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भाजपा नेताओं की चाय-बैठकी, कहीं चाय के प्याले में तूफान तो नहीं!
भाजपा के कुछ बड़े नेताओं की चाय पर बैठकों ने मध्यप्रदेश की सत्तारूढ़ राजनीति में खलबली पैदा कर दी है।यूं तो सब इन बैठकों को सहज और सामान्य बता रहे हैं लेकिन माना जा रहा है कि जो कहा जा रहा है वह सच नही है।दिल्ली की बटलोई में कोई खिचड़ी पक रही है। यह खिचड़ी वक्त देख कर परोसी जाएगी।लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो यह मान रहा है कि यह सब चाय की प्याली में तूफान से ज्यादा नही है।
दरअसल यह सियासी खेल पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय की सक्रियता की बजह से शुरू हुआ है। बंगाल से फुरसत होने के बाद "इंदौरनरेश" सच में फुरसत में हैं।इस समय का इस्तेमाल वे मेलमिलाप में कर रहे हैं।कैलाश के इस मेल पर ही चौतरफा चर्चा चल पड़ी है।
दरअसल पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश भोपाल के दौरे पर आए थे।उन्होंने पार्टी के प्रदेश संगठन मंत्री सुहास भगत के अलाबा सभी संभागीय संगठन मंत्रियों से बात की थी।इस मुलाकात को सामान्य और सहज बताया गया था।कहा गया कि संगठन अपने स्तर पर फीडबैक लेता है।उसी के लिए शिवप्रकाश जी आये थे।
लेकिन चर्चा तब शुरू हुई जब कैलाश विजयवर्गीय और शिवप्रकाश की मुलाकात हुई। बाद में कैलाश भोपाल में भाजपा नेताओं से मिले।वे प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा से मिलने उनके घर गए।दोनों में चाय के प्याले पर लंबी चर्चा हुई। आपको याद होगा कि नरोत्तम मिश्रा ने कमलनाथ सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाई थी।वह मुख्यमंत्री की कुर्सी की दौड़ में भी थे।लेकिन शिवराज सिंह बाजी मार गए थे।
नरोत्तम के बाद कैलाश दिल्ली जाकर केंद्रीय मंत्री और दमोह के सांसद प्रहलाद पटेल से मिले।पटेल के घर पर हुई इस बैठकी पर भी लोगों की निगाहें गयीं।कुछ भौहें भी तनी। इसी बीच पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा भी भोपाल आए।वह भी नरोत्तम मिश्रा से उनके घर जाकर मिले।हालांकि मीडिया के सामने झा ने भी यही कहा कि नरोत्तम जी से उनकी मुलाकात सामान्य थी।
इन मुलाकातों के बीच प्रहलाद पटेल बुधवार को थोड़ी देर के लिए भोपाल आये।हालांकि उन्होने अपनी यात्रा को निजी यात्रा बताया लेकिन अटकलें तेज हुई।इस दौरान शिवराज मंत्रिमंडल के कुछ सदस्य भी आपस में मिले। आज प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा भी नरोत्तम से मिलने उनके घर पहुंच गए।कुल मिलाकर केंद्र में नरोत्तम ही हैं। ऐसे में इन सब मुलाकातों ने सियासी पारा थोड़ा बढ़ा दिया है।इस बार भोपाल में नौतपा कम तपा था इसलिए इस सियासी ताप पर सबकी नजरें गड़ी रहीं।
प्रदेश भाजपा के सूत्रों का कहना है कि यह सामान्य मेलमिलाप है।शिवप्रकाश जी सामान्य फीडबैक लेने आये थे।कैलाश विजयवर्गीय की मुलाकातों में भी कुछ असामान्य नही है।
लेकिन सियासी सूत्र यह कह रहे हैं कि सब कुछ ठीक नही है।पिछले 15 महीनों में जो कुछ हुआ है उससे दिल्ली खुश नही है।जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की बजह से भाजपा की सरकार बनी थी उनका भी अभी तक सही ढंग से "समायोजन" नही हो पाया है।कोरोना की बजह समस्याएं बढ़ी हैं वहीं दमोह की हार ने आग में घी का काम किया है। शिवराज सिंह हालात पर सही ढंग से काबू नही कर पा रहे हैं।नौकरशाही उन पर भारी पड़ रही है।या फिर वे नौकरशाही के जरिये ही अपनी सरकार चला रहे हैं।हालत यह है कि जिलों में कलेक्टर भाजपा नेताओं का फोन तक नही उठाते हैं।सार्वजनिक बैठकों में विधायकों का गुस्सा फूट रहा है।टीकमगढ़ में सरकारी बैठक में विधायक-सांसद संवाद चर्चा का विषय बना हुआ है।
राजनीतिक कारणों के अलाबा कोरोना से जुड़े भ्र्ष्टाचार के चलते भी भारी बदनामी हुई है।प्रदेश भर में दवाओं की कालाबाजारी और अस्पतालों की लूट ने सरकार की छवि पर बट्टा लगाया है।मुख्यमंत्री ने सख्त कदम तब उठाये जब लूट हो चुकी थी।लगभग हर मोर्चे पर सरकार निशाने पर है।
उधर चौतरफा हमला झेल रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी मध्यप्रदेश के हालात से खुश नही है।एक तथ्य यह भी है कि मध्यप्रदेश की सरकार मोदी और शाह की बजह से बनी है।इसमें शिवराज सिंह की भूमिका नगण्य रही है।शिवराज को तो महज संयोजन के लिये मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया था।चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद वे हर बात के लिए दिल्ली की ओर ही ताकते रहे हैं।
यही वे बजहें हैं जिनके चलते नेताओं की चाय बैठकी चर्चा में बनी हुई है।अटकलें बहुत हैं।साथ में तर्क भी हैं।उत्तराखंड में जिस तरह बदलाव हुआ उससे लोग उत्साहित भी हैं।
अब देखना यह है कि दिल्ली क्या करती है।कोई फैसला!या फिर वही ढीली रस्सी का खेल। कुछ भी हो इन दिनों "चाय" ने प्रदेश में खासी गर्मी ला दी है।
अरुण दीक्षित