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कुमार विश्वास बोले- 'सत्ता को सच, संवेदना व मनुष्यता नहीं, फ़रेब और वोटरों का खून चाहिए'
नई दिल्ली : बिहार में विधान सभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. इस बीच कवि कुमार विश्वास ने चुनावी तिकड़म पर तंज कसा है. कुमार विश्वास ने लिखा है कि आज के दौर में सत्ता को सच, संवेदना और मनुष्यता नहीं चाहिए बल्कि उसकी जगह फ़रेब और मतदाताओं का खून चाहिए. उन्होंने पूर्व में साहित्यकारों के चुनाव लड़ने और मुंह की खाने का जिक्र करते हुए ट्वीट किया है, "ग़लतफ़हमी में थे बेचारे, हार गए थे ! इनके बाद फ़िराक़ साहब,डॉ नामवर सिंह व गोपालदास नीरज जी भी लड़े, ज़मानतें ज़ब्त हुईं ! ख़ाकसार को भी अपने भोले और महान पूर्वजों के पदचिह्नों पर चलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ..सत्ता को सच,संवेदना व मनुष्यता नहीं,फ़रेब व मतदाताओं का खून चाहिए.."
ग़लतफ़हमी में थे बेचारे,हार गए थे ! इनके बाद फ़िराक़ साहब,डॉ नामवर सिंह व गोपालदास नीरज जी भी लड़े, ज़मानतें ज़ब्त हुईं ! ख़ाकसार को भी अपने भोले और महान पूर्वजों के पदचिह्नों पर चलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ😂🙏
— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) September 26, 2020
सत्ता को सच,संवेदना व मनुष्यता नहीं,फ़रेब व मतदाताओं का खून चाहिए😍🇮🇳 https://t.co/x76jQYKq3z
दरअसल, आस्ट्रेलिया के ला ट्रोब यूनिवर्सिटी के हिन्दी के प्रोफेसर इयान वुल्फोर्ड ने एक ट्वीट किया था, जिसमें साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु की अक उक्ति का जिक्र किया गया था. इयान ने लिखा है, "लाठी-पैसे और जाति के ताकत के बिना भी चुनाव जीते जा सकते हैं। मैं इन तीनों के बगैर चुनाव लड़कर देखना चाहता हूँ- फनीश्वरनाथ रेणु.." कुमार विश्वास ने इसी ट्वीट को रिट्वीट करते हुए ये टिप्पणी की है.
आंचलिक उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु ने साल 1972 में चुनाव लड़ा था लेकिन वो कांग्रेस के कद्दावर नेता सरयू मिश्रा से हार गए थे. उन्होंने तब लिखा था कि चुनाव जीत गए तो कहानियां लिखेंगे और अगर हार गए तो उपन्यास. हालांकि, उपन्यास लिखने से पहले ही रेणु का निधन हो गया. रेणु ने तब ही चुनावी भ्रष्टाचार पर वार करते हुए लिखा था कि लाठी पैसे और जाति के ताकत के बिना भी चुनाव जीते जा सकते हैं और उन्होंने इसके बिना किस्मत आजमाया था. बाद में उन्हीं की तरह साहित्यकार डॉ. नामवर सिंह और गोपाल दास नीरज ने भी चुनाव लड़ा थे लेकिन दोनों की जमानत जब्त हो गई थी.