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प्रचंड बहुमत से लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को (आज) दोबारा शपथ लेंगे। चुनाव नतीजे आने के बाद हुई एनडीए की पहली संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'सबका साथ, सबका विकास' के अपने पुराने नारे में 'सबका विश्वास' जोड़ते हुए यह यक़ीन दिलाया था कि बीजेपी देश के 20 करोड़ अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने की पूरी कोशिश करेगी। इसके बाद से ही मुसलिम समाज के साथ-साथ देश और दुनिया भी इस बात के कयास लगा रही है कि मोदी मंत्रिमंडल में आख़िर कितने मुसलिम मंत्री होंगे। जिस समुदाय का विश्वास जीतने का दावा नरेंद्र मोदी कर रहे हैं, अपने मंत्रिमंडल में वह उस समाज से कितने लोगों को और क्या ज़िम्मेदारी देते हैं, यह देखने वाली बात होगी।
बता दें कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटें जीती हैं और इनमें से एक भी मुसलमान सांसद नहीं है। दरअसल, इस बार बीजेपी ने एक भी ऐसे मुसलिम उम्मीदवार को चुनाव मैदान में नहीं उतारा था जो जीत सके। यूं तो बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप और पश्चिम बंगाल में एक-एक मुसलिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारा था लेकिन जीतने लायक उम्मीदवार सैयद शाहनवाज हुसैन की सीट बीजेपी ने जेडीयू को दे दी थी। लिहाजा यह पहले से तय था कि पिछली बार की तरह इस बार भी लोकसभा में बीजेपी मुसलिम मुक्त ही रहेगी। हालाँकि राज्यसभा में बीजेपी के 2 मुसलिम सांसद हैं - मुख़्तार अब्बास नक़वी और एमजे अकबर, दोनों ही मोदी मंत्री परिषद का हिस्सा रह चुके हैं।एमजे अकबर मोदी सरकार में क़रीब दो साल तक विदेश राज्य मंत्री रहे। पिछले साल दुनिया भर में चले 'मीटू' अभियान के तहत कई महिला पत्रकारों ने उन पर यौन शोषण के आरोप लगाए तो उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। लिहाजा, इस बार उन्हें मंत्री बनाए जाने की उम्मीद ना के बराबर है। इस सूरत में मुख़्तार अब्बास नक़वी के ही मोदी मंत्रिमंडल में मुसलिम चेहरा होने की पूरी उम्मीद है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पिछली सरकार में क़रीब साल भर तक अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री रहने के बाद उसी मंत्रालय में क़रीब तीन साल कैबिनेट मंत्री रहे नक़वी को इस बार कौन सा मंत्रालय मिलता है।
मोदी मंत्रिमंडल में नक़वी को फिर से अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय पर ही संतोष करना पड़ेगा या किसी और मंत्रालय में अपनी कार्य क्षमता दिखाने का मौक़ा मिलेगा। या फिर अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के साथ किसी और मंत्रालय की जिम्मेदारी देकर उनका क़द बढ़ाया जाएगा।
महबूब अली कैसर बनेंगे मंत्री!
बीजेपी के सहयोगी दलों में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के टिकट पर बिहार की खगड़िया सीट से जीते महबूब अली कैसर के रूप में एक और मुसलिम सांसद हैं। पिछली बार भी वह एलजेपी के टिकट पर इसी सीट से जीते थे। पिछली बार भी उन्हें मंत्री बनाए जाने की चर्चा थी लेकिन एलजेपी के सांसदों की संख्या 10 से कम होने की वजह से मंत्रालयों के बंटवारे में पार्टी के हिस्से में एक ही मंत्री पद आया था और रामविलास पासवान मंत्री बने थे। हालाँकि बाद में महबूब अली कैसर को हज कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था। इस बार भी महबूब अली कैसर मंत्री बन पाएँगे, इसकी संभावना ना के बराबर है।
बिहार में ही बीजेपी की सहयोगी जनता दल यूनाइटेड ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिनमें से किशनगंज सीट पर उन्होंने मोहम्मद अशरफ़ के रूप में मुसलिम उम्मीदवार उतारा था लेकिन वह कांग्रेस के जावेद अख़्तर से चुनाव हार गए।
बीजेपी के नेतृत्व वाली पूर्व की केंद्र सरकारों में कम से कम 2 मुसलिम मंत्री रहे हैं। इस मामले में मोदी सरकार को अपवाद माना जा सकता है। बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले 5 साल के कार्यकाल में एक से लेकर तीन मुसलिम मंत्री रहे हैं।
2014 में जब पहली बार बीजेपी के नेतृत्व में मोदी सरकार बनी थी तब सिर्फ़ नजमा हेपतुल्ला को अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बनाया गया था। क़रीब साल भर बाद हुए मंत्रिमंडल विस्तार में मुख्तार अब्बास नक़वी को नज़मा हेपतुल्ला के मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया। सरकार के 2 साल पूरे होने के बाद जुलाई 2016 में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में एमजे अकबर को विदेश राज्य मंत्री बनाया गया। इस तरह मोदी मंत्रिमंडल में कुछ समय के लिए तीन मुसलिम मंत्री हो गए थे।
लेकिन कुछ ही दिन बाद नज़मा हेपतुल्ला को इस्तीफ़ा देना पड़ा क्योंकि उनकी उम्र 75 साल से ज़्यादा हो गई थी। बाद में उन्हें मणिपुर का राज्यपाल बनाया गया। इस तरह मोदी मंत्रिमंडल में अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल की तरह दो मुसलिम मंत्री रहे। लेकिन एमजे अकबर के इस्तीफ़ा देने के बाद से सरकार का कार्यकाल पूरा होने तक मुख़्तार अब्बास नक़वी के रूप में एक ही मुसलिम मंत्री मोदी मंत्रिमंडल का हिस्सा रहा। 1996 में बनी अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार में सिकंदर बख़्त अकेले मुसलिम मंत्री थे। वाजपेयी ने उन्हें शहरी विकास मंत्रालय दिया था। लेकिन सिकंदर बख़्त हाई प्रोफ़ाइल मंत्रालय चाहते थे तो वाजपेयी ने उन्हें विदेश मंत्री बना दिया था। उसके बाद 1998 में बनी वाजपेयी की दूसरी सरकार में सिकंदर बख़्त को उद्योग मंत्री बनाया गया था। इसके साथ ही सिकंदर बख़्त को राज्यसभा में सदन का नेता बनाया गया।
1999 में बनी वाजपेयी की अगली सरकार में भी सिकंदर बख़्त को यही ओहदा मिला। 2002 में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने तक वह इसी पद पर बने रहे। बाद में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया।
1998 में सिकंदर बख़्त के साथ ही मुख़्तार अब्बास नक़वी भी मंत्री बने थे। तब नक़वी उत्तर प्रदेश की रामपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस की बेगम नूर बानो को हराकर लोकसभा का चुनाव जीते थे। नक़वी पहले राज्य मंत्री बने थे और बाद में उन्हें सूचना और प्रसारण मंत्रालय में स्वतंत्र प्रभार वाला मंत्री बनाया गया था। 1999 में नक़वी लोकसभा का चुनाव हार गए थे। लिहाज़ा वाजपेयी की अगली सरकार में वह मंत्री नहीं बन पाए थे।
1999 में बीजेपी के टिकट पर शाहनवाज हुसैन लोकसभा का चुनाव जीते थे और वाजपेयी मंत्रिमंडल में वह सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री रहे। हुसैन कोयला और मानव संसाधन विकास मंत्रालय में बतौर राज्यमंत्री से लेकर उड्डयन मंत्री तक रहे।
वाजपेयी ने एनडीए का हिस्सा रहे नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला को विदेश राज्य मंत्री बनाकर सिकंदर बख़्त के बाद अपने मंत्रिमंडल में तीसरे मुसलिम मंत्री को जगह दी थी।
प्रचंड बहुमत से लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने का दावा करने वाले नरेंद्र मोदी के सामने यह एक बड़ी चुनौती है। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद देश के कई हिस्सों से मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा की ख़बरें आई हैं। इन सभी पर अभी तक नरेंद्र मोदी ने कुछ नहीं कहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी अपने मंत्रिमंडल में मुसलिमों को कितना प्रतिनिधित्व देते हैं।