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महाराष्ट्र में अचानक राजनीतिक घमासान जिस प्रकार तेज हुआ है उससे सभी राजनीतिक विश्लेषक हैरान हैं की आखिर इतनी जल्दबाजी में कैसे उठापटक शुरू हो गई. कुछ लोग कहते हैं कि यह शिवसेना और भाजपा की मिलीभगत है और शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से तंग आ गई है और दोबारा अपने पुराने हिंदूवादी अवतार के रूप में आना चाहती है. इसलिए भाजपा के साथ ही गठजोड़ करना चाहती है.
शिवसेना के बागी मंत्री ने भी यही शर्त राखी है की दोबारा भाजपा से ही दोस्ती की जाये. कुछ लोग इसे राष्ट्रपति चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं की सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी किसी सूरत में राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को हावी होते देखना नहीं चाहती. भारतीय जनता पार्टी के नीति निर्धारकों को यह खतरा हो रहा था कि महाराष्ट्र में कुछ ऐसा ना हो जाए जिससे सत्तारूढ़ पक्ष को किसी परेशानी का सामना राष्ट्रपति चुनाव में करना पड़ जाए क्योंकि विपक्ष ने पुराने भाजपाई यशवंत सिन्हा को ही अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित कर दिया है इससे भाजपा को थोड़ी सी मुश्किल तो महसूस जरूर हो रही होगी.
वैसे अगर देखा जाए तो भाजपा शिवसेना में टकराव बहुत पहले से चल रहा था और यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था कि आने वाले समय में शिवसेना को नियंत्रित करना भारतीय जनता पार्टी की मजबूरी बन जाएगा. यदि इस टकराव को देखें तो लगता है कि भारतीय जनता पार्टी शिवसेना को महाराष्ट्र में कमजोर कर देना चाहती है तथा ठाकरे परिवार का वर्चस्व तोड़ देना चाहती है जिससे आने वाले विधानसभा चुनाव में उसे बहुत ज्यादा मुश्किलात का सामना ना करना पड़े. लेकिन यह सब इतनी तत्परता से हो रहा है उससे तो यही लगता है और कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों ने इस बात को लिखा भी है कि यह सब कुछ लिखी हुई पटकथा है जिस पर काम चल रहा है.
उद्धव ठाकरे ने लाइव होकर कहा है कि अगर विधायक नाराज हैं तो वह इस्तीफा देने को तैयार हैं. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि आज भी शिवसेना हिंदुत्व वाली पार्टी ही है. उद्धव ठाकरे ने कहा है कि मैं इस्तीफ़ा देने तैयार हूं, मेरी कोई मजबूरी नहीं है , मैं किसी पर निर्भर नहीं हूं. हालाँकि महाराष्ट्र की सियासत के भीष्म पितामह शरद पवार ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में दवा किया था की उद्धव सरकार सही चल रही है उसे कोई खतरा नहीं है. लेकिन जिस प्रकार शिवसेना के बागी विधायकों को पकड़ कर सूरत और फिर गुवाहटी भेजा गया उससे लगता है कि ये तैयारी पुरानी है. राष्ट्रपति चुनाव से पहले भाजपा का ये झटका बहुत ज़ोरदार मना जा रहा है. अब देखना ये है की किस प्रकार शिवसेना और एनसीपी इसका तोड़ ढूंढ पाते हैं.