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मोदी सरकार ने सहकारिता मंत्रालय नामक एक नया मंत्रालय शुरू किया और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को नए मंत्रालय का प्रभार दिया। सरकार का कहना है कि नया मंत्रालय बनाने के लक्ष्य " सहकार से समृद्धि" के विजन के तहत देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए एक अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढांचा प्रदान करना है। लेकिन, सहकारी समितियां सामान्य आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यक्तियों के स्वैच्छिक संगठन हैं, जिन्हें बनाने और संचालित करने का अधिकार राज्यों को है, यानी संविधान की सातवीं अनुसूची में, यह राज्य से संबंधित सूची में दिया गया है। तो फिर केंद्र सरकार ने ऐसा मंत्रालय क्यों बनाया और उस मंत्रालय को इतना राजनीतिक महत्व क्यों दिया जा रहा है कि अमित शाह को इसका मंत्री बना दिया गया। इस सम्बंद में केरल के पूर्व वित मंत्री डॉक्टर थोमस ऐसक लिखते है कि यह कोई संयोग नहीं है कि अमित शाह खुद देश के पहले केंद्रीय सहकारिता मंत्री बने। गुजरात के सहकारी बैंकों को कांग्रेस से भाजपा के अधिग्रहण के पीछे अमित शाह के दिमाग है. महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में श्वेत क्रांति से गुजरात में सहकारी क्षेत्र को बढ़ावा देने की पहल हुई थी। लेकिन अमूल ब्रांड को दुनिया के शीर्ष पर पहुंचाने वाले कुरियन को अमित शाह ने बाहर कर दिया था. उसके बाद गुजरात में सहकारी क्षेत्र भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण आधार बना हुआ है।
यह ध्यान दिया जाना ज़रूरी है कि कॉर्पोरेटों द्वारा राष्ट्रीयकृत बैंकों से लिए गए ऋणों की अदायगी न करने के कारण कई बैंक घाटे में आ गए थे। मोदी सरकार ने इन बैंकों का लाभकारी बैंकों में विलय कर अपने दोस्तों की मदद की थी। अब सहकारी क्षेत्र के ओर ध्यान दिया जा रहा है. भारत के कई राज्यों में, विशेषकर महाराष्ट्र, केरल जैसी विपक्षी सरकारों के राज्यों में सहकारी संस्थाओं का भारी कारोबार है। इन राज्यों की अर्थ व्यवस्था में इन संस्थाओं का बहुत बड़ा योगदान है। केरला ने हाल ही में अपने सहकारी बैंकों के विलय कर "केरला बैंक" के गठन किया था.
नया सहकारी मंत्रालय के गठन के आलोचना करते हुए सी.पी.एम. महासचिव सीताराम येचुरी ने बोला था कि यह राज्य सरकारों के संघीय अधिकारों का उल्लंघन करने का एक प्रयास है. येचुरी का बयान पोस्ट किया गया एक फेसबुक अकाउंट पर केरल के एक संघी ने टिप्पणी की "ईडी मॉडल पर नई एजेंसी … सहकारिता में काला धन खोजने का लक्ष्य ..". इससे बड़ा मजाक क्या हो सकता है ! नोटबंदी के पांच दिनों के भीतर अहमदाबाद के जिला सहकारी बैंक, जिसके निदेशक अमित शाह थे, में 745.59 करोड़ रुपये के प्रतिबंधित नोट जमा हो गया था और पुरे गुजरात के सहकारी बैंकों में 5 दिन के भीतर 3118.51 जमा हुए थे. यह जानकारी RTI के अंतर्गत कांग्रेस ने बाहर लाया था. अब, अमित शाह "सहकारिता मंत्र" के साथ विपक्षी राज्यों के बैंकों का काला धन खोजने जाएंगे!
इसमें कोई शक नहीं; केंद्र में सहकारिता मंत्रालय का गठन विपक्षी सरकारों को अस्थिर करने का एक सुनियोजित उपाय हो सकता है । लेकिन ई डी , सीबीआई आदि को लेकर अमित शाह का यह प्रयास केरल, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र समेत कई विपक्षी सरकार के राज्यों में इतना आसान नहीं होगा. सोने की तस्करी मामले में केरल के मुख्यमंत्री को अंदर करने केलिए दिल्ली से निकले ईडी आज केरल में न्यायिक जांच का सामना कर रही है.