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माजिद अली खान
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं वैसे वैसे नए-नए सवाल लोगों के बीच गर्दिश करने लगे हैं. सबसे बड़ा सवाल समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव से लोग कर रहे हैं कि वह राज्य की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के मुखिया हैं लेकिन इन विधानसभा चुनाव में वह अपना एजेंडा और अपनी भूमिका स्पष्ट नहीं कर पा रहे. हालांकि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले एक वीडियो जारी कर कड़े शब्दों में अपनी और कांग्रेस पार्टी की भूमिका स्पष्ट कर दी थी कि पार्टी को निडर लोग चाहिए और जो आर एस एस वह भाजपा से डरता हो वह पार्टी छोड़कर चला जाए. राहुल गांधी की इस वीडियो के बाद उत्तर प्रदेश की जनता अब अखिलेश यादव की तरफ देख रही है कि वह राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया हैं और अब तक कोई स्पष्ट बयान या कोई एजेंडा उन्होंने ऐसा जारी नहीं किया जिससे जनता में यह संदेश जाए कि समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी से और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से टक्कर लेने के मूड में हैं.
समाजवादी पार्टी को राज्य के मुसलमानों का समर्थन मिलता रहा है और पार्टी के बारे में यह बात कही जाती है कि यह मुसलमानों की पार्टी है लेकिन इस बार खुद मुसलमान भी असमंजस में हैं कि अखिलेश यादव अपनी भूमिका स्पष्ट क्यों नहीं कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि अखिलेश यादव को आगे बढ़कर यह कहना चाहिए कि उनका मुकाबला आरएसएस से है वह इसलिए नहीं कि उन्हें मुसलमानों को खुश करना है बल्कि आरएसएस राज्य और पूरे देश के लिए बड़ी नुकसानदेह है. जिस प्रकार वह समाज में नफरत और सांप्रदायिकता का जहर घोलते आ रहे हैं उससे देश कमजोर हो रहा है. इसलिए समाजवादी पार्टी को आरएसएस कड़ा मुकाबला करना है. यदि अखिलेश यादव ने कोई सख्त रवैया या कड़े तेवर ना अपनाए तो जनता में यह संदेश स्वतः ही जाएगा कि अखिलेश यादव में आरएसएस या योगी, मोदी का मुकाबला करने की इच्छा शक्ति नहीं है.
राहुल गांधी ने वीडियो के जरिए जनता में यही संदेश देने की कोशिश की थी कि जो लोग आरएसएस और भाजपा और मोदी सरकार को देश के लिए नुकसान दे समझते हैं वह कम से कम कांग्रेस का साथ देने के लिए खड़े हो जाएं. अखिलेश यादव जब से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बने हैं तब से वह कोशिश कर रहे हैं कि समाजवादी पार्टी को मुस्लिमपरस्ती के ठप्पे से आजाद कराया जाए. मुस्लिमपरस्ती के ठप्पे सेसे आज़ादी पाने में उनका साथ देते हैं समाजवादी पार्टी के बड़े नेता रामगोपाल यादव. अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी को सर्व समाज की पार्टी बना देना चाहते हैं. इसलिए वह बोलने से डरते हैं. लेकिन वह यह नहीं समझते कि अगर उन्होंने आरएसएस के मुकाबले की बात ना की तो उन्हें प्रमुख विपक्षी के तौर पर जनता स्वीकार न करें क्योंकि अगले विधानसभा चुनाव में आरएसएस के लोगों और आरएसएस के खिलाफ लोगों में मुख्य मुकाबला होगा.
अगला चुनाव हिंदू मुस्लिम नहीं होगा बल्कि भाजपा बनाम राज्य के परेशान लोगों चाहे वह किसान हो मजदूर हो कोई भी हो जो भी भाजपा सरकार से त्रस्त है उनके बीच होगा. इस चुनाव में धार्मिक पहचान के साथ वोटिंग होनी मुश्किल लग रही है क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश जहां मुसलमानों की एक बड़ी आबादी रहती है वहां किसान आंदोलन ने जाट मुस्लिम एकता पैदा कर हिंदू मुस्लिम की खाई को काफी हद तक बांटने का काम कर दिया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 22 जिलों में लगभग 17 जिले जाट मुस्लिम एकता से प्रभावित होंगे और बाकी जिलों पर यादव मुस्लिम एकता का प्रभाव भी रहेगा. हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोकदल का झंडा लेकर उसके मुखिया जयंत चौधरी लगातार भाजपा के खिलाफ आवाज मुखर कर रहे हैं और भाईचारा सम्मेलन गांव दर गांव आयोजित किए जा रहे हैं कि कहीं भी भाजपा को हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण करने का अवसर ना मिले, लेकिन अखिलेश यादव की सुस्त चाल चिंता का विषय बनी हुई है.
दूसरी ओर कांग्रेस धीरे धीरे आगे बढ़ती नजर आ रही है. ऐसा ना हो इस चुनाव के आते आते कॉन्ग्रेस जनता को यह संदेश देने में कामयाब ना हो जाए की वही आरएसएस और भाजपा सरकार से टक्कल लेने का दमखम रखती है. यदि अखिलेश यादव को यह एहसास नहीं है तो उन्हें समझ लेना चाहिए कि वह वह तो अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं.