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सरकार ने सदन में बताया, 13 लाख महिलाएं हुई लापता, अकेले मध्यप्रदेश में 2 लाख!
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने आज बताया मध्यप्रदेश से, जिसके आधार पर ये कहना पड़ रहा है कि शिवराज के जंगल राज में मध्यप्रदेश दलितों और आदिवासियों के लिए अपराध का गढ़ बन चुका है और खास तौर से अगर दलित महिला या आदिवासी महिला है तो उसके लिए शिवराज जी का मध्यप्रदेश नरक बन चुका है।
आप सबने 12 साल की उस अबोध बच्ची के बारे में पढ़ा होगा, रुह कांपने वाला इंसिडेंट है। सरकार की कमी, पुलिस की निष्क्रियता के बारे में भी हम अभी चर्चा करेंगे, लेकिन मुझे लगता है कि सभ्य समाज में 12 साल की एक बच्ची खून से लथपथ महाकाल की नगरी में 8 किलोमीटर तक चलती रही और मदद मांग रही थी, न्याय नहीं मांग रही थी, अपने तन को ढकने के लिए वस्त्र मांग रही थी और इस सभ्य समाज ने उसको एक कपड़ा नहीं दिया। तो ये सभ्य नहीं, ये सड़ चुके समाज की निशानी है। ये पुलिस की निष्क्रियता की निशानी है, क्योंकि अब जो तथ्य सामने आ रहे हैं, वो परत दर परत पुलिस की निष्क्रियता की वजह से जो अपराध हुआ है, उसको खोलते जा रहे हैं। जो चुप्पी शिवराज सरकार की है, वो अब सब समझ में आने लगी है।
अभी थोड़ी देर पहले इंदौर के एक अस्पताल में मध्यप्रदेश के प्रभारी महासचिव, श्री रणदीप सिंह सुरजेवाला जी, इंदौर के हमारे विधायक, इंदौर के जिला कांग्रेस के अध्यक्ष और महिला कांग्रेस की नेत्रियां उस बच्ची से मिली। उसकी हालत गंभीर है, वो जबरदस्त शारीरिक और मानसिक यातना और पीड़ा से जूझ रही है। उसके गुप्तांग नष्ट हो चुके हैं, उसके ऑर्गन का रिकंस्ट्रक्शन करना पड़ रहा है और अब समझ में आ रहा है कि पिछले 4-5 दिन से ये षड्यंत्रकारी और रहस्यमयी चुप्पी प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की क्यों है। क्योंकि तथ्य ये सामने आ रहा है कि वो 12 साल की बच्ची सतना की रहने वाली है और एक दलित परिवार की बच्ची है, जिसको लीपापोती करके ये बताया जा रहा था कि वो उत्तर प्रदेश की है, भिखारी है और विक्षिप्त दिमाग की है। वो सतना की रहने वाली है, दलित परिवार की बच्ची है, सतना स्कूल गई थी, घर नहीं लौटी, उसके परिवारजनों ने सतना की पुलिस में जाकर एफआईआर कराने की कोशिश की और यहाँ से पुलिस की लापरवाही और पुलिस के अपराधी होने का स्वांग शुरु होता है।
सतना के पुलिस स्टेशन में बोल दिया गया कि आप यहाँ से जाइए, खुद ढूंढिए, हम एफआईआर अभी दर्ज नहीं करेंगे। 24 घंटे बर्बाद कर दिए गए, अगर सतना के पुलिस स्टेशन, बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन पर जाकर सीसीटीवी कैमरा चेक किया गया होता, तो शायद ये दुर्घटना, शायद यह दुष्कर्म, शायद यह पाप, शायद यह अन्याय टाला जा सकता था। सतना की पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की, 24 घंटे तक उनको घुमाते रहे, परिवार वाले बेचारे ढूंढते रहे। अंततोगत्वा 24 घंटे बाद एक एफआईआर दर्ज हुई। उसके बाद दो दिन तक अखबार में खबरें आती रही कि एक बच्ची के साथ ऐसा-ऐसा हो गया है, लेकिन सतना के पुलिस अधिकारियों ने, सतना के पुलिस महकमे ने ये जानने की कोशिश नहीं की, कि क्या ये वो बच्ची तो नहीं है, जो गुमशुदा है सतना से। ये जानने की कोशिश नहीं हुई।
आज सरकार से सवाल है - करीब 700 किलोमीटर की दूरी है सतना और उज्जैन में, 13 घंटे लगते हैं गाड़ी में सबसे अच्छे रुट से चलने में। ये बच्ची वहाँ कैसे आई? इसको अगवा किया गया, इसका अपहरण हुआ, 12 साल की बच्ची अपने आप नहीं आ सकती है। तो दो दिन तक अखबार में खबरें आती रही, इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई, सतना की पुलिस पूरी तरह से निष्क्रिय रही। उसके बाद शुरु होता है उज्जैन की पुलिस का पाप। उज्जैन की पुलिस ने क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रेकिंग नेटवर्क सिस्टम को ही अगर खंगाल लिया होता, तो 12 साल की बच्ची की गुमशुदा होने की खबर मिल जाती और पता चल जाता है कि ये बच्ची कौन है। उसकी तफ्तीश की जाती, उन्होंने ऐसा नहीं किया। वो 12 साल की बच्ची खून से लथपथ जब अंततोगत्वा उज्जैन की पुलिस के पास पहुंची, तो वो बदहाल जरुर थी, लेकिन उसने अपने पिता का, अपने दादा का, अपना और अपने गांव का नाम बताया और उसके बावजूद उज्जैन की पुलिस ने उसको यूपी का बता दिया, जबकि उसकी बोली बघेलखंड की थी। उसको यूपी का बताकर उसको भिखारी घोषित कर दिया गया, उसको विक्षिप्त दिमाग का घोषित कर दिया गया। वो बच्ची जो 8 किलोमीटर पैदल चलकर न्याय की गुहार लगाती रही, जिसने अपना नाम सही बताया, इस हालत में पिता का नाम बताया, दादा का नाम बताया, उसको दिमागी रुप से विक्षिप्त और भिखारी घोषित कर दिया गया, जबकि उस बच्ची ने स्कूल यूनिफॉर्म पहनी हुई थी। जिस बच्ची ने स्कूल यूनिफॉर्म पहनी हुई थी, उसको किस तरह से दिमागी रुप से विक्षिप्त घोषित किया गया, भिखारी घोषित किया गया, ये भी सवाल है?
अगर आप एफआईआर पढ़िए, तो बेकार की बातें उसमें लिखी हैं। उसके पिता और दादा का नाम एक करके छाप दिया गया। ये कह दिया गया कि वो मंदिर के पास घूम कर खाना मांग रही थी। बल्कि सच्चाई ये है कि जब वो पहुंची, उसी दिन उसके साथ दुष्कर्म हो गया था।
तो सवाल ये है कि शिवराज सिंह चौहान, नरोत्तम मिश्रा वहाँ के गृहमंत्री चुप क्यों हैं? इतने दिन बाद भी 5 दिन बीत गए, आज भी उस बच्ची की टोह लेने भाजपा का एक नेता नहीं गया है। एक बहुत बड़े नेता है, जिनका काम अब हाथ जोड़कर वोट मांगना है, हैलीकॉप्टर से रैली एड्रेस करना है, कैलाश विजयवर्गीय जी इस अस्पताल से 1 किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं, लेकिन उस बच्ची की टोह लेने, उस बच्ची की खबर लेने ना मुख्यमंत्री गए, ना गृहमंत्री गए और ना कैलाश विजयवर्गीय गए, जो लोकल हैं, जो पास में रहते हैं। ये बात करते हैं महिला सशक्तिकरण की। एक दलित बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ, उसकी लीपापोती करने की कोशिश की गई, उसको यूपी का बताने की कोशिश की गई, उसको भिखारी और विक्षिप्त बताने की कोशिश की गई, देश के प्रधानमंत्री के मुंह से एक शब्द नहीं निकला। बड़ा वंदन अपना करा रहे थे महिला आरक्षण बिल पास कराकर। देश के गृहमंत्री मौन हैं, एक महिला बाल विकास मंत्री हैं इस देश में, वो मुहूर्त और समय देखकर बोलती हैं सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी जी के खिलाफ आज चुप हैं। महिला आयोग चुप है, एनसीपीसीआर की चुप्पी बर्दाश्त नहीं हो रही है। ये बाल संरक्षण आयोग क्यों चुप बैठा हुआ है, ये सब लोग मौन हैं, ये सब लोग चुप हैं, लेकिन एक दलित बच्ची के साथ वो दुष्कर्म हुआ है, जो अमानवीय है, जिसको सोच कर आपकी हाड़ कांप जाएगी।
इन लोगों के पास बड़े-बड़े इश्तिहार लगाने का टाइम है, पैसा है, हैलीकॉप्टर से घूम-घूम कर, उड़न खटोले से घूम-घूम कर खूब रैली और भाषण बांचने का टाइम है। इनके पास कार्यकर्ता महाकुंभ करने का वक्त है, लेकिन इनके पास ये वक्त नहीं है कि उस अबोध बच्ची की टोह ली जा सके, उसके परिवार को सांत्वना दी जा सके। प्रशासन और पुलिस द्वारा उसके परिवार को वहाँ बुलाया जा सके। अंततोगत्वा अखबार में फोटो देखकर उसके दादा पुलिस में गए और उन्होंने कहा कि ये हमारी बच्ची है। क्यों छुपाया जा रहा है कि वो दलित परिवार की है, क्यों छुपाया जा रहा है कि वो सतना की है? क्यों छुपाया जा रहा है कि पुलिस की निष्क्रियता और पुलिस के चलते, पुलिस और प्रशासन का फैलियर है कि उस लड़की के साथ ये हुआ? अगर 24 घंटे पहले एफआईआर दर्ज हो जाती, अगर सीसीटीवी ट्रेक हो जाते, अगर वो बच्ची मिल जाती, तो उसके साथ ऐसी अमानवीय, ऐसी बर्बरता कतई ना होती।
ये चुनावी महोत्सव मना रहे हैं, क्या है चुनाव, क्यों होते हैं चुनाव? चुनाव होते हैं कि वो जनप्रतिनिधि चुने जाएं जो सत्ता में आकर आपके दुख, आपके दर्द, आपकी पीड़ा, आपकी वेदना की बात करें। जो उड़न खटोलों पर घूमकर भाषण ना दें और बड़े नेता ना बनें। जो उस बच्ची के लिए और उसके हक के लिए खड़े हों। चुनावी महोत्सव मना रहे हैं, ये बात करेंगे महिला सशक्तिकरण की। ये जो व्हाटाबाउटरी करते हैं रेप पर, इनसे बात करो इसकी, तो बताएंगे किसी कांग्रेस शासित राज्य का नाम। कहीं पर हुआ है ऐसा कि पुलिस की निष्क्रियता रही, पुलिस ने ना क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रेकिंग नेटवर्क सिस्टम देखा, ना सीसीटीवी कैमरा देखे, ना उसकी सही जगह की शिनाख्त की गई, उसको भिखारी और विक्षिप्त दिमाग का बता दिया गया, किसी और राज्य में हुआ है ये और मध्यप्रदेश में दलित, आदिवासी और महिला होना एक पाप हो चुका है।
ये मेरा आंकड़ा नहीं है, ये आंकड़ा इस सरकार ने सदन में दिया है। 13 लाख महिलाएं लापता हुई हैं पिछले कुछ सालों में, सबसे ज्यादा संख्या मध्यप्रदेश की है। 1 लाख 60 हजार 180 महिलाएं और 38 हजार से ज्यादा नाबालिग बच्चियां।
नाबालिग के साथ दुष्कर्म में नंबर वन अगर कोई स्टेट इस देश की है तो वो मध्यप्रदेश है और शिवराज जी का जंगल राज है। 18 सालों में उनकी सत्ता रही, ये अलग बात है कि ना उनको एक नीति याद है, ना उनका नाम याद आता है प्रधानमंत्री को। 18 साल सत्ता में 58 हजार रेप के मामले सामने आए, मतलब हर दिन मध्यप्रदेश में 8 बलात्कार होते हैं। 68 हजार अगवा होने के मामले सामने आए, मतलब 13 बच्चियां, 13 महिलाएं रोज, प्रतिदिन अगवा की जा रही हैं, उनका अपहरण हो रहा है, ये बात करेंगे महिला सशक्तिकरण की।
असलियत ये है कि चाहे आदिवासी के सिर पर पेशाब करने का मामला हो, जो भाजपा के नेता ने किया मध्यप्रदेश में। चाहे इस दलित बेटी के साथ ये मामला हो, चाहे आज सवेरे अभी इस दलित बेटी का मामला चल ही रहा है, इस पर लीपापोती शिवराज का जंगलराज कर ही रहा है, एक और मामला सामने आ जाता है एक आदिवासी महिला के रेप और हत्या का। ये असलियत है मध्य प्रदेश की। 18 साल से जो लोग बात महिला सशक्तिकरण की करते हैं, उनकी नाक के नीचे ये हो रहा है महिलाओं के साथ, बच्चियों के साथ, लेकिन देश के प्रधानमंत्री, देश के गृहमंत्री, देश की महिला बाल विकास मंत्री, देश का महिला आयोग, बाल संरक्षण आयोग सब मुंह में मौन और चुप्पी धरे बैठे हुए हैं। शिवराज सिंह चौहान उड़न खटोले से उड़-उड़ कर भाषण बांच रहे हैं, उनके पास वक्त नहीं है इस बच्ची की खैर खबर लेने का। कैलाश विजयवर्गीय माइक पर बता रहे हैं एक प्रतिशत चुनाव लड़ने का मन नहीं है, अरे मन नहीं है तो जाइए उस बच्ची से मिलिए। कहाँ से न्याय की उम्मीद की जाए, ये सवाल आज आप जैसे लोगों से मीडिया के माध्यम से पूछना बनता है। न्याय की उम्मीद, न्याय की गुहार कहाँ लगाई जाए? ये असलियत है