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वामपंथियों के मकड़ जाल से कैसे बाहर निकलेगी कांग्रेस ?
कल एक बड़े न्यूज चैनल के पत्रकारों द्वारा कांग्रेस नेता राहुल गांधी की शान में कसीदे पढ़ते हुए ट्वीट देखकर वाकई आश्चर्य हुआ कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि कल तक "पप्पू" के नाम से प्रचारित करने वाले टीवी पत्रकार राहुल गांधी को एक महान नेता की संज्ञा देने लगे। इसके अलावा उक्त न्यूज चैनल के पत्रकारों द्वारा एक फेक न्यूज चलाने के बाद माफी मांगने का सिलसिला भी चल पड़ा।
दरअसल लोकतंत्र की जीवन रेखा विपक्ष से होकर गुजरती है और बिना विपक्ष के किसी लोकतंत्र की कल्पना ही बेकार है। भारतीय जनता पार्टी के केंद्र में सत्तासीन होने के बाद और फिर दोबारा मोदी सरकार बनने के बाद जिस तरह खुलेआम विभिन्न संस्थानों का दुरुपयोग करने का सिलसिला चल पड़ा उससे देश का संजीदा तबका चिंतित है कि आखिरकार ऐसी अघोषित एमरजेंसी से निपटने वाली आवाज कहां से निकलेगी। भारत सरकार के पूर्व सचिव रहे आईएस अधिकारी और लोग पार्टी के अध्यक्ष विजय शंकर पांडेय के बकौल भाजपा के पास बहुत बड़ा जनसमर्थन नहीं है। क्षेत्रीय दलों के नेता भ्रष्टाचार में धंसे हुए हैं जिन पर भाजपा की केंद्र सरकार ने इडी और सीबीआई का दबाव बनाकर खामौश रहने पर मजबूर कर दिया है इसलिए इन दलों से भी कोई उम्मीद बेमानी है, इस दशा में अगर कोई साफ सुथरी छवि वाला आदमी मैदान में आ जाता है तो भाजपा को हराना मुश्किल काम नहीं है। विजय शंकर पांडेय की इस बात से इतना तो समझ में आता है कि भाजपा जिस प्रकार सरकार चला रही है और राजनीति कर रही है इससे लड़ना अब किसी भी ऐसे राजनीतिक दल जिसके नेता भ्रष्टाचार में लिप्त हों के लिए संभव नहीं है।
इन परिस्थितियों में सबकी निगाहें देश के सबसे बड़े दल कांग्रेस की ओर स्वत: ही पहुंच जाती हैं। इसके पीछे भी कुछ ठोस कारण हैं। देश में फिलहाल जिस तरह की धार्मिक राजनीति हावी होती जा रही है जिसके लिए सत्तासीन भाजपा कोशिशें करती रहती है और धर्मनिरपेक्ष राजनीति की कल्पना कमजोर होती जा रही है कांग्रेस से यह उम्मीद लोगों को बनी रहती है कि वही एक मजबूत विपक्ष दे सकती है तथा देश के धर्मनिरपेक्ष रूप को बिगड़ने से बचा सकती है। लेकिन खुद कांग्रेस को भी अपने अंदर भारी सुधार की आवश्यकता है। सांगठिनक तौर पर भी और वैचारिक तौर पर भी परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।
गृहमंत्री अमित शाह अक्सर कहते हैं कि अगले 40-50 साल तक भाजपा का दौर रहेगा, इस बात के पीछे के कारण क्या हैं यह कांग्रेस को खुद ढूंढने चाहिए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता की अलमबरदार रही है लेकिन संगठन में सदा संघ के लोगों का भी दखल रहा है। कांग्रेस की सिकुलर विचारधारा को कभी शुद्ध सिकुलर विचारधारा बनने से यही संघ लॉबी रोकती रही। कांग्रेस कभी सिकुलर कभी नरम हिंदुत्व विचारधारा के बीच हिचकौले खाती रही और यह तय नहीं कर पाई कि आखिर उसका सही रास्ता क्या है। भाजपा जो हिंदुत्व के पेटेंट पर कब्जा जमा चुकी है उससे लड़ने के लिए कांग्रेस के संघ से प्रभावित नेता डरा डरा कर कांग्रेस को नरम हिंदुत्व की ओर धकेलते रहे जिससे पार्टी का सिकुलर वोटर तथा अल्पसंख्यक बहुत दूर होते जा रहे हैं। कुछ महीनों पहले राहुल गांधी ने कांग्रेस को संघी लोगों से मुक्त करने की घोषणा की थी इसका मतलब उन्हें यह एहसास देर से ही सही लेकिन हो गया कि इन लोगों से पीछा छुड़ाना अतिआवश्यक है।
कांग्रेस इससे पहले संघ से खुद को आजाद कर पाती अब उसे वामपंथियों की भीड़ ने अपने मकड़जाल में जकड़ लिया है। देश की राजनीति में एक दौर में वामपंथियों का भी अच्छा प्रभाव रहा है लेकिन समय के साथ साथ कमजोर पड़ती वामपंथी राजनीति ने इनके कार्यकर्ताओं को इधर उधर दूसरे दलों में जाने पर मजबूर कर दिया है। ये लोग अपने नारों के साथ कांग्रेस में भी शामिल हुए और कांग्रेस में अहम जिम्मेदारी भी हासिल कर गए हैं। अपने पुराने नारों, व्यवस्था से बगावती तेवरों के साथ कांग्रेस को भी एक एक्टिविस्ट आंदोलन में बदल देना चाहते हैं जिसका असर पड़ रहा है कांग्रेस से जुड़े पुराने कांग्रेसियों पर। देश की अधिकांश् जनता को वामपंथियों पर बहुत ज्यादा विश्वास नही रहा। इसकी वजय भी यह रही कि वामपंथी सियासत देश में बहुत ज्यादा कुछ अच्छा नहीं कर सकी। पश्चिमी बंगाल में लंबा शासन करने के बावजूद वह ऐसी छवि नहीं दे पाए कि वामपंथी एक अच्छी सरकार दे सकते हैं। वामपंथियों के लिए यह भी कहा जाता है कि वह टिकाऊ राजनीति नहीं करते और बहुत जल्दी पाला बदलते रहते हैं। कुछ पुराने कांग्रेसियों का मानना है क राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को इन सब चीजों पर गंभीरता से गौर करना चाहिए।
कांग्रेस को भाजपा से लड़ने के लिए धर्मनिरपेक्ष राजनीति की जरूरत है ना कि धार्मिक विरोधी राजनीति की। वामपंथी अक्सर धर्म को कोसने के लिए पहचाने जाते हैं जिससे भी देश की अधिकांश धार्मिक जनता संतुष्ट नहीं हो पाती। लोगों को कांग्रेस की पुरानी गैर संघी और गैर वामपंथी और शुद्ध धर्मनिरपेक्ष राजनीति का इंतजार है। जरूरत है कि कांग्रेस इस मकड़जाल से जितनी जल्दी हो बाहर निकल आए नहीं तो अमित शाह का कथन जरूर सत्य साबित होकर रहेगा।