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1 से 3 मार्च तक भारत ने जो देखा वह एक धनकुबेर द्वारा अपने वैभव का अश्लील मुजाहिरा ही नहीं था बल्कि अपनी सम्पन्नता की विपुलता का सहारा लेकर देश की सभ्यता और उसमे बसी मनुष्यता के प्रति हिकारत का सार्वजनिक प्रदर्शन भी था । इसी के साथ उद्दंडता के साथ भारत को अंगूठा दिखाने की ढिठाई भी थी । गुजरात के जामनगर में उसके अपने निजी और कथित रूप से दुनिया के सबसे बड़े चिड़ियाघर में हुए एक आलीशान समारोह के जरिये उसने तीन दिन तक पूरे देश को ही एक जन्तु-ग्रह में बदलने की कोशिश की है । भारत के सबसे रईस और 118 अरब डॉलर (97 ख़राब 78 अरब रूपये) की मिलकियत वाले दुनिया के नौंवे नम्बर के धनिक मुकेश अम्बानी के छोटे बेटे के शादी पूर्व समारोह में जो हुआ वह जुगुप्सा जगाने वाला था ।
ध्यान रहे अभी यह शादी या विवाह नहीं था ; भारत के हिन्दू रीति रिवाजों में की जाने वाली सगाई, मंगनी, गोद भराई जैसा भी कोई आयोजन नहीं था । यह बाजार द्वारा पैदा की गयी, अमीरों के बीच इन दिनों खूब प्रचलित नई ही तरह की चीज, प्री-वेडिंग सेरेमनी थी । इस तमाशे में न्यौते गए कुल एक हजार लोगों में माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स, फेसबुक वाले मार्क जुकरबर्ग , क़तर के प्रधानमंत्री, अमरीकी पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प की बेटी इवांका से लेकर खेल और फिल्म जगत की सभी नामचीन शख्सियतें थीं । होने को तो दुनिया के सबसे मकबूल और रईसों की शादियों में नाचने के लिए मशहूर माने जाने वाले शाहरुख खान भी थे और इतिहास में पहली बार तीनों खान एक साथ थिरके भी थे । सदी के कथित महानायक बच्चन तो अम्बानी की बेटी की शादी में बारातियों के लिए खाना तक परोस चुके थे, इसलिये पूरे खानदान के साथ उनका होना लाजिमी था । मगर हा भारत दुर्दशा देखी न जाई की तर्ज पर सबसे ज्यादा चर्चित हुआ नामी पॉप स्टार रिहाना का आना ; 74 करोड़ रुपयों की फीस देकर बुलाई जाने वाली यह गायिका वे ही हैं जिन्होंने किसान आन्दोलन के समय किसानो पर ज़ुल्म अत्याचार की एक खबर को ट्वीट करते हुए दुनिया से पूछा था कि "हम लोग इसके बारे में कोई बात क्यों नहीं करते" और इसके लिए खालिस्तानी समर्थक और भारत द्रोही सहित न जाने कितनी कितनी गालियाँ खाई थीं !! विडम्बना यह थी कि रिहाना तो सबसे बड़ी वाली वी आई पी मेहमान बन महफ़िल लूट रही थीं और जिस बेचारी कंगना रनौत ने उनके खिलाफ देशभक्ति का झंडा लहराया था और उन्हें मूर्खा, भारत विरोधी और खालिस्तानी कहा था, उसे इस दावत में न्यौता तक नही दिया गया था । ढाई हजार व्यंजनों को चखना तो दूर वे उनकी खुशबू तक से महरूम रहीं ।
बहरहाल पिक्चर अभी बाकी है - शादी होना अभी शेष है, सुनते हैं कि जुलाई में कभी होनी है । बड़े वाले सेठ के इस छोटे से आयोजन पर कुल 1260 करोड़ रुपया फूंकने की खबर मोटा भाई के मीडिया ने दी है - यह रकम स्वयं मुकेश अम्बानी के अपने बच्चों की शादियों में किये जाने वाले खर्च के हिसाब से भी काफी अधिक है । बेटी ईशा की शादी जो उनके 90 करोड़ के लहंगे के लिए प्रसिद्द हुयी थी, में कोई 700 करोड़ और बड़े बेटे की शादी में इससे थोड़ा अधिक खर्च किया गया था - इस शादी के पहले के फंक्शन में ही इन दोनों शादियों के लगभग बराबर फूंक दिया गया है । आगाज़ अगर ऐसा है तो अंजाम न जाने कैसा होने वाला है !!
ये पैसा किसका पैसा है ? शुरुआत मौकाए वारदात से ही करते हैं । जामनगर के जिस चिड़ियाघर में यह शाही तामझाम हो रहा था उसका खर्च अम्बानी के उद्योग समूहों द्वारा सीएसआर के जरिये मिले पैसे से होता है । सी एस आर - कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी - कारपोरेट कंपनियों द्वारा सामाजिक दायित्व निबाहने के लिए किये जाने वाले खर्च को कहते हैं । भारत में इसे कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के तहत प्रावधान बनाकर अनिवार्य कर दिया गया है। कानून के अनुसार, एक कंपनी को जिसका सालाना नेटवर्थ 500 करोड़ रुपए या उसकी सालाना इनकम 1000 करोड़ रुपए या उनका वार्षिक प्रॉफिट 5 करोड़ का हो तो उनको सामाजिक विकास के दायित्व के लिए खर्च करना जरूरी होता है। यह खर्च उनके 3 साल के औसत मुनाफे का कम से कम दो प्रतिशत तो होना ही चाहिये, अन्यथा उनके खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है । यह राशि उद्योगों के आसपास बसे गाँव – टोलों के विकास, उनके स्कूल, सड़कें, अस्पताल, सामुदायिक भवन आदि सार्वजनिक निर्माण के कामों में खर्च की जाती है ; मुकेश अम्बानी की कम्पनियां इससे उनके बेटे का चिड़ियाघर चला रही हैं । बाकी पैसा भी वह पैसा है जो 2014-24 के स्वर्णिम काल में तेल की कीमतों में आग लगाके, टेलिकॉम के आकाश में जाल बिछाके और मोदी की पीठ पर हाथ फिराके, सारे कानूनों की वाट लगाके कमाया गया है ।
यह चिड़ियाघर भी इसी तरह का नमूना है । भारत में प्रचलित क़ानून वन्य पशुओं को इस तरह रखे जाने की अनुमति नहीं देते । वन्य जीव कानूनों के अनुसार तो किसी संरक्षित पक्षी को खाना खिलाना भी अपराध है, इनमे वे मोर भी आते हैं जिन्हें दाना चुगाते हुए मोदी फिलिम बनवाते हैं और अक्षय कुमार को आम चूसकर खाते हैं या काटकर वाला इंटरव्यू भी देते हैं । अभी एक साल पहले इसी मार्च के महीने में अमेठी के मोहम्मद आरिफ से उनके सारस को अलग कर दिया गया था, जबकि उसे तो किसी पिंजड़े या घर में बंद करके भी नहीं रखा गया था । मगर अनन्त समरथ मुकेश अम्बानी के बेटे हैं, खुद गुसाईं जी कह गए हैं कि ऐसों का कोई दोष नहीं होता । देश के क़ानून उनकी चौखट पर पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं । अपने 3000 एकड़ के इस निजी जू वन्तारा में उन्होंने 200 हाथी, मगरमच्छ, गैंडे सहित कोई 43 प्रजातियों के 2000 से ज्यादा वन्य जीव रख छोड़े हैं । खुद उनके दावे अनुसार इनमे 7 ऐसी प्रजातियों के प्राणी भी शामिल हैं जो अब तकरीबन लुप्तप्रायः हैं । इनके अलावा देश भर के जंगलों, चिड़ियाघरों, अभयारण्यों से जानवरों को लाकर खुद वहां की राज्य सरकारें और उनके वन विभाग जामनगर के वन्तारा में छोड़कर, पहुंचाकर जाते है । किस क़ानून के तहत ? यह किसी को नहीं पता । हाथी की खिचड़ी, हाथी के लड्डू, हाथी के लिए जूस को दिखाते और इस पुण्याई के लिए छोटू अम्बानी को राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत किये जाने की मांग करते हुए मीडिया ने जो लीद इस एक सप्ताह में फैलाई है, उससे सारा देश इस कारनामे का आँखों देखा गवाह बन चुका है - लिहाजा और ज्यादा विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है । मोदी हैं तो अम्बानी अडानी के लिए कुछ भी मुमकिन है - जामनगर के एयरपोर्ट पर देश दुनिया के 350 हवाई जहाज उड़ उतर सकें इसके लिए 10 दिन के लिए उसे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का दर्जा देना तो मामूली बात थी ।
बहरहाल घटनाएं सिर्फ घटित हो चुकी क्रियाएं नहीं होतीं ; हर घटना कुछ कहती है, कुछ बताती है. उसके गर्भ में जो छुपा है उसे दिखाती है । हर घटना एक पूरे घटनाविकास के प्रवाह का हिस्सा, उसकी आवृत्ति और किसी विशिष्ट रुझान की प्रकृति की उस समय विशेष में अभिव्यक्ति होती हैं । मार्च के ये तीन दिन भी इसी तरह से देखने पर मौजूदा वर्तमान के आगामी भविष्य में विकसित होने की, फिसलन के उतार में पहुँचने की जो दिशा दिख रही है इन्हें दर्ज किये जाने की जरूरत है । जैसे इस महंगे और अश्लीलता की हद तक भव्य और विराट समारोह ने भारतीय स्वभाव और विशिष्टता वाले पूंजीवाद के किंचित भिन्न चरित्र को एक बार फिर उजागर कर दिया है । भारत में पूंजीवाद सामंतवाद के साथ गलबहियां और साझेदारी करके आया है । सामन्तवाद सिर्फ एक ख़ास किस्म की आर्थिक प्रणाली ही नहीं होता, वह एक विशेष प्रकार की जीवन शैली , सामाजिक सोच और रिश्तों में भी नुमायाँ होता है । राजशाही तामझाम और फूहड़ दिखावा इसकी पहचान होती है । दुनिया में जहां जहां विकसित पूँजीवाद है वहां के बड़े बड़े पूँजी घराने भी इस तरह के अनुत्पादक अपव्ययों से दूर रहते हैं । अनेक पूंजीपतियों के निजी जीवन में आवागमन के लिए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के उदाहरण भी मिलते हैं । मगर भारत के धनकुबेरों की अदा ही निराली है - यह टिपिकल सामन्ती सोच से चलती है और सिर्फ जम्बूद्वीप में ही नहीं बाहर बसे भारतीय मूल के स्टील मित्तलों और जिन्दलों के शादी विवाहों में भी पाई जाती है । इसी का दूसरा पहलू 2014 में प्रधानमंत्री बनकर अपने घर ढोक देने आये नरेंद्र मोदी की पीठ पर अभिभावक की तरह हाथ रखकर खिंचाई गयी मुकेश अंबानी की तस्वीर में दर्ज हुआ था । इस तरह का सामन्ती पूँजीवाद आम प्रकृति वाले पूंजीवाद की तुलना में ज्यादा खतरनाक होता है क्योंकि वह स्वभाव से ही उस लोकतंत्र के निषेध का पक्का पक्षधर होता है जिसे लाने का दावा उसने किया था । हाल के दौर में भारत के कार्पोरेट्स और मध्ययुगीन जकड़न वाले हिंदुत्व का गठजोड़ इसका तार्किक परिणाम है । इसका उद्देश्य क्या है यह बताने की जरूरत नहीं ।
इस तरह का पूंजीवाद भयानक अकाल के समय अपने महल के सामने प्रदर्शन करने आये किसानों से "रोटी नहीं है तो केक खाओ" की सलाह देने वाली फ्रांस के राजा लुई सोलहवें की पत्नी रानी मैरी एंटोनेट की तरह ढीठ और निर्लज्ज भी होता है । मैरी एंटोनेट ने जो शब्दों में कहा था मुकेश अम्बानी ने उसे तीन दिन में दिखाकर बताया है । जामनगर में जब ढाई हजार पकवानों के ऐश्वर्य का गिद्द्भोज किया जा रहा था तब उन पकवानों का अनाज पैदा करने वाले किसान ड्रोन से आंसू गैस के गोले, बंदूकों से बरसती गोलियों के बीच देश की राजधानी के बाहर बैठे थे और अपनी त्रासदी को बयान करने के लिए 14 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में पहुँचने की तैयारियों में जुटे थे । जब 350 आधुनिक और सुसज्जित विमानों का बेड़ा देश दुनिया के रईसों को ढो ढो कर इस जश्न में पहुँचाने में जुटा था ठीक उसी समय दुनिया बता रही थी कि भूख के सूचकांक में भारत 125 देशों में पिछले बरस की तुलना में और नीचे घिसटकर 111वें स्थान की खतरनाक नीचाई तक आ खिसका है । बेशर्मी के साथ इस भूख सूचकांक का खंडन करने वाली उसी देश की सरकार के 11 साल बाद जारी आंकड़े तक बता रहे थे कि इस बीच तीन चौथाई हिन्दुस्तानियों की थाली पहले की तुलना में और ज्यादा सिकुड़ गयी है, कि उस पर परोसा जाने वाला दाल भात कम हुआ है, रोटियाँ घट गयी हैं । उन आंकड़ों के हिसाब से एक औसत हिन्दुस्तानी अपना जीवन यापन करने के लिए जितना खर्च करता है उससे 29,30,23,255 गुना ज्यादा 1260 करोड़ रुपया एक धनकुबेर अपने छोटे बेटे की शादी के एक "छोटे से आयोजन" में खर्च कर रहा था ।
यह उस देश में हो रहा था जिसमे समारोहों में फिजूलखर्ची रीकने के लिए साठ के दशक का अतिथि नियंत्रण क़ानून आज भी अस्तित्व में है - जो एक संख्या से ज्यादा लोगों की दावतों पर भी अंकुश लगाता है । जिस देश की संसद में अब तक 11 बार इस तरह के क़ानून बनाने के लिए निजी विधेयक लाये जा चुके हैं । जिसके पड़ोसी देश ने बाकायदा वन डिश - एक पकवान - का क़ानून पिछले दशक में ही बनाया है । इसके बाद भी यह सब होना सिर्फ घटना नहीं है एक प्रवृत्ति है ।
जामनगर का तमाशा मोदी युग के कैंसर जैसे असंतुलित - मैलिग्नेंट - विकास की निरंतरता और उसकी अभिव्यक्ति दोनों है । इस विकास की पहचान असलियत पर पर्दा डालने की है ; अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के सपत्नीक दौरे के समय अहमदाबाद की सडकों के दोनों तरफ कपड़ों के परदे लगाकर इसे शुरू किया गया था और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और जापान के प्रधानमंत्री शिम्बो आबे के आगमन पर अहमदाबाद से साबरमती तक सारे रास्ते को पर्दानशीं बनाकर इसे आजमाया गया था । यही छुपाछुपी जी-20 के तमाशे के समय मुम्बई में दोहराई गयी । इसी जामनगर में भारत के राष्ट्रपति के दौरे के समय भी सच्चाई से आँख मूँद लेने का शुतुरमुर्गी कारनामा दिखाया गया । इन भव्यताओं की चमकार में दरिद्रताओं, विपन्नताओं में बजबजाती विराट से विराटतम होती आबादी को न सिर्फ अनदेखा करने की कोशिश की जाती है बल्कि तामझामी रेलवे स्टेशन, चमचमाते हवाई अड्डे, जगमगाती शाहराहों की चकाचौंध में तीन चौथाई भारतीयों के हिस्से में आयी घोर कालिमा को भुलावे में डालने की भी जुगत ढूंढी जाती है । बेगानी शादी में अब्दुल्ला को दीवाना बनाने का हर संभव असंभव प्रयास किया जाता है ।
साठ के दशक के एक बड़े उद्योगपति कनोडिया ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि इस देश में पूंजीपतियों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता । उन्हें गरीबों का खून चूसकर मोटा होने वाला, नेताओं और अफसरों के साथ सांठगाँठ कर गलत तरीके से कमाई करने वाला माना जाता है । कनोडिया ने माना था कि यह धारणा बहुत ज्यादा गलत भी नहीं है - ऐसा होता भी है । मोदी राज में हुए कई उलटफेरों, शब्दों के अर्थ उलटने के चमत्कारों में से एक यह भी है कि उसने पूंजीपतियों को मानप्रतिष्ठा देने में, उनकी प्राण प्रतिष्ठा करने में अपनी पूरी शक्ति झोक दी है । यह सिर्फ तू मेरा चाँद मैं तेरी चांदनी की जुगलबंदी नहीं है, यह मोदी की भाजपा और पेशवाशाही की कायमी को अपना लक्ष्य तथा अपने वार्षिक समारोहों की अध्यक्षता करने के लिए ज्यादातर पूंजीपतियों को मुख्य अतिथि बनाने वाले, उनके मात-पिता संगठन - आर एस एस - की विचारधारा की संगति में है ।
टुकड़खोर मीडिया ने इस भौंडे तमाशे में विदेशी मेहमानों की तस्वीरों के साथ "अम्बानी ने गोरों को शेरवानी और मैमों को साड़ी पहनने के लिए मजबूर कर दिया" जैसे जुमले चिपकाकर परिधानी राष्ट्रवाद का तडका लगाने की चतुराई दिखाई है - मगर वे भूल रहे हैं कि देश की जनता उतनी भोली नहीं है । राजा के सबसे अनूठे और कीमती वस्त्र धारण करने की असलियत वह जान चुकी है , उसके निर्वस्त्र नंगत्व को पहचान चुकी है ।
बादल सरोज सम्पादक लोकजतन, संयुक्त सचिव अखिल भारतीय किसानसभा