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नरेंद्र भाई का दम अब उखड़ने लगा है - शिवानंद तिवारी
राजद के नेता और पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी ने कहा लंबे समय तक संघ की विचारधारा में दीक्षित नरेंद्र भाई एक सच्चे स्वयं सेवक के तौर पर संघ के आदेश का धड़ा धड़ अनुपालन करते जा रहे हैं.
मुझे याद है कि 1949 के जुलाई महीने में पत्रकारों ने गोलवलकर जी से सवाल पूछा था. 'आप सत्ता पर क़ब्ज़ा करना चाहते हैं'! उनका जवाब था इस विषय में 'हम भगवान श्री कृष्ण का विचार सामने रखते हैं. वे एक बड़े साम्राज्य को अपने अंगूठे के नीचे रखते थे. लेकिन स्वंय कभी राजा नहीं बने'. तिहत्तर वर्ष पहले गोलवलकर जी ने जो सपना देखा था उसे संघ ने नरेंद्र भाई को प्रधानमंत्री बनवा कर पूरा कर लिया है. आज दिल्ली में बैठी मोदी सरकार संघ के अंगूठे के नीचे है. संघ को पता है कि मोदी सरकार अनंत काल तक नहीं चलने वाली. इसलिए वह जल्दी जल्दी अपना एजेंडा लागू करवाने के लिए बेचैन दिखाई दे रहा है. उसी कड़ी में बड़े कदम के रूप में आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए संविधान में संशोधन कराया गया. संघ के आदेशों का जिस तत्परता के साथ नरेंद्र भाई अनुपालन कर रहे हैं इससे उनका चरित्र ब्राह्मणवादियों के चाकर के रूप में ही उजागर हुआ है.
यूं देखा जाए तो नरेंद्र भाई का दम अब उखड़ने लगा है. अकेले कंधे पर इतनी बड़ी पार्टी का बोझ ढोना कोई साधारण काम नहीं है. यह असाधारण जवाबदेही नरेंद्र भाई ने स्वेच्छा से अपने कंधे पर उठाया हुआ है. 'एक मैं ही हूँ, यहाँ दूसरा कोई नहीं है'. इसी मनोभाव से मोदी जी न सिर्फ़ देश में अपनी सरकार बनाने का अभियान चलाते हैं बल्कि राज्यों में भी भाजपा की ही सरकार बनाने और जिन राज्यों में बन गई है वहाँ हर चुनाव में क़ायम भी रहे यह ज़िम्मा भी उन्होंने अपने कंधे पर उठा रखा है.
अभी हिमाचल प्रदेश के चुनाव में हमने यही देखा. लेकिन वहाँ यह भी दिखा कि नरेंद्र भाई का पार्टी पर दबदबा अब पहले जैसा नहीं रह गया है. बहुत कमजोर हुआ है. हिमाचल में तो इसका स्पष्ट प्रमाण दिखाई दिया. वहाँ बाग़ी उम्मीदवारों को बैठाने के लिए स्वयं मोदी जी द्वारा उनपर दबाव डालने के लिए फोन किया गया. उनमें से एक ने उस बातचीत को टेप कर उसे सार्वजनिक कर दिया. अब स्थिति ऐसी आ गई है कि अधिकांश बाग़ियों ने नरेंद्र भाई के दबाव को अनदेखा कर दिया और चुनाव के मैदान में डटे रह गये. हिमाचल में भाजपा की ही सरकार थी. लेकिन वह बहुत बुरी सरकार साबित हुई है. वहाँ के लोग उस सरकार से निजात पाना चाहते थे. इसके बावजूद फिर भाजपा की ही सरकार वहाँ बने यह ज़िद्द ठानकर मोदी जी वहाँ चुनाव अभियान चलाते नज़र आये. बल्कि वहाँ के मतदाताओं से उन्होंने सीधे अपने लिए वोट माँगा.
लेकिन ख़बर मिल रही है कि हिमाचल के मतदाताओं ने इस मर्तबा भाजपा की सरकार को वहाँ से विदा करने के लिए मतदान किया है. लोकतंत्र में यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. सरकारों को उलटना पलटना मतदाताओं का अधिकार है. लेकिन अपनी लोकप्रियता या अपनी ग्राह्यता का बेजा इस्तेमाल कर एक अलोकप्रिय सरकार को पुनः स्थापित करने के लिए मतदाताओं पर दबाव बनाने का प्रयास कर नरेंद्र भाई ने अपने लिए गंभीर जोखिम लिया है. यह उनकी 'एको अहं' वाली तानाशाह मानसिकता का ही परिचय देता है.
ऐसा ही बल्कि उससे भी ज़्यादा नग्न रूप में यह दृश्य गुजरात में दिखाई दे रहा है. वहाँ सत्ता विरोधी गंभीर लहर है. लेकिन मोदी जी ने इस लहर के विपरीत पुनः भाजपा की ही सरकार वहाँ बनवाने के लिए अपना सबकुछ झोंक दिया है. अभी चार दिनों का उनका कार्यक्रम वहाँ चल रहा है. सभा और रोड शो मिला कर उनका कुल तीस कार्यक्रम है. चुनाव के ही संदर्भ में इसके पहले भी गुजरात में उनका कार्यक्रम हो चुका है. नरेंद्र भाई को गुजरात के मतदाताओं की इस गंभीर नाराज़गी का एहसास पहले से ही था. इसलिए चुनाव की पृष्ठभूमि में ही वहाँ के मतदाताओं को 'खुश' करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अन्य राज्यों की पूँजी निवेश की योजनाओं को वे गुजरात ले आए. महाराष्ट्र से भी, जहां भाजपा गठबंधन की सरकार में शामिल है, वेदांत और टाटा की एक लाख बहत्तर हज़ार करोड़ रुपये की निवेश की योजनाओं को उन्होंने गुजरात मँगवा लिया. लेकिन भाजपा सरकार के खिलाफ वहाँ जनता में इतनी नाराज़गी है कि इतने भर से काम नहीं चला. इसलिए नरेंद्र भाई अपने तरकश में एक से बढ़कर एक तीर लेकर गुजरात विधानसभा के चुनावी समर में ताल ठोक रहे हैं.
उनकी एक ख़ास सिफ़त है. जब जब वे घिरते हैं अपने को बेचारा तथा अत्यंत ही दीन हीन के रूप में पेश करते हैं. समाज के तथाकथित बड़े लोग पिछड़ी जाति में उनके जन्म को लेकर या अत्यंत निर्धन पृष्ठभूमि से आने के कारण प्रताड़ित कर रहे हैं. अपमानित कर रहे हैं ! इसको वे तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल करते हैं. इस संदर्भ में दो घटनाओं का यहाँ स्मरण कराना चाहूँगा. 2014 का चुनाव स्मरण कीजिए. जब प्रियंका ने 'नीच राजनीति' शब्द का इस्तेमाल किया था. मोदी जी ने उसको लोक लिया. जिस प्रकार 'नीच राजनीति' को उन्होंने 'नीची जाति' की राजनीति में बदल दिया यह उनकी खास 'बुद्धि' का ही परिचायक माना जाएगा. उसका लाभ भी उन्होंने खूब उठाया था. इसी तरह मणिशंकर अय्यर का चाय बेचने वाले व्यंग को लेकर 'चाय पर चरचा' का एक गंभीर राजनीतिक अभियान का रूप उन्होंने दे दिया था.
इस बार भी कांग्रेस के मधुसूदन मिस्त्री ने नरेंद्र भाई के लिए 'औक़ात ' शब्द का इस्तेमाल कर फिर उनको अपने आप को बेचारा और निरीह के रूप में गुजरातियों के सामने पेश करने का मौक़ा दे दिया है.
यह अलग बात है कि उनकी सरकार ब्राह्मणवादियों और कॉरपोरेट सेक्टर के एजेंट के रूप में काम कर रही है. जिस प्रकार सामान्य वर्ग यानि ऊँची जाति को ग़रीबी का आधार बनाकर सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देने के लिए संविधान में उन्होंने संशोधन करवाया वही इसको प्रमाणित कर रहा है. अगड़ों को आरक्षण देने के लिए मूल संविधान में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की जो व्यवस्था है उसीको उन्होंने जोखिम में डाल दिया है. अभी जो अगड़ों को आरक्षण देने वाली चुनौती पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया है उसने सामाजिक न्याय के पक्षधरों को चिंता में डाल दिया है. पाँचों जजों ने आरक्षण के आर्थिक आधार को एक स्वर से सही ठहराया है. उनमें मतांतर तकनीकी प्रश्न पर था. पाँच जजों में से एक ने तो यहाँ तक कहा कि पचहत्तर वर्षों से आरक्षण की व्यवस्था है. अब इस पर पुनर्विचार की ज़रूरत है.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का ऊँची जातियों को भी आरक्षण के दायरे में ले आने के इस एजेंडा को पूरा करने के लिए नरेंद्र भाई ने न सिर्फ़ तत्परता दिखलाई बल्कि उसके लिए उन्होंने तिकड़म का भी सहारा लिया. भाजपा उन दिनों राज्य सभा में अल्पमत में थी. इस वजह से वहाँ उस बिल के अटकने की ज़्यादा संभावना थी. इस जोखिम से बचने के लिए नरेंद्र भाई ने ज़बरदस्ती उस बिल को मनीबिल के रूप में बदलवा कर उसे लोकसभा में पास करवा दिया. मनीबिल को सिर्फ़ लोकसभा में ही पास करवाने की ज़रूरत होती है. वहाँ पास हो जाने के बाद उसे राज्य सभा में ले जाने की ज़रूरत नहीं होती है. इस प्रकार यह साफ़ दिखाई दे रहा है कि मोदी सरकार एक तरफ़ संघ के एजेंडे को बहुत तत्परता के साथ तो लागू कर ही रही है. वह कारपोरेट घरानों की भी उसी मुस्तैदी के साथ सेवा कर रही है. मोदी काल में जिस प्रकार उनकी संपत्ति में वृद्धि हुई है वह अभूतपूर्व है. देश के इतिहास में इतनी भयानक आर्थिक गैरबराबरी कभी नहीं देखी गई थी. देश भर से संपूर्ण परिवार द्वारा आत्महत्या की ख़बरें आ रही हैं. राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो बता रहा है कि युवाओं में आत्महत्या की घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि हुई है. लेकिन इन सबसे बेख़बर नरेंद्र भाई के भाषणों में देश में सबकुछ हरा हरा है.
गुजरात और गुजरातियों के साथ नरेंद्र भाई का जिस प्रकार का गहरा और भावनात्मक रिश्ता है उसका दोहन कर संभव है कि नरेंद्र भाई वहाँ पुनः भाजपा सरकार बनवा दें. लेकिन लोकसभा के अगले चुनाव में भी ऐसा उपक्रम क्या संभव है ! मुझे तो ऐसा नहीं लग रहा है.
लेखक शिवानंद तिवारी राज्यसभा के सांसद रह चुके है। ये उनके अपने निजी विचार है।