- होम
- राष्ट्रीय+
- वीडियो
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- Shopping
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- आजीविका
- विविध+
भारतीय मीडिया के "सूत्रों" ने दी खबर कि 200 से 600 आतंकी मारे, लेकिन इन सूत्रों ने खड़े कर दिए सवाल!
भारतीय वासु सेना के प्रमुख बीएस धनोआ ने कहा है कि हम हमले में मरने वालों की गिनती नहीं करते, सरकार करती है। इसके बावजूद, 26 फरवरी 2019 (मंगलवार) को तड़के पाकिस्तान के बालाकोट में हुए भारतीय वायु सेना के हमले में 200 से लेकर 600 लोगों के मारे जाने की खबर भारतीय मीडिया ने "सूत्रों" के हवाले से दी है। कहने की जरूरत नहीं है कि मीडिया इन सूत्रों का खुलासा नहीं करेगा। ऐसा करने का ना कोई रिवाज है और ना कोई जरूरत। मुझे याद है, वर्षों पूर्व जब मैं जनसत्ता में था तो आठ कॉलम में बैनर हेडलाइन बनी थी – दाउद मारा गया।
दाउद अभी तक जिन्दा है पर जनसत्ता ने भी अगले दिन कोई सफाई नहीं दी थी। मीडिया की आजादी के नाम पर भारत में यह खेल वर्षों से चल रहा है और उस पर कई तरह से किताबें लिखी जा सकती है। फिलहाल विषय वह नहीं है। हालांकि, हालात और खराब हुए हैं। मीडिया ने किसी कारण से (और कारण बताने की जरूरत नहीं है) बिना किसी आधार के मारे गए लोगों की अनुमानित संख्या छाप दी और उसे भुनाने का खेल शुरू हो गया। वैसे तो हमला ही भुनाने के लिए हुआ था।
और यह पहले ही दिन से स्पष्ट था। भारत और पाकिस्तान के दावे परस्पर विरोधी थे पर भारतीय मीडिया ने ज्यादातर पाकिस्तान के दावों को तरजीह नहीं दी। महत्वपूर्ण खबरों के लिए बीबीसी सुनने वालों के देश में भारतीय अखबारों ने विदेशी समाचार एजेंसियों की खबर नहीं छापी वह भी तब जब रायटर ने पहले ही दिन खबर दी थी कि हमला एक जंगल में हुआ है, कुछ पेड़ गिरे हैं और एक व्यक्ति के मरने की खबर है। कायदे से सूत्रों के दावे के साथ रायटल की खबर का भी हवाला दिया जाना चाहिए था। पर मीडिया को अब अपनी साख की भी परवाह नहीं है और वह पूरी तरह सेवा में लगा हुआ है। द टेलीग्राफ ने यह खबर उसी दिन छापी थी।
अखबार ने बम हां, मौत नहीं – शीर्षक से जो खबर छापी थी वह बालाकोट डेटलाइन से रायटर की है। इसमें गांव वालों के हवाले से कहा गया है कि एक व्यक्ति की मौत हुई और उन्हें किसी अन्य के हताहत होने की सूचना नहीं है। एक ग्रामीण ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि वहां एक मदरसा है जिसे जैश-ए-मोहम्मद चलाता है। हालांकि, ज्यादातर ग्रामीण पड़ोस में आतंकी होने की बात बहुत संभल कर कर रहे थे। एक अन्य व्यक्ति ने अपना नाम नहीं बताया और कहा कि इलाके में आतंकवादी वर्षों से रह रहे हैं।
इस व्यक्ति ने कहा कि मैं उसी इलाके का हूं और यकीन के साथ कह सकता हूं कि वहां एक प्रशिक्षण शिविर है। मैं जानता हूं कि जैश के लोग इसे चलाते थे। अखबार ने लिखा था कि यह इलाका 2005 में आए भूकंप में बुरी तरह तबाह हुआ था। ग्रामीणों ने कहा कि कल गिराए गए बम मदरसे से एक किलोमीटर दूर गिरे। 25 साल के ग्रामीण मोहम्मद अजमल ने बताया कि उसने तीन बजे से कुछ ही पहले चार तेज आवाज सुनी और समझ नहीं पाया कि क्या हुआ है।
सुबह समझ पाए कि यह हमला था। उसने बताया कि वहां हमने देखा कि कुछ पेड़ गिर गए हैं और जहां बम गिरे वहां चार गड्ढे हो गए हैं। एक क्षतिग्रस्त घर भी दिखा। ग्रामीणों ने कहा कि अपने घर में सो रहा एक व्यक्ति मारा गया है। बालाकोट से तीन किलोमीटर दूर एक ग्रामीण अतर शीशा ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा कि उसका नाम उजागर नहीं किया जाए। उसने फोन पर बताया कि बालाकोट में स्कूल तो चलता है पर हमले से बच गया। मैं नहीं कहता कि रायटर की यह खबर गलत या झूठी नहीं होगी पर सूत्रों की खबर के मुकाबले यह विश्वसनीय लगती है। 20 मिनट के ऑपरेशन में 300 लाशें गिनना संभव ही नहीं है।
इसके बावजूद इतने दिन इस पर तरह-तरह की राजनीति और बयानबाजी हुई अब पता चल रहा है कि सेना ने मारे गए लोगों को गिना ही नहीं, गिनता ही नहीं है तो अखबारों ने भारतीय वायु सेना के सूत्रों से यह खबर कहां से, कैसे क्यों छापी – यह कभी पता नहीं चलेगा। भले यह पता चल जाए कि जज लोया कि मौत कैसे हुई। दुखद यह है कि देश की तथाकथित सबसे बड़ी, अलग चाल चरित्र और चेहरे वाली ईमानदार पार्टी ऐसे कर रही है और आज ही पार्टी अध्यक्ष के हवाले से खबर छपी है कि 250 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। वायु सेना की ही तरह पार्टी अध्यक्ष का भी काम नहीं है कि वे वायु सेना के हमले में मारे गए लोगों की संख्या गिनें। पर मीडिया के घोषित सूत्रों में हैं।
इसके बावजूद वे स्वार्थवश गलत और अपुष्ट तथ्यों के आधार पर भाषण दे रहे हैं। अफवाह फैला रहे हैं। मीडिया की मजबूरी है कि वे बोल रहे हैं तो खबर छापे (हालांकि इसके साथ बताया जा सकता है कि खबर अपुष्ट या गलत है) । लेकिन इसके लिए अखबारों को अपने स्तर पर काम करना होगा और सरकार के नाराज होने का जोखिम रहेगा इसलिए यह भी नहीं किया जा रहा है और आपको कूड़ा परोसा जा रहा। यही नहीं, मीडिया फर्जी फोटो और वीडियो भी प्रसारित करता है और उसके भी मामले हैं।