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यूपी की सियासत में रातोंरात ये बदलाव आया है। मगर, इस बदलाव के पीछे की कहानी अलग है। अखिलेश यादव के साथ ओम प्रकाश राजभर के रिश्ते कुछ ऐसे हो चले थे मानो एसी की कड़कड़ाती ठंड में किसी गर्म जगह की तलाश हो। एसी से याद आया ना राजभर का वो बयान...जी हां...अखिलेश को एसी रूम से बाहर निकलना होगा...एसी कमरे में बैठकर नहीं हो सकती विपक्ष की सियासत।
आपने-हमने सोचा कि बात आयी गयी हो गयी। लेकिन, नहीं। अखिलेश अपने विरुद्ध कही गयी बातों को दिल पर ले लेते हैं। सबूत चाहिए? ओम प्रकाश राजभर खुद हैं सबूत। समझिए इस सबूत को।
यशवंत सिन्हा लखनऊ आते हैं। उनके लिए वोट जुगाड़ने की तैयारी का जिम्मा अखिलेश यादव को दिया जाता है। विधायकों की मीटिंग बुलायी जाती है। ओम प्रकाश राजभर सभी छह विधायकों के साथ ५ जुलाई को लखनऊ आ धमकते हैं। ६ जुलाई को ओम प्रकाश राजभर को बताया जाता है कि ७ जुलाई को होने वाली मीटिंग कैंसिल हो गयी है। राजभर चौंक जाते हैं। उन्हें यकीन नहीं होता जब ७ जुलाई को निर्धारित समय पर मीटिंग होती है। जयंत चौधरी सरीखे गठबंधन के साथी उसमें आमंत्रित रहते हैं। खून का घूंट पीकर रह जाते हैं ओम प्रकाश राजभर।
अमित शाह के एक फोन से बदल गयी है यूपी की राजनीति
ओम प्रकाश राजभर ने छोड़ा अखिलेश यादव का साथ
द्रौपदी मूर्मू के लिए सुभासपा करेगी वोट
यशवंत सिन्हा मलते रह गये हाथ
बस, यहीं से ठान लेते हैं राजभर कि अब नहीं रहना है अखिलेश के साथ। लेकिन, यह फैसला करने से पहले कोई और ठौर तो चाहिए। दिल्ली में बैठे अमित शाह की हर छोटी-बड़ी राजनीतिक घटनाओं पर नज़र रहती है। तुरंत राजभर के पास फोन आता है। वे दिल्ली बुलाए जाते हैं। राजनीतिक डील हो जाती है। ओम प्रकाश राजभर पाला बदल लेते हैं। अब यशवंत सिन्हा की जगह राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मूर्मू को वोट देन के लिए कमर कस लेते हैं।
हालांकि ओम प्रकाश राजभर ने समाजवादी पार्टी छोड़ने का एलान नहीं किया है, लेकिन इसका मकसद बीजेपी से बेहतर मोलभाव करना है। लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी को ओम प्रकाश राजभर का साथ चाहिए। लेकिन, राजभर इसके बदले में क्या डील करेंगे, यह आगे देखने वाली बात होगी। लेकिन, फिलहाल राष्ट्रपति चुनाव में ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव की साइकिल को तगड़ा धक्का दे दिया है, वहीं राजभर के रुख से कमल मुस्कुराता हुआ नज़र आने लगा है।