा देखता है और कांग्रेस के इस महाझूठ पर हां में हां मिला देता है। वर्तमान में जो कांग्रेस है वो गांधी, नेहरू, मौलाना आजाद और पटेल की कांग्रेस नहीं है। यह इंदिरा गांधी द्वारा कांग्रेस से कई बार अलग होकर बनाई गई कांग्रेस पार्टी है। पहली बार इसका जन्म 12 नवंबर 1969 में हुआ जब कांग्रेस पार्टी से इंदिरा गांधी को बर्खास्त कर दिया गया था और उन्होंने अपनी एक अलग पार्टी कांग्रेस-(रिक्वीजीशन) की स्थापना की थी। नेहरू-पटेल-आजाद की कांग्रेस का चुनाव चिन्ह जोड़ा बैल था। लेकिन जब इंदिरा गांधी ने अलग पार्टी बनाई तो उन्हें यह चिन्ह नहीं मिला। तकनीकी तौर पर उसी दिन से इस पार्टी का रिश्ता पुरानी कांग्रेस से अलग हो गया। यह चुनाव चिन्ह कांग्रेस (आर्गनाइजेशन) के पास रहा क्योंकि बड़े-बड़े स्वतंत्रता सेनानी इंदिरा के विरोध में थे। यही वजह है कि इंदिरा गांधी ने गाय-बछड़े को अपना सिम्बल बनाया था। कई लोग यह मानते हैं कि गाय-बछड़ा प्रतीकात्मक रूप से इंदिरा और संजय गांधी थे।

इमरजेंसी के बाद कांग्रेस (आर) का फिर से विभाजन हुआ. 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी की तानाशाही नीतियों और प्रवृति की वजह से कांग्रेस (आर) की हार हुई थी। पार्टी नेताओं ने खुल कर इंदिरा का विरोध किया। जिससे पार्टी दो फांक में बंट गई। विरोध झेलने में इंदिरा गांधी को परेशानी होती थी इसलिए उन्होंने अलग पार्टी बनाई जिसका नाम रखा कांग्रेस (आई) मतलब इंदिरा कांग्रेस। इमरजेंसी के काले कारनामों की वजह से पार्टी का सिम्बल बदनाम हो चुका था। इस वजह से इंदिरा कांग्रेस को फिर से नया चुनाव-चिन्ह लेना पड़ा। इस बार इंदिरा ने पंजे के निशान को चुना। इंदिरा गांधी एक ऑथोरिटेरियन नेता थीं। सरकारी मशीनरी पर उनका पूरी तरह से नियंत्रण था। इलेक्शन कमीशन आज की तरह आजाद नहीं था। इसलिए, इंदिरा गांधी ने इलेक्शन कमीशन पर दबाव डाला और कांग्रेस आई का नाम इंडियन नेशनल कांग्रेस बदलवा दिया। असहाय और लाचार इलेक्शन कमीशन ने स्वीकृति दे दी। 1981 से इंदिरा कांग्रेस का नाम इंडियन नेशनल कांग्रेस पड़ गया। यह एक ऩई पार्टी थी लेकिन नाम पुराना था।

इस हिसाब से वर्तमान कांग्रेस की आयु पहले विभाजन के बाद से 46 वर्ष या फिर दूसरे विभाजन के हिसाब से 37 वर्ष या फिर इंडियन नेशनल कांग्रेस के नामकरण के बाद से 34 साल होनी चाहिए। समझने वाली बात यह है कि महात्मा गांधी, बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल की जो कांग्रेस थी वो कई बार टूटी। यहां तक कि इंदिरा गांधी की कांग्रेस भी कई बार टूटी। कांग्रेस से टूट कर ना ना प्रकार की कांग्रेस की स्थापना हुई. अगर सोनिया-राहुल की कांग्रेस 131 साल पुरानी है तो उन सभी ना ना प्रकार की पार्टियों की आयु भी 131 साल होनी चाहिए। उन्हें भी गांधी-नेहरू-बोस-पटेल-आजाद की पार्टी कहलाने का उतना ही हक है जितना सोनिया-राहुल की कांग्रेस को है। हकीकत तो यह है कि 2015 में यह एक पहेली ही है कि कौन असली कांग्रेस है और कौन नकली कांग्रेस है। यह इसलिए क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर तो कांग्रेस में विभाजन हुआ ही, साथ ही साथ राज्य स्तर पर भी कांग्रेस टूटती और बिखरती रही।

आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस पार्टी 1951 में टूटी जब जे. कृपलानी ने इससे अलग होकर किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई और एन जी रंगा ने हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी बनाई। इसी साल कांग्रेस से अलग होकर सौराष्ट्र खेदुत संघ बनी। 1956 में कांग्रेस फिर टूटी जब सी राजगोपालाचारी ने इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी बनाई। इसके बाद 1959 में बिहार, राजस्थान, गुजरात और उड़ीसा में भी कांग्रेस पार्टी टूटी। यहां कांग्रेस से अलग होकर कांग्रेसी नेताओं ने स्वतंत्र पार्टी बनाई। 1964 में के एम जॉर्ज ने केरल-कांग्रेस बनाई। 1966 में उड़ीसा में हरकृष्णा महाताब ने उड़ीसा-जन-कांग्रेस बनाई। 1967 में कांग्रेस पार्टी से चरण सिंह अलग हुए और भारतीय क्रांति दल बनाया। वहीं बंगाल में इसी साल अजय मुखर्जी ने बांग्ला-कांग्रेस का ऐलान कर दिया। अगले साल कांग्रेस मणिपुर में बीचोबीच टूटी। 1969 में कांग्रेस पार्टी से बीजू पटनायक और मारी चेन्ना रेड्डी अलग हुए और उत्कल-कांग्रेस और तेलंगाना प्रजा समिति पार्टियां कांग्रेस के विरोध में खड़ी हो गई।

1978 में कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और गोवा में कांग्रेस पार्टी फिर से टूटी। इस बार इंडियन नेशनल कांग्रेस(उर्स) बनी. इन राज्यों में जो लोग कांग्रेस में बचे थे उनमें फिर से 1981 में बंटवारा हुआ। इस बार शरद पवार पार्टी से अलग हो गए और इंडियन नेशनल कांग्रेस सोशलिस्ट बनी। इसी साल बिहार में जगजीवन राम ने कांग्रेस से अलग होने का फैसला किया और उन्होंने जगजीवन-कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। 1984 में असम में शरत चंद्र सिन्हा ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बना ली। 1986 में प्रणब दा ने विभाजन का झंडा बुलंद किया और राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस बनाई। 1988 में शिवाजी गणेशन ने तमिलानाडु में कांग्रेस को तोड़कर टीएमएम पार्टी बनाई. इसी तरह 1994 में तिवारी कांग्रेस बनी जिसमें नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह, नटवर सिंह शामिल हुए। 1996 में तो कांग्रेस से टूटकर कई राज्यों में नई पार्टियों को जन्म हुआ। इस साल कांग्रेस को विभाजित करने वाले नेताओं में कर्नाटक में बंगरप्पा, अरुणाचल प्रदेश में गेगांग अपंग, तमिलनाडु में मुपनार, मध्यप्रदेश में माधवराव सिंधिया शामिल थे। अगले साल यानि 1997 में कांग्रेस बंगाल और तमिलनाडु में फिर से टूटी. बंगाल में ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस बनाई वहीं तमिलनाडु में बी रामामूर्ति ने मक्काल कांग्रेस की स्थापना की।


1998 में पार्टी गोवा, अरुणाचल प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र में टूट कर क्रमशः गोवा राजीव कांग्रेस, अरुणाचल कांग्रेस, ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (सेकुलर), महाराष्ट्र विकास अगाढ़ी बनी. इसी तरह 1999 में नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी बनी और जम्मू कश्मीर में मुफ्ती सईद ने कांग्रेस से अलग होकर पीडीपी बनाई। फिर, 2000 से अब तक पार्टी तमिलनाडु, पांडिचेरी, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, बंगाल और आंध्रप्रदेश में टूट चुकी है। कांग्रेस के इतिहास पर सोनिया-राहुल की मोनोपॉली नहीं हो सकती है क्योंकि आज जो कांग्रेस पार्टी है वो भी मूल कांग्रेस से अलग होकर ही बनी है। सोनिया-राहुल की कांग्रेस का आजादी दिलाने वाली कांग्रेस से ठीक वैसा ही रिश्ता है जैसे कि नवीन पटनायक का उस कांग्रेस से है। जैसा कि ममता बनर्जी और शरद पवार का आजादी दिलाने वाली कांग्रेस से है। इतिहास के पन्नों को पलटने वाले कांग्रेसी नेताओं को कांग्रेस पार्टी में हुए विभाजन का इतिहास पढ़ना चाहिए और वर्तमान कांग्रेस का चेहरा ढूंढना चाहिए। आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी उस तरह से टूटी है जैसे कार का शीशा चकनाचूर हो जाता है। कांग्रेस के नेताओं को यह बताना चाहिए कि इतिहास के थपेड़े में चकनाचूर हुई कांग्रेस नामक शीशे के कांच के किस टुकड़े में सोनिया-राहुल की कांग्रेस का चेहरा दिखाई देता है। जिस कांग्रेस की दुहाई सोनिया-राहुल कांग्रेस के कार्यकर्ता देते हैं वो कांग्रेस कब की खत्म हो चुकी है।

बोफोर्स, 2 जी, कोयला, कॉमनवेल्थ, आदर्श आदि जैसे सैकड़ो घोटालों से सुशोभित सोनिया-राहुल पारिवार वाली कांग्रेस पार्टी के नेता जब कहते हैं कि उनकी कांग्रेस पार्टी ने देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाई थी तो हैरानी होती है। आजादी दिलाने वाले महापुरूषों की पार्टी घोटालों वाली पार्टी नहीं हो सकती। नेहरू-पटेल-मौलाना आजाद की पार्टी वोटबैंक की राजनीति करने वाली पार्टी नहीं हो सकती। स्वतंत्रता-सेनानियों की पार्टी किसी की प्राइवेट प्रोपर्टी नहीं हो सकती है। देश को आजादी दिलाने वालों की पार्टी बिना चुनाव के अध्यक्ष चुनने वाली पार्टी नहीं हो सकती। गांधी की पार्टी झूठ बोलने वालों की पार्टी नहीं हो सकती। सोनिया-राहुल की पार्टी वो कांग्रेस है जिसे इंदिरा गांधी ने कांग्रेस से अलग होकर बनाया था लेकिन सोनिया-राहुल और उनके प्रवक्ता खुलेआम झूठ बोलकर लोगों को झांसा देने में लगे है।

कांग्रेस पार्टी की रणनीति साफ है। सोनिया-राहुल की कांग्रेस महापुरुषों का नाम लेकर, उनकी तस्वीरें लगाकर, झूठा इतिहास बता कर अपने घोटालों और निकम्मेपन को छिपाना चाहती है। सच्चाई ये है कि वर्तमान कांग्रेस पार्टी गांधी, पटेल, आजाद, तिलक, बोस आदि जैसे महापुरुषों वाली कांग्रेस नहीं है। यह कांग्रेस सोनिया-राहुल की कांग्रेस है जिसमें एक से बढ़कर एक घोटालेबाजों का वर्चस्व है। यह सामंती प्रवृति वालों की कांग्रेस है। यह पार्टी सोनिया-राहुल की निजी सम्पत्ति है। इस पार्टी की राजनीति सोनिया गांधी के चरणों से शुरू होकर राहुल गांधी की वंदना में खत्म होती है। सोनिया-राहुल की कांग्रेस को न तो आजादी की लड़ाई से कुछ लेना देना है और न ही वो देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों के राजनीतिक वारिस हैं। जिस पार्टी ने स्वतंत्रता संग्राम की विचारधारा को ही दफना दिया उसे स्वतंत्रता संग्राम की विरासत पर बात करने की कोई नैतिक अधिकार नहीं है। सोनिया गांधी कांग्रेस का अध्यक्ष बनने से ठीक 62 दिन पहले पार्टी की सदस्य बनी थीं। महज 62 दिनों में ही वो पार्टी अध्यक्ष बन गई। यह कीर्तिमान तो स्वयं गांधी और नेहरू नहीं बना सके। यह कांग्रेस पार्टी में व्याप्त एक परिवार के प्रति दासता का परिचायक है। इस हरकत ने एक ही झटके में उन सभी शहीदों को शर्मसार कर दिया जिन्होंने देश में प्रजातंत्र की स्थापना के लिए अपनी जानें दीं। इसलिए, सोनिया-राहुल को स्वतंत्रता संग्राम के बारे बात करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। सोनिया-राहुल की कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ इंदिरा गांधी की राजनीतिक वारिस है जिसके चेहरे पर इमरजेंसी का स्याह दाग है।

साभार प्रवक्ता.काम
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