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कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसानों का आंदोलन अब सरकार के गले की फांस बनता जा रहा है। किसान आंदोलन ने जिस तरह का रुख अख्तियार कर लिया है उसे देखते हुए अब भाजपा के लिए इससे होने वाले राजनैतिक नफे नुकसान का आकलन करना जरूरी होता जा रहा है।
इस मुद्दे के चलते उपजी आशंकाओं ने भाजपा नेतृत्व के समक्ष एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। अब सरकार तो सुलह के रास्ते तलाश रही हैं लेकिन किसानों के अड़ियल रुख को देखकर लगता नहीं कि समझौते की राह आसान होगी। दरअसल भाजपा किसी भी हालत में किसानों की नाराजगी से बचना चाहेगी, इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि भाजपा के लिए नाक का सवाल बन चुके पश्चिम बंगाल के चुनाव के अलावा इस वर्ष के मध्य तक दो अन्य राज्यों आंध्र प्रदेश व केरल में भी चुनाव होने हैं। यह बात दीगर है कि केरल व आंध्र प्रदेश में भाजपा के पास खोने के लिए कुछ खास नहीं है लेकिन पश्चिम बंगाल के चुनाव में वह हरगिज यह नहीं चाहेगी कि किसान आंदोलन की चिंगारी राज्य में पहली बार भगवा सरकार बनाने के उसके सपने को झुलसा दे।
आंकड़े बताते हैं कि तकरीबन 10 करोड़ की आबादी वाले पश्चिम बंगाल में 75 लाख से भी ज्यादा किसान परिवार हैं। काबिले गौर है कि इनमें से करीब 95% छोटे और मझोले किसान हैं और यही किसान राज्य के चुनावों मे निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर दिल्ली में जमे बैठे किसानों के सुर में बंगाल के किसानों ने सुर मिला दिया तो यह तय मानिए कि राज्य में अपनी सरकार बनाने की भाजपा की महत्वाकांक्षा को करारा झटका लग सकता है। भाजपा के रणनीतिकार निश्चित रूप से इस बड़े वोट बैंक की ओर टकटकी लगाए बैठे होंगे।
पिछले कुछ समय से पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए मुफीद माहौल बनने भी लगा था लेकिन दिल्ली में जारी किसान आंदोलन की आंच पश्चिम बंगाल तक पहुंचने की आशंका भाजपा को परेशान जरूर कर रही होगी। निश्चित रूप से सरकार यह कतई नहीं चाहेगी कि किसान आंदोलन भविष्य की उसकी राह का रोड़ा बने। शायद यही वजह है कि सरकार लगातार लचीला रुख अपना रही है। यह बात अलग है कि किसानों पर सरकार के प्रस्तावों का प्रभाव नहीं पड़ रहा है और हाल- फिलहाल विवाद सुलझता नजर नहीं आ रहा है।
नागरिकता कानून के विरोध ने भाजपा को शायद ज्यादा परेशान नहीं किया था क्योंकि यह मुद्दा उन से जुड़ा था जिसे भाजपा अपने वोट बैंक में शुमार नहीं करती है लेकिन जहां तक किसानों का सवाल है तो पिछले कुछ सालों में भाजपा की सफलता के पीछे किसानों का बड़ा योगदान रहा है। ऐसे में भाजपा यही चाहेगी कि किसी भी कीमत पर किसान उससे नाराज ना हो क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो पार्टी को इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।