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मोदी सरकार 2.0: दिल्ली-मुंबई-रांची, सियासी युद्ध में तीन राज्यों में क्यों मिली मात?

Shiv Kumar Mishra
22 May 2020 5:54 AM GMT
मोदी सरकार 2.0: दिल्ली-मुंबई-रांची, सियासी युद्ध में तीन राज्यों में क्यों मिली मात?
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नरेंद्र मोदी सरकार 2.0 के एक साल पूरे होने जा रहे हैं. मोदी के नेतृत्व में बीजेपी 2019 में 303 लोकसभा सीटों के साथ प्रचंड जीत दर्ज करने में भले ही कामयाब रही हो, लेकिन विधानसभा चुनाव के सियासी युद्ध में तीन राज्यों में उसे मात खानी पड़ी है. बीजेपी को महाराष्ट्र और झारखंड की अपनी सत्ता गवांनी पड़ी है तो दिल्ली में करारी मात मिली.

कोरोना संकट के बीच नरेंद्र मोदी सरकार 2.0 के एक साल 30 मई पूरे होने जा रहे हैं. मोदी के नेतृत्व में बीजेपी 2019 में 303 लोकसभा सीटों के साथ प्रचंड जीत दर्ज करने में भले ही कामयाब रही हो, लेकिन विधानसभा चुनाव के सियासी युद्ध में तीन राज्यों में उसे मात खानी पड़ी है. बीजेपी को महाराष्ट्र और झारखंड की अपनी सत्ता गवांनी पड़ी है तो दिल्ली जीतने के अरमानों पर भी पानी फिर गया.

महाराष्ट्र में साथी और सत्ता दोनों गंवाया

मोदी सरकार के दूसरी बार सत्ता में आने के बाद पहला विधानसभा चुनाव महाराष्ट्र में हुआ था. बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा. महराष्ट्र के 288 विधानसभा सीटों में से बीजेपी को 105 सीटों, शिवसेना को 56 सीटों, कांग्रेस को 44 सीटों, एनसीपी को 54 सीटों और अन्य को 29 सीटों पर जीत मिली. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सीटें पहले से कम हुई थी, लेकिन जनादेश स्पष्ट मिला था. मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों दलों की दोस्ती के बीच दरार आ गई. शिवसेना ने बीजेपी से 25 साल पुराना नाता तोड़ लिया और अपने कांग्रेस व एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बना ली. शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में मुख्यमंत्री का ताज उद्धव ठाकरे के सिर सजा. इस तरह से बीजेपी महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर हो गई.

हालांकि, उद्धव ठाकरे के सीएम बनने से पहले ऐसा सियासी घटनाक्रम हुआ कि बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और एनसीपी नेता अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की. शिवसेना ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश देने की मांग की. एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने ऐसा राजनीतिक समीकरण बनाया कि महाराष्ट्र विधानसभा में देवेंद्र फडणवीस बहुमत साबित नहीं कर सके और उन्हें मुख्यमंत्री पद से व अजित पवार को डिप्टी सीएम पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. अजित पवार एनसीपी में वापसी कर गए और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनी.

झारखंड में बीजेपी को मिली करारी मात

महाराष्ट्र के बाद साल 2019 के आखिर में झारखंड के विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी को हार के साथ सत्ता भी गवांनी पड़ी. झारखंड की कुल 81 विधानसभा सीटें में से बीजेपी को महज 25 सीटें मिली थी. वहीं, हेमंत सोरेने के नेतृत्व वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा को 30 सीट जबकि कांग्रेस को 16 सीट और आरजेडी को एक सीट पर जीत मिली. इसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और आरजेडी ने मिलकर सूबे में सरकार बनाई और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने. इस चुनाव में बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री रहे रघुवर दास अपनी जमशेदपुर पूर्व सीट भी नहीं बचा पाए. उन्हें बीजेपी के बागी सरयू राय ने मात दी थी. बीजेपी झारखंड में आजसू जैसे सहयोगी दल को दरकिनार कर चुनाव मैदान में उतरी थी, जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा है.

दिल्ली में बीजेपी का नहीं खत्म हुआ वनवास

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 को फतह करने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी थी. अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी के खिलाफ बीजेपी ने जबरदस्त चक्रव्यूह रचा था, लेकिन फिर भी कामयाबी नहीं मिल सकी. बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व से लेकर राज्यों के मुख्यमंत्री और मोदी सरकार के तमाम मंत्री दिल्ली की गलियों में घूम-घूमकर पार्टी के प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया, इसके बावजूद दिल्ली 70 सीटों में से बीजेपी को महज 8 सीटें मिलीं जबकि आम आदमी पार्टी ने 62 सीटों पर जीतकर सत्ता को अपने पास बरकरार रखा.

बीजेपी की दिल्ली में 22 साल के सत्ता के वनवास को खत्म करने की कोशिशें रंग नहीं ला पाईं और अब उसमें 5 साल का इजाफा और हो गया है. हालांकि दिल्ली के प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी 48 सीटों पर जीत के अनुमान के साथ सत्ता में आने की उम्मीद अंतिम क्षणों तक लगाए हुए थे, जो पूरा नहीं हो सका. इस तरह से मोदी सरकार 2.0 में बीजेपी की यह तीसरी मात थी.

2014 के बाद देश में चढ़ा भगवा रंग 2019 से हो रहा फीका

बता दें कि केंद्र की सत्ता में पहली बार नरेंद्र मोदी के आने के बाद बीजेपी का ग्राफ देश भर में बढ़ा था. 2014 में बीजेपी की सरकार सिर्फ 7 राज्यों में थी. मोदी लहर के चलते केंद्र की सत्ता में आने के बाद बीजेपी एक के बाद एक राज्य जीतती चली गई. 2015 में वह 13 राज्यों तक पहुंची, 2016 में वह 15 राज्यों तक पहुंची, 2017 में 19 राज्यों तक बीजेपी फैली और 2018 के मध्य तक भाजपा 21 राज्यों में अपना परचम लहराने में सफल हुई थी, लेकिन पार्टी की उलटी गिनती यहीं से शुरू हुई, जो दिल्ली में भी बरकरार रही.

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