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हिमाचल और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद बैचेन बीजेपी को यूपी में दिख रहा बड़ा खतरा
हिमाचल और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद घबराये भाजपा नेतृत्व ने देश में सर्वाधिक लोकसभा क्षेत्र वाले यूपी की ओर रुख कर लिया है। भाजपा नेतृत्व चाहता है कि इस बार उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर हर हाल में भाजपा जीत ले। पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को 64 और गठबंधन समेत 15 सीटें और एक सीट कांग्रेस को मिली थी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2022 में विधायक बनने के बाद आजमगढ़ लोकसभा सीट से त्यागपत्र दे दिया। जबकि रामपुर लोकसभा सीट से निर्वाचित सपा के राष्ट्रीय महासचिव आजमखान को एमपी-एमएलए कोर्ट द्वारा दोषी ठहराये जाने के बाद सदस्यता गंवानी पड़ी। जब आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ तो इन सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया।
वर्तमान में प्रदेश में 64 लोकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है जबकि भाजपा गठबंधन के पास 66 सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में जिन 16 सीटों पर भाजपा को पराजय मिली उसे जीतने के लिये भाजपा कुछ करने को तैयार है। जबकि भाजपा के कुछ सांसदों का पार्टी से दोबारा लड़ना संदिग्ध है। हारी हुई 16 सीटों के अलावा पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी की सीट, कैसरगंज से सांसद बृजभूषण शरण सिंह की सीट, प्रयागराज से सांसद डॉ रीता बहुगुणा जोशी की सीट और वरुण गांधी की माँ मेनका गांधी की सुल्तानपुर सीट को भाजपा अभी अपना ही गिन रही है।
बिना डरे वरुण गांधी लगातार भाजपा की गलत नीतियों को निशाना बनाते आ रहे हैं।कैसरगंज के सांसद बृजभूषण शरण सिंह महिला पहलवानों के साथ यौन उत्पीड़न के आरोप में सुर्खियां बटोर रहे हैं।ऐसी धारणा है कि वह भाजपा के बदौलत सांसद नहीं चुने जाते। प्रयागराज से सांसद डॉ रीता बहुगुणा जोशी के बेटे मयंक जोशी ने विधानसभा चुनाव 2022 के ऐन टाइम पर समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली थी। भाजपा नेतृत्व ने रीता बहुगुणा जोशी को जो अपमान दिया था उसे वह भूली नहीं हैं। इसके अलावा सुल्तानपुर की सांसद मेनका गांधी को उम्र का हवाला देकर भाजपा इस बार लोकसभा चुनाव में बैठना चाहती है। इसके विपरीत 8 बार की सांसद मेनका गांधी इस बार अपने राजनैतिक जीवन मे सबसे ज्यादा सक्रियता दिखा रही हैं। भाजपा नेतृत्व उनका टिकट काटती है तो उनका चुप बैठना बहुत मुश्किल लगता है। भाजपा नेतृत्व को 16 की जगह 20 सीटों को चिन्हित करना चाहिये।
भाजपा रणनीतिकारों की शुतुरमुर्गी रणनीतिक उनके तैयारी की हवा निकाल रही है लेकिन वह इससे अनभिज्ञ बने हैं। इन्हीं हकीकतों को जानने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष के पैर से जमीन खिसक गयी है। वह आनन फानन में उत्तर प्रदेश छानने चले आये। इसके अलावा उन सीटों को भी भाजपा अपने मिशन 80 का हिस्सा मान रही है जहां उसको विधानसभा और नगर पालिका चुनाव में करारी हार मिली है। आजमगढ़, गाजीपुर और अम्बेडकर नगर में उसे 2019 के लोकसभा चुनाव में पराजय के साथ विधानसभा चुनाव में भी खाता नहीं खुला था। राज्यों में मिल रही हार और उत्तर प्रदेश में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से डरे भाजपा नेतृत्व ने छोटे-छोटे दलों से गठबंधन और नये वोटर वर्ग को चिन्हित कर उनसे संपर्क करने का अभियान छेड़ दिया है।
जबकि 2014 से केंद्र और 2017 से उत्तर प्रदेश में सत्तासीन हुए पार्टी ने मूल कार्यकर्ताओं की अनदेखी का अपराध किया है।जिसकी इन्हें भारी नुकसान होता दिख रहा है।आजमखान को रामपुर लोकसभा सीट से भाजपा ने यूपी में अपने मिशन 80 को पूरा करने के लिए पार्टी के सभी नये व पुराने कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों को लोकसभा चुनाव के लिए सक्रिय रहने का निर्देश दिया है। राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष ने लखनऊ में पार्टी मुख्यालय पर पदाधिकारियों के साथ बैठक कर रणनीति पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि प्रदेश की सभी लोकसभा सीटें जीतने के लिए कार्यकर्ता जनता के बीच जाएं और उन्हें मोदी सरकार की नौ साल की उपलब्धियों के बारे में बतायें।
डरा नेतृत्व कार्यकर्ताओं को डिलीवरी मैन, दूध वाले, सब्जी वाले और फेरी वालों को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी है। लखनऊ पहुंचे महामंत्री संगठन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में कोर कमेटी की बैठक में सरकार और संगठन के बीच समन्वय के साथ चुनावी मुद्दों पर मंथन भी किया।केंद्र और प्रदेश सरकार में कभी सत्ताधारी होने का एहसास न कर पाने वाले सोशल मीडिया और आईटी विभाग के पदाधिकारियों को भी पूंछा जा रहा है। सूत्रों के अनुसार उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक सहित कुछ वरिष्ठ मंत्रियों से अलग-अलग बातचीत कर बीएल संतोष मुख्यमंत्री के आवास पर कोर कमेटी की बैठक लेंगे।