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आचार्य प्रमोद कृष्णन बोले मिसाइल दागने वाले क्यों डरते हैं फ्लाइंग किस से!
मैंने मेरे पिछले कई ब्लॉक में नेताओं के शब्द बाण और बयानी तीर का उदाहरण सहित जिक्र कर चुका हूं। मगर चूंकि अगर बयानबाजी में कुछ ऐसा शब्द नहीं बोला गया हो जो चर्चा में आने के लायक हो तो बिना ऐसे शब्द के वह बयान आमजन तक नहीं पहुंच पाते हैं। और जब तक ऐसे बयान सामने नहीं आएंगे तो उन बयानों का कोई असर भी नहीं होता है। लेकिन आज फिर दो मुद्दे से सामने आए जिन्हें आप तक इस ब्लॉग के माध्यम व्यक्त कर रहा हूं।
पहले बात कर देते हैं ट्विटर पर हमेशा चर्चित रहने वाले गांधी परिवार के नजदीकी कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन की तो उन्होंने बड़ी चतुराई से बिना किसी भाजपा नेता का नाम लिया था अपने टि्वटर हैंडल पर एक पोस्ट किया है जिसमें उन्होंने लिखा है की प्रमोद कृष्णम ने इस मुद्दे पर बीजेपी का नाम लिए बिना निशाना साधा और कहा कि जो लोग मिसाइल दागने की बात करते हैं वो आज राहुल गांधी के एक फ्लाइंग किस से डर गए हैं। यह ट्वीट राहुल पर 21 महिला सांसद द्वारा आपत्ति किए जाने के बाद आचार्य प्रमोद कृष्ण ने किया है। यह बताने की जरूरत नहीं की लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी के 'फ्लाइंग किस' को लेकर विवाद छिड़ गया था।
केंद्रीय स्मृति ईरानी ने जहां सदन के भीतर उनके इस व्यवहार की आलोचना की वहीं बीजेपी की महिला सांसदों ने स्पीकर से इसकी लिखित शिकायत की है।इधर 'इंडिया' गठबंधन के नेताओं का कहना है कि बीजेपी को नफरत की आदत हो गई है उन्हें मोहब्बत समझ नहीं आती है। अब इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा में विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देंग,इसे लेकर राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे गुस्सा हो गए और बीजेपी पर बरस पड़े. खरगे ने कहा, प्रधानमंत्री के आने से क्या होगा. वो कोई परमात्मा हैं क्या? क्या कुछ होगा नहीं कहा जा सकता।
मगर पार्टी कांग्रेस अध्यक्ष और सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी आज राज्यसभा में कुछ ऐसा ही कहा। मल्लिकार्जुन खरगे राज्यसभा में नेता सदन पीयूष गोयल को जवाब दे रहे थे. खरगे ने कहा, "नेता सदन मेरे पास आए थे। मुझे कुछ काम था, मुझे कुछ जरूरी काम था, जिसके सिलसिले में मुझे कहीं जाना था. उस दौरान 167 के तहत चर्चा पर सहमति बनी थी। अब वे दूसरी बात बोल रहे हैं."। गुस्से में खरगे ने कहा था की कोई नरेंद्र मोदी परमात्मा है। कुल मिलाकर राजनीति में आप शब्दों की मर्यादा धीरे-धीरे कम होती जा रही है! बड़े-बड़े नेता कुछ भी बोल लें मगर जब कोई सामान्य नागरिक इसी तरह की कोई बात करें तो उसको चारों तरफ से घेर लिया जाता है। बोलने की लोक तंत्र में छूट है मगर इसका यह अर्थ नही की एक ही तरह के प्रकरण में दो तरह के पैमाने क्यों ?