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फालोअप और घर की सफाई के बिना कांग्रेस का भविष्य नहीं
शकील अख्तर
फालोअप एक ऐसी चीज है जो पूरा नक्शा पलट सकती है। मगर कांग्रेस में इन्दिरा जी के बाद से चीजों का फालोअप बंद हो गया था। मगर अब शायद प्रियंका उसे फिर शुरु कर रही हैं।प्रयागराज में सुजीत निषाद की और दूसरे नाविकों की नाव तोड़ी जाने और फिर प्रियंका के आने की खबर मिलने के बाद जिस तरह जिला प्रशासन ने उन तोड़ी गई नावों को तुरत फुरत ठीक कराया उसे देखकर तो यही लगता है कि प्रियंका का असर हो रहा है और इसलिए ज्यादा हो रहा है कि वे चीजों का फालोअप कर रही हैं।
प्रियंका गांधी मौनी अमावस्या पर संगम स्नान करने प्रयागराज गईं थीं। वहां जिस नाव पर बैठकर वे संगम गईं थी, उस नाव और अन्य नावों में बाद में तोड़फोड़ की गई। कहीं खबर नहीं आई। केवट सुजीत ने प्रियंका को यह खबर पहुंचाई। और प्रियंका ने 21 फरवरी को वहां वापस जाने का फिर कार्यक्रम बना डाला। इस खबर के मिलते ही प्रशासन ने आनन फानन में टूटी नावों की मरम्मत का काम शुरू करवा दिया। ताकि प्रियंका के पहुंचने से पहले नावें ठीक हो सकें।
यह प्रियंका का बड़ा इम्पेक्ट है। गंगा के किनारे बांसवार गांव जहां का सुजीत रहने वाला है प्रियंका से मिलने महिलाओं और निषाद, मछुआरे समुदाय के लोगों की भीड़ जमा थी। प्रियंका लगभग तीन किलोमीटर उड़ती धूल के बीच, कच्चे रास्तों पर पैदल चलकर उनसे मिलने पहुंची। महिलाओं ने कहा कि हमें विश्वास था कि दीदी आएंगी! यह नेता में भरोसे का प्रतीक है। कि अगर उन पर मुसीबत आई तो नेता सुनते ही फौरन मदद को दौड़ेगा!
इन्दिरा गांधी की यही खूबी थी। चाहे वे सत्ता में रहीं हों या सत्ता के बाहर आम लोगों की एक पुकार पर वे हमेशा उपलब्ध रहती थीं। बेलछी अपने आप में एक ऐतिहासिक मिसाल है कि कैसे वहां हुए नरसंहार की खबर सुनकर इन्दिरा जी वहां बारिश, कीचड़ में हाथी पर बैठकर पहुंची थीं। उसी घटना के बाद से उन्होंने वापसी की और 1980 में जबर्दस्त जीत हासिल की। इन्दिरा जी का जीवन ऐसी कहानियों से भरा पड़ा है। यह अलग बात है कि खुद कांग्रेसी उन बाजी पलट घटनाओं को याद नहीं करते और न ही जनता में उन्हें प्रचारित करते हैं। जनता में तो नेहरू, इन्दिरा और पूरे परिवार, मोतीलाल नेहरु तक के खिलाफ झूठे चरित्र हनन अभियान चलते रहते हैं, जिनका काउन्टर करने के बदले कांग्रेस के कुछ बड़े नेता तो इन्हें हवा भी देते रहते हैं। राहुल गांधी के खिलाफ तो आज भी इतना सुनियोजित चरित्र हनन अभियान चल रहा है और उसमें बड़े कांग्रेसी नेताओं की शिरकत कोई छुपा हुआ रहस्य नहीं है। ऐसे ही प्रियंका की सक्रियता और इम्पैक्ट बढ़ने के साथ उनके खिलाफ भी मुहिम शुरु हो गई है।
लेकिन लगता नहीं है कि प्रियंका इससे विचलित होगीं। जिसे वंशवाद या डीएनए कहा जाता है वह यही है कि मोतीलाल नेहरू, जिन्होंने अंग्रेजों एवं राजे रजवाड़ों की नाराजगी और उस समय की लाखों की वकालत छोड़कर गांधी का साथ पकड़ा था से लेकर आज राहुल, प्रियंका तक जब ठान लेते हैं तो फिर किसी की नहीं सुनते, न ही डरते। धारा के विपरीत जाकर ये लोग कैसे काम करते हैं इसका एक ही उदाहरण काफी है। अभी राहुल ने पुदुचेरी में एक लड़की के सवाल के जवाब में कहा कि उन्होंने अपने पिता के हत्यारों को माफ कर दिया है। उनके मन में कोई नफरत नहीं है।
नफरत के इस भयानक माहौल में ये क्षमा वीरस्य... बड़ी बात है। प्रियंका तो जेल में जाकर हत्यारों से मिल भी आईं और पहले ही उन्हें माफ भी कर चुकी हैं। खैर ये सब बातें सब को मालूम हैं, सिवा उन कांग्रेसी नेताओं के जो जीवन भर परिवार पर निर्भर रहे और आज उन्हें लगता है कि अब परिवार वापसी नहीं कर सकता है तो उस पर कीचड़ उछालने में लगे हैं।
राहुल और प्रियंका को भाजपा और सरकार से लड़ने से पहले इनसे निपटना होगा। घर का भेदी लंका ढाए! अगर इन लोगों ने अपने यहां सफाई नहीं की तो प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जिस दिन चाहेंगे कांग्रेस के दो या उससे ज्यादा टुकड़े करवा देंगे। और उसके बाद भाजपा को कांग्रेस की फिक्र करने की जरूरत ही नहीं होगी। राहुल और प्रियंका उनसे मुकाबला करने
के बदले अदालतों और चुनाव आयोग में पार्टी आफिस 24 अकबर रोड, चुनाव चिन्ह और बाकी कई मामलों में अदालतों के चक्कर ही काटते रह जाएंगे।
लेकिन पता नहीं राहुल और प्रियंका इन बातों समझ रहे हैं या कोई उन्हें बता रहा है या नहीं। मगर यह दीवार पर लिखा सच है कि जैसे विभिन्न राज्यों में कांग्रेस के विधायक तोड़े गए, कई बड़े नेताओं को कांग्रेस के अंदर ही रहकर बगावत भड़काने का काम दिया गया, उसी तरह पार्टी तोड़ने का काम सिर्फ सही समय की प्रतीक्षा है, कोई बड़ा काम नहीं। प्रधानमंत्री के आंसू सस्ते नहीं होते, वे ऐसे ही नहीं बहाए जाते!
तो बात हो रही थी फालोअप की। वह उन दो कामों में से एक था, जिसका न होना कांग्रेस को कमजोरी बन गया था। कार्यकर्ता अपनी जान लगा देता था, मगर बाद में उसे मालूम पड़ता था कि उसके साथ कोई नहीं खड़ा। भाजपा की सफलता का एक बड़ा कारण यह है कि उसने अपने कार्यकर्ता को कभी अकेला नहीं छोड़ा। पिछले छह सालों में तो हर कार्यकर्ता को एडजस्ट करने की कोशिश की गई। एक फर्क बताते हैं। कांग्रेस के किसी मजबूत कार्यकर्ता के एडजस्ट करने की बात होती थी तो नेता या मंत्री कहते थे, जगह कहां है? जबकि भाजपा या संघ के किसी कार्यकर्ता के रिश्तेदार को भी एडजस्ट करने की बात होती है तो कहा जाता है जगह बनाओ!
इन्दिरा गांधी इसी तरह अपने लोगों के लिए जगह बनाती थीं। मोदी और अमित शाह से पहले आडवाऩी जी और मदनलाल खुराना यह काम करते थे। बाद में तो यह हाल हो गया कि सोनिया गांधी को कहना पड़ता था कि आप लोग सोचते हैं मैं कह कर भूल जाऊंगी? उनकी ईमानदारी है कि वे कई बार कहती थीं कि कार्यकर्ताओ और जनता के बीच जाओ। उनकी सुनो, उनके काम करो। मगर समस्या यहीं थी कि कोई फालोअप नहीं था। यहां तक कि उनके लोकसभा क्षेत्र रायबरेली में भी वे जो कहकर आती थीं वह नहीं होता था।
एक और मजेदार उदाहरण याद आया। जिस मनरेगा को खुद उन्होंने शुरू किया था। उसके तहत एक तालाब खुदा हुआ उन्हें रायबरेली में दिखाया गया। सोनिया बहुत तीक्ष्ण बुद्धि की हैं। वे किनारे थोड़ा सा टहलीं। पूछा इतनी मिट्टी कहां गई? सुरक्षा व्यवस्था के तहत दूर कर दिए गए ग्रामीणों की तरफ इशारा करके उन्हें बुलाया। पूछा कब का तालाब है? गांव वालों ने एक सुर में जवाब दिया, पुरखों के टेम का! प्रियंका यह सब देखती थीं। इसीलिए फालोअप का महत्व समझीं।
एक और उदाहरण। लास्ट! राजीव गांधी जब अमेठी चुनाव लड़ने गए तब वहां की सारी मिट्टी ऊसर (बंजर) होती थी। एकदम अनउपजाऊ। राजीव ने सारी मिट्टी बदलवा डाली। कृषि वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौति थी। मिट्टी का रूप बदलना। और आज वहीं खेती लहलहा रही है। इस भूमि रूपांतरण की कितऩी प्रशंसा होना चाहिए? मगर कहीं जिक्र तक नहीं होता है। खुद कांग्रेसी नहीं करते।
और फालोअप के बाद वह दूसरा काम जिसके न होने से कांग्रेस कमजोर हो रही है, घर की सफाई से बचना। अभी लोकसभा चुनाव में तीन साल से ज्यादा का समय है। राहुल और प्रियंका सत्ता पक्ष से खूब लड़ रहे हैं। साहसी और सच बोलने वाले की छवि बन गई है। मगर घर में हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। इस उम्मीद में बैठे हैं कि वे खुद ही चले जाएंगे। मगर वे खाली हाथ जाने वाले नहीं हैं। अपने साथ पार्टी भी ले जाएंगे। ले चाहे जितनी कम जाएं। मगर मीडिया उन्हें ही असली पार्टी घोषित कर देगा। फिर राहुल और प्रियंका चुनाव आयोग और अदालतों में चक्कर काटते रहें!