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पीएम मोदी ने राज्यसभा में अपने संबोधन में कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया, जानिए- बड़ी बातें
नई दिल्ली। लोकसभा और राज्यसभा में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण पर चर्चा हो रही है। लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जवाब देने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को राज्यसभा में अपना जवाब दे रहे हैं। पीएम मोदी ने देश वासियों का जीत का आभार प्रकट किया। पीएम ने कहा कि पहले से अधिक जनसमर्थन और विश्वास के साथ हमें दोबारा देश की सेवा करने का अवसर देशवासियों ने दिया है। मैं सबका आभार प्रकट करता हूं। दशकों बाद देश ने एक मजबूत जनादेश दिया है, एक सरकार को दोबारा फिर से लाए हैं और पहले से अधिक शक्ति देकर लाए हैं। भारत जैसे लोकतंत्र में हर भारतीय के लिए गौरव का विषय है कि हमारा मतदाता कितना जागरुक है। देश के लिए निर्णय करता है, यह चुनाव में साफ साफ नजर आया। 2019 का चुनाव एक प्रकार से दलों से परे देश की जनता लड़ रही थी। जनता खुद सरकार के कामों की बात लोगों तक पहुंचाती थी।
पीएम मोदी ने राज्यसभा में अपने संबोधन में अप्रत्यक्ष रुप से कांग्रेस पर हमलावर रहे और पीएम ने कहा कि जिसे लाभ नहीं मिला वो भी ये बात करता था कि उस व्यक्ति को लाभ मिल गया है अब मुझे भी मिलने वाला है। इस विश्वास की एक अहम विशेषता है। इतने बड़े जनादेश को कुछ लोग ये कह दें कि आप तो चुनाव जीत गए लेकिन देश चुनाव हार गया। मैं समझता हूं कि इससे बड़ा भारत के लोकतंत्र और जनता जनार्दन का कोई अपमान नहीं हो सकता। मैं पूछना चाहूंगा कि क्या वायनाड में हिंदुस्तान हार गया क्या? क्या रायबरेली में हिन्दुस्तान हार गया? क्या बहरामपुर और तिरुवनंतपुरम में हिंदुस्तान हार गया क्या? और क्या अमेठी में हिंदुस्तान हार गया? मतलब कांग्रेस हारी तो देश हार गया क्या? अहंकार की भी एक सीमा होती है मैं हैरान हूं, मीडिया को भी गाली दी गई कि मीडिया के कारण चुनाव जीते जाते हैं। मीडिया बिकाऊ है क्या? जो खरीद कर चुनाव जीत लिए जाएं। तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी यही लागू होगा क्या?।
ये तक कह दिया कि देश का किसान बिकाऊ है। दो-दो हजार रुपये की योजना के कारण किसानों के वोट खरीद लिए गए। मैं मानता हूं कि मेरे देश का किसान बिकाऊ नहीं हो सकता। ऐसी बात कहकर देश के करीब 15 करोड़ किसान परिवारों को अपमानित किया गया है। 55-60 वर्ष तक देश को चलाने वाला एक दल 17 राज्यों में एक भी सीट नहीं जीत पाया तो क्या इसका मतलब ये हुआ कि देश हार गया?
जब स्वयं पर भरोसा नहीं होता है, सामर्थ्य का अभाव होता है, तब फिर बहाने ढूंढे जाते हैं। आत्मचिंतन करने और अपनी गलतियों को स्वीकारने की जिनकी तैयारी नहीं होती वो फिर EVM पर ठीकरा फोड़ते हैं। जिससे अपने साथियों को बताया जाये कि देखो देखो हम तो EVM के कारण हारे इस चुनाव की एक विशेषता है कि ईस्ट, वेस्ट, नॉर्थ, साउथ सभी कोने से बहुमत के साथ बीजेपी और एनडीए जीतकर आया हैं। जो हार गए हैं, जिनके सपने चूर-चूर हो गए वो मतदाताओं का अभिनंदन नहीं कर सकते होंगे। मैं मतदाताओं का सिर झुकाकर कोटि-कोटि अभिनंदन करता हूं
कभी सदन में हम भी 2 रह गए थे। हमको 2 या 3 बस, कहकर बार-बार हमारी मजाक उड़ायी जाती थी। लेकिन हमें कार्यकर्ताओं पर भरोसा था, देश की जनता पर भरोसा था। हममें परिश्रम करने की पराकाष्ठा थी और इससे हमने फिर से पार्टी को खड़ा किया। हमने ईवीएम पर दोष नहीं दिया था । कांग्रेस की कुछ न कुछ ऐसी समस्या है कि ये विजय को भी नहीं पचा पाते और 2014 के बाद से मैं देख रहा हूं कि ये पराजय को भी स्वीकार नहीं कर पाते। चुनाव प्रक्रिया में सुधार होते रहे हैं और होते रहने चाहिए। खुले मन से इस पर चर्चा होनी चाहिए। लेकिन बिना चर्चा के ये कह देना कि हम एक देश-एक चुनाव के पक्ष में नहीं हैं, कम से कम चर्चा तो करनी चाहिए। ये समय की मांग है कि देश में कम से कम मतदाता सूची तो एक हो
आपको OLD INDIA चाहिए, जहां पत्रकार वार्ता में कैबिनेट के निर्णय को फाड़ दिया जाए, जहां पूरी नौसेना को सैर सपाटे के लिए इस्तेमाल लिया जाए। जहां जल थल और नभ हर जगह घोटाले ही घोटाले हों। लेकिन देश की जनता हिन्दुस्तान को पुराने दौर में ले जाने के लिए कतई तैयार नहीं है। देश की जनता अपने सपनों के अनुरूप नए भारत की प्रतीक्षा कर रही है और हम सभी को सामूहिक प्रयासों से सामान्य मानवी के सपनों को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। मैं हैरान हूं कि नकारात्मकता और विरोधाभास इस हद तक गया कि शौचालय, स्वच्छता, जनधन, योग का कार्यक्रम और यहां तक की मेक इन इंडिया का भी मजाक उड़ाया गया। हर चीज में देश ने नकारात्मकता को भली-भांति देखा गया है। क्या हमें वो ओल्ड इंडिया चाहिए जो टुकड़े-टुकड़े गैंग को सपोर्ट करने के लिए पहुंच जाए जहां इंस्पेक्टर राज हो, जहां इंटरव्यू के नाम पर भ्रष्टाचार हो। देश की जनता हिंदुस्तान को पुराने दौर में ले जाने के लिए कतई तैयार नहीं है।
सबका साथ सबका विकास का मंत्र लेकर हम चले थे लेकिन 5 साल के हमारे कार्यकाल को देखकर देश की जनता ने उसमें सबका विश्वास रुपी अमृत जोड़ा है। लेकिन आजाद साहब को कुछ धुंधला नजर आ रहा है, जब तक राजनीतिक चश्मे से सब देखा जायेगा तो धुंधला ही नजर आएगा और इसलिए अगर हम राजनीतिक चश्में उतारकर हम देखेंगे तो देश का भविष्य नजर आएगा । शायद इसीलिए ग़ालिब ने कहा था कि ताउम्र ग़ालिब ये भूल करता रहा, ताउम्र ग़ालिब ये भूल करता रहा, धूल चेहरे पर थी और मैं आइना साफ़ करता रहा