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गुजरात मॉडल से भिड़ेगा बिहार मॉडल, मोदी के गढ़ में नीतीश भरेंगे हुंकार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके लोकसभा क्षेत्र बनारस में घेरने की रणनीति बनाई है। इसकी शुभारंभ आने वाले 24 दिसंबर 2023 को होगा। इसी दिन नीतीश कुमार अपना चुनावी बिगुल भी फूंक देंगे। इस बार गुजरात मॉडल बनाम बिहार मॉडल मुद्दा बनाकर देश में लोकसभा चुनाव में उतरा जाएगा। इसके लिए यूपी में सियासी जमीन बनाने के लिए जदयू ने एक बड़ा खाका खींचा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार फूलपुर अथवा मिर्जापुर से ताल ठोंक सकते हैं। वहीं सुनने में आ रहा है बनारस भी उनके निशाने पर है, क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी, कुर्मी-पटेल वोटरों की बदौलत ही चुनाव जीतते आए हैं। बनारस संसदीय क्षेत्र में आधी आबादी पटेल और मुसलमानों की है। अगर मुस्लिम पटेल एक मंच पर आए तो पीएम मोदी के लिए मुश्किलें खड़ी कर देंगे।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर बीजेपी के खिलाफ अपना प्लान बना दिया है। जेडीयू ने सीएम नीतीश की उत्तर प्रदेश और झारखंड में चुनावी रैलियां कराने का प्लान बनाया है। हैं। इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से होगी। नीतीश इसी महीने बनारस में मोदी सरकार के खिलाफ हुंकार भर सकते हैं। कुर्मी बाहुल्य इलाके वाराणसी के रोहनियां में 24 दिसंबर को उनकी जनसभा कराने की तैयारी की चल रही है। हालांकि, सीएम के हवाले से इसकी पुष्टि नहीं की गई है। उनके यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ने की अटकलें भी तेज हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसी महीने यूपी से लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार अभियान का आगाज करेंगे। उत्तर प्रदेश के जेडीयू संयोजक सत्येंद्र कुमार ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने स्पष्ट किया है कि आगामी रैली का कार्यक्रम जेडीयू का है, यह INDIA गठबंधन की साझा जनसभा नहीं है। बताया जा रहा है कि वाराणसी के जगतपुर इंटर कॉलेज मैदान में सीएम नीतीश 24 दिसंबर को रैली कर सकते हैं।
जेडीयू का यूपी और झारखंड वाला प्लान
जेडीयू ने बिहार से बाहर उत्तर प्रदेश और झारखंड में अपनी स्थिति मजबूत करने का प्लान बनाया है। वाराणसी से नीतीश चुनावी प्रचार का आगाज करेंगे। इसके बाद अगले महीने यानी जनवरी में उनकी झारखंड के हजारीबाग में रैली प्रस्तावित है। वे 21 जनवरी को हजारीबाग के रामगढ़ में दूसरी रैली कर सकते हैं। इसके अलावा यूपी के सुल्तानपुर और फूलपुर में भी अगले साल नीतीश की जनसभाएं हो सकती हैं।
जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने बातचीत में कहा कि बिहार में जातिगत जनगणना के बाद देशभर में नीतीश के समर्थन में माहौल बना है। राजनीतिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग भी अपने राज्यों में नीतीश कुमार को आमंत्रित कर रहे हैं। सीएम ने यूपी और झारखंड में रैली के लिए सहमति दी है। रैली की तारीख की घोषणा अभी नहीं हुई है।
यूपी से चुनाव लड़ेंगे नीतीश?
लंबे समय से नीतीश कुमार के उत्तर प्रदेश की किसी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने की अटकलें लगाई जा रही हैं। नीतीश की वाराणसी रैली का कार्यक्रम आने के बाद ये अटकलें और तेज हो गई हैं। प्रयागराज की फूलपुर लोकसभा सीट से नीतीश के चुनाव लड़ने की संभावनाएं ज्यादा हैं। हालांकि, अभी तक पार्टी की ओर से इस बारे में कुछ भी तय नहीं किया गया है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी मजबूत पैठ बनाने के लिए नीतीश कुमार ने अबकी बनारस से चुनावी बिगुल फूंकने का ऐलान किया है। माना जाता है कि बनारस के परमिट के बगैर न कोई धर्म चलता है, न सियासत में किसी की धाक जमती है। नीतीश भी सियासी जमीन तलाशने बनारस आ रहे हैं। 24 दिसंबर 2023 को बनारस के रोहनिया इलाके के जगतपुर डिग्री कॉलेज के प्रांगण में उनकी चुनावी रैली होगी। पूर्वांचल के युवाओं में इसलिए भी नीतीश कुमार का क्रेज ज्यादा है, क्योंकि उन्होंने हाल के दिनों में यूपी के हजारों नौजवानों को बिहार में नौकरियां दी है। बिहार में जातीय जनगणना और सियासत में पिछड़ों की भागीदारी बढ़ाने के लिए भी उन्होंने एक बड़ा संदेश भी दिया है। बनारस का सेवापुरी और रोहनिया विधानसभा क्षेत्र पटेल (पटेल) बहुल है। कैंट विधानसभा क्षेत्र में इस समुदाय का खासा बर्चस्व है। वोट बैंक के लिहाज से रोहनिया जदयू के लिए काफी अहम है।
पांच राज्यों में हुए हालिया चुनाव के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सभा के लिए तैयारियां शुरू हो गई हैं। वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निर्वाचन क्षेत्र है। साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बनारस सीट पर बड़ी जीत दर्ज की थी। उनके रणक्षेत्र में नीतीश के हुंकार भरने से सियासी हलकों में एक बड़ा संदेश गया है। नीतीश की रणनीति कई बातों को हवा दे रही है। उनकी रैली न सिर्फ कांग्रेस और सपा, बल्कि इंडिया गठबंधन के दूसरे दलों के लिए किसी अल्टीमेटम से कम नहीं है। बिहार में आरजेडी और जेडीयू का गठबंधन भी इसी शर्त पर हुआ था कि नीतीश के बाद तेजस्वी अगले मुख्यमंत्री होंगे। बिहार की सियासत में जब तक नीतीश है तब तक तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने की कोई उम्मीद नहीं है। आरजेडी चाहती है कि वह बिहार छोड़कर केंद्र की राजनीति में सक्रिय हों।
गुजरात मॉडल बनाम बिहार मॉडल
उत्तर प्रदेश में जदयू प्रभारी एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार से ‘न्यूजक्लिक’ ने बात की तो उन्होंने अपना एजेंडा साफ किया। उन्होंने कहा, "उत्तर प्रदेश में कहने को डबल इंजन की सरकार है और गुजरात मॉडल भी है, लेकिन युवाओं के पास न तो नौकरियां हैं और न ही उन्हें भविष्य की कोई डगर दिख रही है। गुजरात मॉडल सिर्फ छलावा है और जुमला है, जबकि बिहार मॉडल वंचितों, शोषितों और गरीबों की आर्थिक बदहाली को दूर करने का सफल फॉर्मूला है। बिहार सरकार ने पूर्वांचल के हजारों युवाओं को नौकरियां दी है। यह बिहार मॉडल का करिश्मा है। डबल इंजन वाली सरकार तो सिर्फ चंद पूंजीपतियों के हितों के लिए काम कर रही है। जो सरकार रोज़ी-रोज़गार नहीं दे सकती, वह किस मुंह से गुजरात मॉडल की बात करती है?"
इंडिया गठबंधन की मजबूती का दावा करते हुए श्रवण कुमार कहते हैं, "कांग्रेस भले ही तीन राज्यों में चुनाव हार गई है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह बीजेपी को पटखनी देने की स्थिति में नहीं है। एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान ऐसे राज्य हैं जो बिना देर किए बाजी पलट दिया करते हैं। तीनों राज्यों में कांग्रेस से चूक हुई, जिससे वह चुनाव हार गई। लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन में शामिल दल मिलकर बीजेपी को आसानी से हरा देंगे। देश को यूपी ही प्रधानमंत्री देता रहा रहा है। दस प्रधानमंत्री इसी राज्य से चुने गए हैं। चुनावी नजरिये से बनारस से चुनावी शंखनाद फूंका जाना जरूरी है, क्योंकि यहां से निकलने वाली आवाज पूरी दुनिया में आसानी से पहुंच जाती है। विपक्ष अबकी बनारस में ही मोदी को घेरेगा। इस मुहिम का नेतृत्व नीतीश करेंगे। इसी महीने चुनावी जंग की शुरुआत हो जाएगी।"
"अभी तक यह रैली इंडिया गठबंधन की तरफ से नहीं, बल्कि सिर्फ जेडीयू की तरफ से प्रस्तावित है। इस रैली के जरिये संगठन को मजबूत किया जाएगा। जदयू के कार्यकर्ता काफी दिनों से कई सीटों पर काम कर रहे हैं। 24 दिसंबर को नीतीश कुमार की रैली होगी। इस रैली में आजमगढ़, प्रतापगढ़, प्रयागराज, फूलपुर, अंबेडकर नगर, मिर्जापुर के कार्यकर्ता भी आएंगे। इसके बाद वह 21 जनवरी को झारखंड के हजारीबाग स्थित रामगढ़ में दूसरी चुनावी रैली करेंगे।"
जदयू के यूपी प्रभारी श्रवण कुमार कहते हैं, "हम बिहार का ऐसा मॉडल लेकर यूपी आए हैं जिसमें रोटी-कपड़ा और मकान ही नहीं, युवाओं को नौकरियों की गारंटी होगी। यूपी ने देश को दस प्रधानमंत्री दिए, लेकिन इस राज्य की एक बड़ी आबादी को आज तक साफ पानी नसीब नहीं हो सका है। बिहार जैसा काम किसी राज्य में नहीं हो रहा है। बीजेपी के एजेंडे में जाति-धर्म और पूंजीपति हैं। हमारा एजेंडा भाईचारा-प्रेम है। बीजेपी जब जब कर्नाटक में हारी तो पार्टी के लोग खामोश थे और तीन राज्यों में जीत गए हैं तो वो चहकने लगे हैं। इनकी खुशफहमी ज्यादा दिन रहने वाली नहीं हैं।"
नीतीश के लिए फूलपुर सबसे सेफ
"यूपी में फूलपुर इकलौती ऐसी सीट है जहां नीतीश कुमार के मैदान में उतरने पर मुकाबला एकतरफा हो सकता है। फूलपुर में करीब 20 लाख वोटर हैं, जिनमें सर्वाधिक पटेल और उसके बाद मुसलमान हैं। आबादी में तीसरे नंबर पर यादव हैं। फूलपुर का इतिहास रहा है कि पटेल वोटरों ने जिसका समर्थन कर दिया, उसके जीतने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इस सीट पर अब तक नौ मर्तबा पटेल समुदाय के ही सांसद चुने गए हैं। यादव और मुस्लिम मतदाता भी फूलपुर सीट का सांसद चुनने में अहम भूमिका निभाते हैं। अभी तक इन्हें समाजवादी पार्टी का परंपरागत मतदाता माना जाता रहा है। नीतीश के यूपी से चुनाव लड़ने के फैसले से सिर्फ पटेल ही नहीं, पिछड़े समुदाय का हर तबका काफी उत्साहित नजर आ रहा है।"
फूलपुर पूर्वांचल की हाट सीट रही है। इस संसदीय क्षेत्र से देश के दो प्रधानमंत्री संसद में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पिछड़ों की राजनीति करने वाले वीपी सिंह लोकसभा में फूलपुर क्षेत्र की नुमाइंदगी कर चुके हैं। समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया और बसपा के संस्थापक कांशीराम भी इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। जदयू इस सीट से नीतीश कुमार को चुनाव मैदान में उतारकर बगैर कुछ बोले, प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप संदेश दे देना चाहती है। हालांकि यूपी की कई ऐसी सीटें हैं जहां से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आसानी से चुनाव जीत सकते हैं। ऐसे में वह मिर्जापुर और फूलपुर ही नहीं, आंबेडकर नगर और प्रतापगढ़ सीट भी आसानी से झटक सकते हैं। इसी रणनीति के तहत जदयू ने पूर्वांचल में बनारस, मिर्जापुर, सोनभद्र, प्रतापगढ़, फूलपुर, जौनपुर, फतेहपुर, अंबेडकरनगर में रैली और जनसभाएं करने का निर्णय लिया है।
उत्तर प्रदेश में पटेल समुदाय की करीब छह फीसदी आबादी राज्य के 25 जिलों में चुनावी फिजा बदलती है। दर्जन भर सीटें ऐसी हैं जहां पटेल समुदाय के वोटर ही प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करते हैं। पूर्वांचल ही नहीं, बुंदेलखंड और अवध से लगायत रुहेलखंड तक राजनीतिक दलों का भविष्य पटेल समुदाय के लोग ही तय करते हैं। बसपा से निकलकर अपना दल की स्थापना करने वाले सोनेलाल पटेल ने मजबूती के साथ इस समुदाय को राजनीतिक ताकत दी थी। बाद में अनुप्रिया पटेल के हाथ में पार्टी की कमान आई तो उनकी अपनी बड़ी बहन पल्लवी पटेल और मां कृष्णा पटेल के बीच मतभेद पैदा हो गए। तब अनुप्रिया ने अपना दल (सोनेलाल) नाम से अलग पार्टी बना ली और उनकी मां, बड़ी बहन ने अपनी पार्टी का नाम अपना दल (कमेरावादी) रखा। अनुप्रिया की पार्टी फिलहाल सत्तारूढ़ दल बीजेपी के साथ है तो मां कृष्णा और बहन पल्लवी समाजवादी पार्टी के खेमे में हैं। पल्लवी फूलपुर से सपा विधायक हैं, जिन्होंने बीजेपी के कद्दावर नेता एवं उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को बुरी तरह पराजित किया था।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी को केंद्र की सत्ता से उतारने के लिए नीतीश कुमार ने एक पुख्ता रणनीति बनाई है। इसी रणनीति का हिस्सा है यूपी में नीतीश कुमार की पहली चुनावी रैली। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं। इस राज्य का पूर्वांचल ऐसा इलाका है जहां बीजेपी को आसानी से पटखनी दी जा सकती है। यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में सपा को इसी इलाके से सर्वाधिक सीटें मिली थीं। नीतीश ने एक तीर से कई निशाना साधने का मन बनाया है। वह बनारस की राजनीति को अंतरराष्ट्रीय छितिज पर ले जाना चाहते हैं। नीतीश के सहारे इंडिया गठबंधन भी उत्तर प्रदेश में बड़ा संदेश देने की कोशिश कर सकता है।