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राष्ट्रीय
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बारें में किया अहम् खुलासा इस वेव साईट ने
Special News Coverage
3 Jan 2016 7:04 AM GMT
लखनऊः नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आखिरी दिनों से जुड़ी सूचनाओं को संकलित करने के लिए ब्रिटेन में शुरू की गई एक वेबसाइट ने उन दावों को खारिज करने के लिए नए दस्तावेज जारी किए हैं कि विमान हादसे में उनकी कथित मौत के वर्षों बाद उन्हें चीन में देखा गया था।
वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट बोसफाइल्स डॉट इंफो ने बीजिंग में भारतीय दूतावास द्वारा भेजे गए एक टेलीग्राम की प्रति जारी की है जिसमें भारत में किए जाने वाले उन दावों का खंडन किया गया है कि राष्ट्रवादी नेता 1952 में चीन की राजधानी में थे। कहा जाता है कि 1945 में ताइवान में एक विमान हादसे में नेताजी की मौत हो गई थी, लेकिन उनके एक पक्के समर्थक एस एम गोस्वामी ने 1955 में एक परचा प्रकाशित कराया था जिसका शीर्षक था नेताजी से जुड़े रहस्य का खुलासा।
इसमें मंगोलियाई व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल के साथ चीनी अधिकारियों की एक तस्वीर भी थी। कहा जाता है कि वह तस्वीर 1952 की थी। गोस्वामी ने दावा किया था कि तस्वीर में दिख रहे लोगों में एक नेताजी हैं। वह नेताजी से जुड़ी एक जांच समिति के समक्ष बतौर गवाह पेश हुए और नेताजी के जीवित होने के सबूत के तौर पर उस तस्वीर को पेश किया जबकि खबरें थीं कि नेताजी की मौत 1945 में ही हो गयी थी। समिति ने उस तस्वीर को पहचान के लिए बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास को भेजा। राजनयिक मिशन ने उस तस्वीर को चीनी विदेश मंत्रालय के पास भेजा।
चीन के विदेश मंत्रालय से मिले जवाब के बाद दूतावास ने भारत के विदेश मंत्रालय को टेलीग्राम भेजा, सुभाष चंद्र बोस की कथित तस्वीर के संबंध में हमने इसे विदेश कार्यालय को दिखाया और उन्होंने हमें सूचित किया कि वह तस्वीर ली की हुंग की है जो पीकिंग यूनिवर्सिटी मेडिकल कालेज में मेडिकल अधीक्षक हैं।
बेवसाइट की स्थापना करने वाले लंदन स्थित पत्रकार आशीर रे ने कहा कि टेलीग्राम नेताजी के बारे में गलत सूचना फैलाने के 70 साल से ज्यादा के कई प्रयासों में से एक का पर्दाफाश करता है। उन्होंने इस वेबसाइट की स्थापना नेताजी के संबंध में दस्तावेजी सबूत जारी करने के लिए की है।
इस वेबसाइट ने सात दिसंबर को उन दावों का पर्दाफाश किया था कि बोस 1945 में सोवियत संघ चले गए थे। वेबसाइट ने 1992 और 1995 की रूसी विदेश मंत्रालय की दो टिप्पणियों और 1996 में भारत में तत्कालीन रूसी राजदूत के सार्वजनिक बयान को पोस्ट किया था, जिनमें सर्वसम्मति से यह पुष्टि की गयी थी कि बोस के 1945 में या उसके बाद सोवियत संघ पहुंचने के बारे में सोवियत या केजीबी अभिलेखागारों में कोई सूचना नहीं है।
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