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जब कोई नेता छात्र जीवन में राजनीति चुनता है तो उसका अतिरिक्त सम्मान किया जाना चाहिए और अंत-अंत तक टिका रह जाए तो उसका विशेष सम्मान किया जाना चाहिए। सुरक्षित जीवन को छोड़ असुरक्षित का चुनाव आसान नहीं होता है। 1974 में शुरू हुए जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में जेटली शामिल हुए थे। आपातकाल की घोषणा के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया क्योंकि रामलीला मैदान में जेपी के साथ वे भी मौजूद थे। बग़ावत से सियासी सफ़र शुरू करने वाले जेटली आख़िर तक पार्टी के वफ़ादार बने रहे। एक ही चुनाव लड़े मगर हार गए। राज्य सभा के सांसद रहे। मगर अपनी काबिलियत के बल पर जनता में हमेशा ही जन प्रतिनिधि बने रहे। उन्हें कभी इस तरह नहीं देखा गया कि किसी की कृपा मात्र से राज्य सभी की कुर्सी मिली है। जननेता नहीं तो क्या हुआ, राजनेता तो थे ही।
उनकी शैली में शालीनता, विनम्रता, कुटीलता, चतुराई सब भरी थी और एक अलग किस्म का ग़ुरूर भी रहा। मगर कभी अपनी बातों का वज़न हल्का नहीं होने दिया। बयानबाज़ी के स्पिनर थे। उनकी बात काटी जा सकती थी लेकिन होती ख़ास थी। वे एक चुनौती पेश करते थे कि आपके पास तैयारी है तभी उनकी बातों को काटा जा सकता है। लटियन दिल्ली के कई पत्रकार उनके बेहद ख़ास रहे और वे पत्रकारों के राज़दार भी रहे। लोग मज़ाक में ब्यूरो चीफ़ कहते थे।
वक़ालत में नाम कमाया और अपने नाम से इस विषय को प्रतिष्ठित भी किया। बहुत से वकील राजनीति में आकर जेटली की हैसियत प्राप्त करना चाहते हैं। जेटली ने बहुतों की निजी मदद की। तंग दिल नहीं थे।उनके क़रीब के लोग हमेशा कहते हैं कि ख़्याल रखने में कमी नहीं करते।
अरुण जेटली सुष्मा स्वराज, मनोहर पर्रिकर, अनंत कुमार, गोपीनाथ मुंडे जैसे नेता भाजपा में दूसरी पीढ़ी के माने गए। इनमें जेटली और सुष्मा अटल-आडवाणी के समकालीन की तरह रहे। जब गुजरात में नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे तब जेटली दिल्ली में उनके वक़ील रहे। प्रधानमंत्री ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है कि दशकों पुराना दोस्त चला गया है। अरुण जेटली को अमित शाह भी याद करेंगे। एक अच्छा वक़ील और वो भी अच्छा दोस्त हो तो सफ़र आसान होता है।
उनके देखने और मुस्कुराने का अंदाज़ अलग था। कई बार छेड़छाड़ वाली मस्ती भी थी और कई बार हलक सुखा देने वाला अंदाज़ भी। जो भी थे अपनी बातों और अंदाज़ से राजनीति करते थे न कि तीर और तलवार से। जो राजनीति में रहता है वह जनता के बीच रहता है। इसलिए उसके निधन को जनता के शोक के रूप में देखा जाना चाहिए। सार्वजनिक जीवन को सींचते रहने की प्रक्रिया बहुत मुश्किल होती है। जो लोग इसे निभा जाते हैं उनके निधन पर आगे बढ़कर श्रद्धांजलि देनी चाहिए। अलविदा जेटली जी। आज का दिन बीजेपी के शालीन और ऊर्जावान नेताओं के लिए बहुत उदासी भरा होगा। मैं उनके प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता हूं। ओम शांति।
रवीश कुमार
रविश कुमार :पांच दिसम्बर 1974 को जन्में एक भारतीय टीवी एंकर,लेखक और पत्रकार है.जो भारतीय राजनीति और समाज से संबंधित विषयों को व्याप्ति किया है। उन्होंने एनडीटीवी इंडिया पर वरिष्ठ कार्यकारी संपादक है, हिंदी समाचार चैनल एनडीटीवी समाचार नेटवर्क और होस्ट्स के चैनल के प्रमुख कार्य दिवस सहित कार्यक्रमों की एक संख्या के प्राइम टाइम शो,हम लोग और रविश की रिपोर्ट को देखते है. २०१४ लोकसभा चुनाव के दौरान, उन्होंने राय और उप-शहरी और ग्रामीण जीवन के पहलुओं जो टेलीविजन-आधारित नेटवर्क खबर में ज्यादा ध्यान प्राप्त नहीं करते हैं पर प्रकाश डाला जमीन पर लोगों की जरूरतों के बारे में कई उत्तर भारतीय राज्यों में व्यापक क्षेत्र साक्षात्कार किया था।वह बिहार के पूर्व चंपारन जिले के मोतीहारी में हुआ। वह लोयोला हाई स्कूल, पटना, पर अध्ययन किया और पर बाद में उन्होंने अपने उच्च अध्ययन के लिए करने के लिए दिल्ली ले जाया गया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की और भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया।