राजनीति

पसमांदा मुसलमानों को साधने की कवायद में जुटे सत्ताधारी से लेकर विपक्ष।

Shiv Kumar Mishra
13 Feb 2024 12:54 PM GMT
पसमांदा मुसलमानों को साधने की कवायद में जुटे सत्ताधारी से लेकर विपक्ष।
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From the ruling party to the opposition, everyone is trying to woo Pasmanda Muslims.

जैसे-जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव का वक़्त करीब आ रहा है वैसे वैसे पसमांदा मुसलमानों की मांग या यूं कहे डिमांड बढ़ती ही जा रही है। जहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी पसमांदा मुसलमानों को अपना कोर वोट बनने की कोशिश में जुटी है, तो वहीं कांग्रेस पार्टी पसमांदा मुसलमानों को साधने के लिए एक विशेष अभियान "बुनकर जोड़ो सम्मेलन" का आयोजन करने जा रही है। जिसके तहत पार्टी का मकसद उत्तर प्रदेश समेत पूरे भारत में पसमांदा मुसलमानों खासकर बुनकरों से जन संवाद के ज़रिए 2024 के लोकसभा चुनाव में बड़ी संख्या में वोट हासिल करना है।

सबसे पहले जानते हैं कौन होते हैं पसमांदा मुसलमान और कितनी फीसदी है इन की कुल आबादी। पसमांदा जो शब्द है वह फारसी का शब्द है, जिसका मतलब होता है, वो लोग जो पीछे छूट गए हैं, दबे हुए या सताए हुए हैं.

दरअसल देश में मुसलमानों की कुल आबादी के 85 फीसदी हिस्से को पसमांदा कहा जाता है, यानि मुस्लिम समुदाय का वो तबका जो संख्या में सबसे ज़्यादा होने के बावजूद आज भी शोषित और वंचित है यानी आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक रूप से पीछे है।

ऐसे समुदाय को बैकवर्ड या दलित मुसलमान भी कहा जाता है। जैसा कि हमने बताया देश में 85 फ़ीसदी मुसलमान पसमांदा ही हैं, और बाकी के 15 फ़ीसदी मुसलमान स्वर्ण जाति के मुसलमान माने जाते हैं। देश में पसमांदा मुसलमान वक्त वक्त पर आंदोलन और आरक्षण की भी मांग भी करते रहे है।

अब जानते हैं पसमांदा मुसलमान में कौन कौन सी जातियां आती हैं।

(अंसारी), (मंसूरी), (राइन), (कुरैशी), (अल्वी), (सलमानी), (धोबी), (सैफी), (सिद्दीकी), (दर्जी) समेत और भी कई जातियां हैं. जो पसमांदा समुदाय में आती हैं। जिनको अजलाफ़ या अरजाल भी कहा जाता है। इनकी संख्या मुस्लिम समुदाय में 85 फ़ीसदी है

तो वहीं शेख़, सैयद, मुग़ल, पठान, मुस्लिम राजपूत, त्यागी मुस्लिम, चौधरी मुस्लिम, अंसारी (कश्मीर मूल के) आदि, जातियों को स्वर्ण जाति माना जाता है जिनको अशराफ भी कहा जाता है। इनकी संख्या 15 फ़ीसदी है।

पसमांदा मुसलमानों को लेकर राजनीतिक दलों पर उनके वोट इस्तेमाल करने यानि वोट बैंक की राजनीति करने के आरोप भी लगते रहे हैं, ज्यादातर पसमांदा मुसलमानों का कहना है की, लगभग सभी राजनीतिक दलों ने उनके वोट का इस्तेमाल किया है यानी सिर्फ वोट बैंक की राजनीति की है और आज तक उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाया है।

अब जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे वैसे पसमांदा मुसलमानों को लेकर राजनीतिक हलचल तेज़ होती जा रही है। अगर बात करें भारतीय जनता पार्टी की तो भारतीय जनता पार्टी की पसमांदा मुसलमानों से नज़दीकियां देखने को मिल रही है। हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने 360 से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था जिसमें 80 फ़ीसदी पसमांदा मुस्लिम समुदाय से आते हैं, वही दूसरी तरफ रामपुर के स्वार सीट पर हुए उपचुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने शफीक अंसारी को टिकट दिया था। शफीक अंसारी अच्छे खासे वोटों से जीत कर आए। और दिलचस्प बात यह है शफीक भी पसमांदा समुदाय से ही आते हैं। तो वहीं उत्तर प्रदेश सरकार में इकलौते मुस्लिम मंत्री दानिश अंसारी भी पसमांदा मुसलमान ही हैं।

पसमांदा मुसलमानों का अच्छा खासा वोट शेयर है यही वजह है की अब भारतीय जनता पार्टी का फोकस दलित, पिछड़ा और आदिवासी के बाद पसमांदा मुसलमानों पर है। जानकारों का मानना है उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव के पैटर्न पर 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी मुस्लिम पसमांदा कार्ड खेल सकती है। और भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता भी इन दिनों दावा कर रहे हैं कि मुस्लिम उनका कोर वोट बनने जा रहा है।

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुए एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पसमांदा मुसलमान का मुद्दा उठाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुसलमानों पर वोट बैंक की राजनीति करने को लेकर विपक्ष पर जमकर सवाल उठाए और आरोप लगाए। प्रधानमंत्री मोदी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCG) और तीन तलाक का भी ज़िक्र करते हुए मुस्लिम समाज की महिलाओं को हक़ दिलाने की बात कही। इससे साफ ज़ाहिर होता है भारतीय जनता पार्टी मुस्लिम समुदाय के एक बड़े वर्ग को अपनी और आकर्षित करने में जुट गई है।

तो वहीं अगर बात करें कांग्रेस पार्टी की तो कांग्रेस भी जी जान से पसमांदा मुसलमानों खासकर बुनकर समाज को साधने की पुरजोर कोशिश कर रही है जिसके तहत "बुनकर जोड़ो सम्मेलन" अभियान का आयोजन किया जा रहा है बुनकर समाज की समस्याओं को सुनने के लिए बकायदा सम्मेलन किए जायेंगे जिसमें पसमांदा मुसलमानों से संपर्क किया जाएगा और उनकी समस्या का समाधान करने पर ज़ोर दिया जाएगा। "बुनकर जोड़ो सम्मेलन" की शुरुआत 15 जुलाई से अवध और पूर्वांचल से होगी। आपको बता दें पसमांदा मुस्लिम समाज में बुनकरों की संख्या सबसे ज़्यादा है पसमांदा में बुनकर सब से ज़्यादा असर रखते हैं। यही कारण है की कांग्रेस पार्टी ने पहले बुनकरों को साधने की कवायद शुरू कर दी है।

आपको क्या लगता है क्या पसमांदा मुसलमानों को साधने में भारतीय जनता पार्टी कामयाब हो पाएगी, या कांग्रेस पार्टी पर फिर से पसमांदा मुसलमान भरोसा जताएंगे ? क्या होगा 2024 के चुनाव में पसमांदा मुसलमानों का रुख हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताइए।

लेख - अज़हान अंसारी

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