राजनीति

आखिर कैसे बसपा उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 में भाजपा की जीत की वजह बनी ?

Shiv Kumar Mishra
6 July 2023 1:26 PM GMT
आखिर कैसे बसपा उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 में भाजपा की जीत की वजह बनी ?
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बसपा जिसको विधानसभा चुनाव 2017 में 22 फीसदी वोट मिले थे उसको 2022 के चुनाव में केवल 12 फीसदी वोट ही पड़ा था।

यूपी चुनाव 2022 में कई सीटें ऐसी हैं जहां जीत-हार का अंतर 500 वोटों के आंकड़े को भी पार नहीं कर सका. ये वो सीटें थीं जहां आखिरी दौर की गिनती तक उम्मीदवारों की नजर वोटों की गिनती पर थी. उत्तर प्रदेश की 11 सीटों पर जीत का अंतर 500 से कम था. इनमें से 7 सीटों पर बीजेपी और 4 सीटों पर एसपी के उम्मीदवार जीते.

इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 122 सीटों पर मुस्लिम और यादव उम्मीदवार उतारे थे. बसपा की ये रणनीति बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुई. इनमें से 68 सीटें बीजेपी गठबंधन के खाते में गईं. बीएसपी ने 91 मुस्लिम और 15 यादवों को टिकट दिया था. इनमें से 16 प्रत्याशी ऐसे थे जो सपा प्रत्याशी की जाति के थे। इस पूरे गणित ने एसपी का काम बिगाड़ दिया. बसपा इनमें से एक भी नहीं जीत सकी। लेकिन उन्होंने सपा का काम बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभाई. बीजेपी गठबंधन को 68 सीटें मिलीं, जबकि एसपी गठबंधन को सिर्फ 54 सीटें मिलीं.

बसपा जिसको विधानसभा चुनाव 2017 में 22 फीसदी वोट मिले थे उसको 2022 के चुनाव में केवल 12 फीसदी वोट ही पड़ा था। अगर बसपा अपने वोट बैंक को अपने साथ बरक़रार रखती तो शायद इस चुनाव के नतीजे कुछ और होते।

विधानसभा चुनाव 2022 में सपा को अपनी स्थापना के बाद से सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। सपा ने पहली बार 1993 में चुनाव लड़ा था। बसपा के साथ लड़े इस चुनाव में सपा को 17.94 फीसदी वोट मिले थे। 1996 के चुनाव में सपा को 21.80 फीसदी वोट मिले थे. 2002 में पार्टी को 25.37 फीसदी वोट मिले थे जबकि 2007 के चुनाव में सपा को 25.43 फीसदी वोट मिले थे.

2012 में जब सपा ने 224 सीटें जीतकर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई तो उसे सिर्फ 29.13 फीसदी वोट मिले थे. 2017 में 21.82 फीसदी वोट मिले थे. इस बार यानी 2022 में सपा को कुल 32.03 फीसदी वोट मिले. लेकिन वह सत्ता से दूर रहीं.

कुछ सीटों के उदाहरण से इस मुद्दे को और अच्छे से समझते हैं:

बिसवां सीट पर समाजवादी पार्टी के अफजल कौसर की हार का कारण बसपा के हाशिम अली बने, जहां बीजेपी के निर्मल वर्मा को 106000 वोट मिले, वहीं अफजल कौसर को 95000 वोट मिले, वहीं बसपा के हाशिम अली को 24000 वोट मिले.

महमूदाबाद सीट पर बीजेपी की आशा मौर्य ने 92091 वोट पाकर जीत हासिल की. समाजवादी पार्टी के नरेंद्र सिंह वर्मा 86869 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर हैं, बसपा उम्मीदवार मीसम अम्मार रिज़वी को 35304 वोट मिले हैं।

मुजफ्फरनगर जिले की खतौली विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी विक्रम सिंह 100651 वोटों से चुनाव जीत गए. जबकि रालोद प्रत्याशी राजपाल सिंह सैनी 84306 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। इस सीट पर बसपा प्रत्याशी को 31412 वोट मिले हैं.

सहारनपुर जिले की नकुड़ विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार बीजेपी उम्मीदवार से महज 315 वोटों से हार गए. इस सीट पर बीजेपी को जहां 104114 वोट मिले वहीं सपा प्रत्याशी को 103799 वोट मिले. इस सीट पर एमआईएम के उम्मीदवार को 3593 वोट मिले हैं. इसके अलावा बसपा प्रत्याशी 55112 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे हैं.

कुशीनगर जिले की खड्डा सीट पर वोटों का भारी बंटवारा हुआ है, जहां पर निषाद पार्टी से जीते विवेकानन्द पांडे को 88291 वोट मिले, जबकि निर्दलीय प्रत्याशी विजय प्रताप कुशवाहा 46840 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे. मजलिस के उम्मीदवार अख्तर वसीम को भी 16419 वोट मिले हैं, इसके अलावा बीएसपी के निसार अहमद सिद्दीकी को भी 19997 वोट मिले हैं, सुहेलदेव पार्टी के अशोक चौहान को भी 21126 वोट मिले हैं.

अलीगढ़ विधानसभा सीट पर बीजेपी प्रत्याशी मुक्ता राजा ने 120389 वोट हासिल कर जीत हासिल की है. इस सीट पर सपा प्रत्याशी जफर आलम को 107603 वोट मिले हैं. इस सीट पर बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार रजिया खान को भी मैदान में उतारा था, जिन्हें 18273 वोट मिले हैं.

अलीगढ़ जिले की कौल सीट पर बीजेपी के अनिल पाराशर ने 108067 वोट हासिल कर जीत हासिल की है. सपा प्रत्याशी शाज़ इशाक को 103039 वोट मिले हैं। इस सीट पर बीएसपी ने मुस्लिम उम्मीदवार मोहम्मद बिलाल को मैदान में उतारा था, जिन्हें 23016 वोट मिले थे. इसके अलावा कांग्रेस प्रत्याशी को 15550 वोट भी मिले हैं.

पिछले चुनाव की तरह इस बार भी श्रावस्ती विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी राम फेरन 1457 वोटों से चुनाव जीत गए हैं. इस चुनाव में उन्हें 98640 वोट मिले, जबकि सपा प्रत्याशी मोहम्मद असलम राईनी को 97183 वोट मिले. इस सीट पर बसपा प्रत्याशी को 41026 और पीस पार्टी प्रत्याशी को 3478 वोट मिले।

लेखक : अंसार इमरान, पत्रकार

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